Rajamouli में ऐसा क्या है जो भंसाली और गोवारिकर शायद खो चुके हैं
Rajamouli तीनों आर का ऐसा इन्ट्रोडक्शन देते हैं, वैसा पहले किसी भी फिल्म में देखने को शायद ही मिला होगा।
सन् 1999 में आई देवदास हो या 2000 में आई लगान, दोनों ही फिल्में सिने दर्शकों के लिए एक ऐसा मील का पत्थर साबित हुई थीं कि अच्छी ड्रामा फिल्मों की तुलना देवदास से, तो अच्छी स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म की तुलना लगान से होने लगी थी। आज भी होती है। लेकिन आज अगर आप आशुतोष गोवारिकर और संजय लीला भंसाली की बीती 2-3 फिल्में देखें, तो बासी कढ़ी में उबाल से ज़्यादा कुछ नहीं दिखता।
वहीं मगाधीरा हो या मक्खी, बाहुबली बिगनिंग हो या कन्क्लूशन, या फिर हाल ही में रिलीज़ हुई RRR को ही ले लीजिए, Rajamouli हर बार, ईच एंड एवरी फ्रेम में कुछ न कुछ ऐसा नया, माइंड ब्लोइंग लाते जा रहे हैं जो उन्हें किसी भी एक श्रेणी में बंधे रहने के ठप्पे से बचा रहा है।
RRR में जिस तरह से Rajamouli तीनों आर का इन्ट्रोडक्शन देते हैं, वैसा पहले किसी भी फिल्म में देखने को शायद ही मिला हो। (फिल्म उरी में कुछ इस तरह से शुरुआत ज़रूर हुई थी) कहानी का पहला R है stoRy में, कि कहाँ से एक बच्ची को उसके परिवार वालों से अलग करके ब्रिटिश जनरल स्कॉट ने कुमारम भीम उर्फ जूनियर NTR को अपना दुश्मन बना लिया।
अब दूसरा R, fiRe है, जो राम चरन के रूप में देखने को मिलता है, ये सीन देखकर तो मेरे मन में सबसे पहला सवाल यही आया था कि इसे फ़िल्माना कितना मुश्किल रहा होगा। तीसरा टाइटल इन्ट्रोडक्शन WateR है, जो कुमारम भीम यानी जूनियर एनटीआर के शेर-शिकार पर फिल्माया है।
यह तीनों सीन कोई 40 मिनट के हैं, लेकिन सिनेमा हॉल में बैठे देखो तो लगता है मानों बस 15 मिनट की फिल्म बीती है। आगे रेलवे पुल पर 3नों R का मिलना, वो अलग से अवॉर्ड विनिंग सीन बना है। इसके बाद इन्टरवल तक कब डेढ़ घंटा निकल जाता है, इसका होश ही नहीं रहता। यहाँ भी बहुत खूबसूरती से मिले हाथों को लड़े-हाथ बनाकर मध्यांतर किया गया है।
वहीं गंगूबाई काठियावाड़ी लगातार दो सीन्स बांधने में भी अक्षम नज़र आती है। अब बात फिल्म पानीपत की करें, तो यही मुसीबत उसमें भी है कि कैरिक्टर्स अपने बेस्ट एफर्ट के आसपास भी नज़र नहीं आते हैं। डिरेक्शिन बोझिल लगता है, एक-एक मिनट फ़ील होने लगता है कि फिल्म लंबी है।
ऐसा आखिर क्यों है?
इसकी पहली वजह जो मुझे लगती है वो है राइटिंग पर कम और डेकरैशन पर ज़्यादा काम करना। लेजेंडरी भंसाली साहब और माननीय आशुतोष जी, दोनों ही अब कॉस्टयूम, लोकैशन, सेट आदि पर इतना फोकस करने लगे हैं कि पटकथा कहाँ जा रही है, इसका होश ही नहीं रह जाता।
छोटा सा उदाहरण और देखिए, पानीपत हो या गंगूबाई, दोनों में ऐसे गाने डाले गए हैं कि जबरन ठूँसे लगते हैं। भंसाली साहब तो शायद ढोल वालों से कान्ट्रैक्ट कर चुके हैं कि आर्ट फिल्म भी बनाएंगे तो उसमें ढोली तारो टाइप एक गाना ज़रूर होगा। वहीं गोवारिकर महाराज गाने ऐसे डालते हैं कि लगता है काउंटिंग पूरी कर रहे हैं। ‘भई कम से कम छः गाने होने चाहिए, म्यूजिक कॉम्पनी को वादा कर दिया है, जावेद साहब से लीरिक्स लिखवाओ और किसी भी सिचूऐशन पर गाना डालो, मुश्किल पड़े तो यूंहीं बैकग्राउन्ड में कुछ बजा दो पर गाना लाओ’।
वहीं RRR में आप ‘नाटो-नाटो’ गाना देखें, उस गाने से पहले कितनी सही भूमिका बनाई गई है। कुमारम भीमुडु के लिए तो कोई म्यूजिक भी नहीं लिया है, सिर्फ वोकल सॉन्ग इतना असरदार लगता है कि फिल्म का कैरिक्टर रामाराजू उस गाने को बंदूकों से बड़ा हथियार उस गीत को बताता है” बाहुबली में धीवरा हो या नशेबाजी वाला गाना, कहानी से कोनेक्टेड है’। (हालांकि कन्क्लूशन में ‘पंछी बोले’ गाना अपवाद है)
अब एक सबसे बड़ा पॉइंट है जो राजमौली जी को इन दोनों से कहीं ज़्यादा बोल्ड डायरेक्टर घोषित करता है। आशुतोष हों या भंसाली जी, दोनों अपनी फिल्म एक सालिड, मेन स्ट्रीम लव स्टोरी के बिना पूरी नहीं कर सकते। लव स्टोरी भी ऐसी जो कहानी के आगे-आगे भागने लगती है। अब चाहें आप बाजीराव मस्तानी देखें या पद्मावत, जोधा अकबर देखें या पानीपत, चारों शानदार एक्शन वॉर फिल्म्स हो सकती थीं पर अफ़सोस, 60% से ज़्यादा फिल्म लवी-डवी चुम्मी चाटी से घिरी रह जाती है।
दूसरी ओर मक्खी जैसी लव स्टोरी कान्सेप्ट पर बेस्ड फिल्म को भी राजामौली प्योर एक्शन एडवेंचर बना देते हैं। RRR में कम से कम 3 रोमांटिक गाने हो सकते थे, 5 टिपिकल रोमांस युक्त सीन्स की गुंजाइश थी पर नहीं, राजामौली ने कुमारम भीम के रोमांस को तो मात्र कहानी बढ़ाने का माध्यम बना दिया। रामराजू की लव स्टोरी को इतना संक्षिप्त रखा कि आलिया भट्ट फिल्म में हैं क्यों? ये सवाल दर्शक पूछते नज़र आ रहे हैं।
एक फैक्टर ये भी है कि राजामौली हिन्दू धर्म को साथ लेते चलते हैं। उनके कैरिक्टर्स के नाम अमूमन ‘शिव, शिवूडू, रामराजू, काल भैरव आदि होते हैं। फिल्म में एक दो बार शिवलिंग, मंदिर आदि के दर्शन ज़रूर होते हैं। बाहुबली सीरीज़ जहाँ महाभारत से इंस्पायर्ड थी, वहीं RRR को उन्होंने रामायण से जोड़ा है।
कुमारम भीम के बहाने हनुमान जी तो रामराजू को डायरेक्टली श्रीराम के कैरिक्टर में ढाला है।
वहीं आशुतोष गोवारिकर तो फिर भी इस ईमोशन्स को कहीं कहीं कैश करने की कोशिश कर लेते हैं लेकिन भंसाली जी मेजर पापुलेशन धार्मिक रूप से जोड़ने में अमूमन विफल नज़र आते हैं।
आखिर में, ऐक्टर्स से उनका 100% खींचना भी राजामौली बाकी दोनों डायरेक्टर्स से बेहतर जानते हैं, यही कारण है कि प्रभास जो कमाल बाहुबली में जो एनर्जी झोंक गए, वो साहो और राधे-श्याम में विलुप्त रही।
बाद बाकी Rajamouli की कामयाबी में उनके पिता श्री विजेंद्र प्रसाद का बहुत बड़ा हाथ है। म्यूजिक डायरेक्टर और उनके भाई एमएम कीरवानी भी अहम पिलर हैं। पर कमियों की बात करूँ तो ये लगातार उनकी दूसरी फिल्म है जिसमें पूरी पिक्चर का सबसे कमज़ोर हिस्सा उसका क्लाइमैक्स है। बाहुबली 2 में भी अंत बेसिरपैर का था, RRR में भी कब क्या क्यों कैसे हो रहा है इसका औचित्य समझ से परे था। दोनों फिल्मों का क्लाइमैक्स देख लगता था जैसे फिल्म खत्म करने की अब जल्दबाज़ी हो गई है।
राम चरण को बार-बार श्रीराम कहना, उन्हें कॉस्टयूम, तीर धनुष थमाना एमोशन्स जगाने के लिए तो ठीक था पर स्क्रीनप्ले के लिहाज़ बहुत फोर्सफुल, बहुत क्लिशे था। आशा करता हूँ कि राजामौली की आने वाली फिल्म में ये कमी देखने को नहीं मिलेगी।
बहरहाल, एक तरफ साउथ फिल्म इंडस्ट्री के लार्जर देन लाइफ कैरिक्टर्स बॉलीवुड को चुनौती दे रहे हैं तो दूसरी ओर झुंड से अलग बनी फिल्म The Kashmir files का ब्लॉकबस्टर होना भी बॉलीवुडिया टिपिकल रोमांटिक ड्रामा फिल्मों का धंधा चौपट करने वाला है।
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अब सवाल आपसे है, एक दर्शक के नाते आपको क्या लगता है कि 4-5 साल बाद शाहरुख खान की मच-अवेटेड फिल्म ‘पठान’ और मिस्टर पर्फेक्शनिस्ट आमिर खान की फॉरेस्ट गंप रीमेक फिल्म लाल सिंह चड्ढा साउथ सिनेमा की बढ़ती पॉपुलरिटी के बीच अपना स्थान बना सकेगी?
March 27, 2022 @ 11:08 PM
बेहतरीन
March 28, 2022 @ 1:43 PM
Directing movies is a passion. Once you achieve a certain height, you feel as if all is done. And that’s time when directors loose their grip. Also I feel – ashutosh is happy with hia lagaan, anil sharma has achieved rhe same with gadar… It’s over for them.
Nothing left.
March 28, 2022 @ 4:33 PM
well said sir, well said. Instead of them, Rajamouli’s greed for making something new is growing rapidly day by day. He is limitless.
March 28, 2022 @ 10:22 PM
बेहतरीन लिखा है
March 28, 2022 @ 4:36 PM
शानदार भैया , बहुत ही बढ़िया
March 30, 2022 @ 10:37 AM
Mind blowing! Bahut shandar vivechna👌