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Solo Trip: एक बार फिर मेरे दिल में ‘धुक-धुक’ और पेट में ‘गुड़-गुड़’ होने लगी। मन divert करने के लिए मैं बातें करने लगी और बातों में लगे-लगे अचानक ‘सारथी’ ने टोका “यार ये बस जो अभी निकली, ये हमारी bus तो नहीं थी?”

Solo Trip सुनते ही मन में एक्साइटमेंट और एडवेंचर के साथ-साथ डर का मिक्सचर बन जाता है। जब भी अकेले कहीं जाने के बारे में सोचती थी तो हर बार डर इतना हावी हो जाता था कि एक्साइटमेंट कहीं दिल के एक कोने में दबकर बैठ जाता था और मैं एक बार फिर सोलो ट्रिप का प्लान कैंसिल कर अपना लैपटॉप ऑन करके बैठ जाती थी News लिखने।

लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। सबसे पहले तो मैंने अपना डर को दूर करने के लिए एक्साइटमेंट का लेवल इतना हाई कर लिया कि डर बिचारा माइनॉरटी बनकर कोने में दुबक गया और इस बार यार दोस्त संगी साथियों ने भी हर संभव कोशिश की कि मैं हिम्मत करूँ और सालों से सोची अपनी Solo trip के सपने को साकार करूँ। बस फिर क्या था, छोटों का विश्वास और बड़ों का आशीर्वाद लेकर निकल पड़ी मैं अपनी पहली सोलो ट्रिप पर,

कहाँ?

Solo Trip

देवभूमि उत्तराखड़ की पावन धरती ऋषिकेश के लिए।

जब एक बार जाना तय हो गया तो ज़्यादा न सोचते हुए, एक ठंडी सांस ली और बस की टिकट बुक कर डाली। tickets book होने के बाद दोस्तों को बताया तो सभी ने एक्साइटमेंट में पार्टिसपेट ज़रूर किया लेकिन कहीं न कहीं उनके चेहरे पर मेरे लिए एक डर की झलक दिखाई देने लगी। उनका डर मुझे नजर आ रहा था लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं क्योंकि वो भी जानते थे कि वो बोले तो मेरा डर फिर हावी हो जायेगा और एक confirmed bus ticket बेमौत cancel हो जायेगी । एक बार फिर सबने मेरा सपोर्ट किया और हिम्मत बढ़ाने लगे।

लेकिन जैसे जैसे दिन नज़दीक आता जा रहा था, मैं इक्साइटिड होने के साथ-साथ घबराती जा रही थी। आखिर कैसे लोग होंगे वहाँ? कहीं कुछ गलत हो गया तो? किसी ने अकेला देखकर बदतमीजी करने की कोशिश की तो? दुनिया भर की तमाम नेगेटिविटी मेरे दिमाग में चल रही थी लेकिन साथ ही दोस्तों का बोल दिया था कि अब अकेले जा रही हूँ तो, अपनी बात से पलटने का दिल भी नहीं कर रहा था।

अब वो दिन आ गया जिस रात की बस बुक थी। मैंने डर को खूंटी पर टाँगकर, खूंटीपर टंगे कपड़ों को पहना और अपना कुछ ज़रूरी सामान पैक कर लिया।
यहाँ ज़रूरत के सामान में कपड़ों के सिवा जो Solo ट्रिप के लिए मुझे ज़रूरी लगा वो है –
साबुन, पेस्ट, जो हर ट्रिप से पहले सब रखते ही है।
एक टॉर्च
चप्पलें
Band-aids और paracetamol
Sanitary pads
और मेरे एक दोस्त की मेहरबानी से (हालांकि मेरा बिल्कुल मन नहीं था रखने का) mini Jungle Knife, जिसको लेकर मुझे अभी भी doubt है कि मैं मौके पर चला भी पाती या नहीं।

जब सारा सामान पैक हो गया, निकलने का नंबर आया तो लगा रात के 11 बजे Noida से आनंद विहार तक जाना भी तो एक समस्या है, इसका क्या किया जाए। पर एक दोस्त बाइक से साथ चलने के लिए तैयार हो गया तो हम समय से आंधे घंटे पहले पहुँच गए। बस वालों का message आया कि बस 00:30 तक आयेगी, असुविधा के लिए खेद है।

जहाँ हम खड़े थे, वहाँ से कुछ दूर एक group और खड़ा था, हमें लगा ये भी ऋषिकेश ही जायेंगे। आधे घंटे तक बातें करते रहे फिर गौर किया कि साथ खड़ा group अचानक गायब हो गया। हमें लगा होगी कोई वजह, उनको कहीं और जाना होगा। एक बार फिर मेरे दिल में ‘धुक-धुक’ और पेट में ‘गुड़-गुड़’ होने लगी। मन divert करने के लिए मैं बातें करने लगी और बातों में लगे-लगे अचानक ‘सारथी’ ने टोका “यार ये बस जो अभी निकली, ये हमारी bus तो नहीं थी?”

“हमारी कैसे हो सकती है? वो तो 00:30 आनी थी न?”

“अरे देखो सवा बारह हो गया है?”

मैं सड़क की तरफ पीठ करके खड़ी थी, इसलिए मैं देख ही न पाई कि कौन सी Bus निकली। हमने तुरंत bike start की और लग गए उस निकली हुई bus के पीछे। हमने बस का नंबर देखा तो वो मेरी बस का ही था। मगर बस इतनी शर्मीली थी कि कहीं रुक ही नहीं रही थी। आगे जाकर एक दूसरा छोटा सा पेट्रोल पंप था जहाँ फाइनली बस रुकी। बस मुश्किल वो बस 5 से 6 मिनट के लिए रुकनी थी, इस बीच मेरे भले दोस्त मुझे बस के अंदर बैठाने गए ही थे और पीछे उनका, Technically मेरा, क्योंकि वो हेलमेट मैं लगाकर आई थी; चोरी हो गया।

इन सारी हड़बड़ाट में मेरी घबराहट कहाँ दुबक गई, मुझे पता ही न चला। जब तक मैं कुछ सोचती, समझती, डर को पैर पसारने की जगह देती, बस दिल्ली से निकल चुकी थी। आस पास बैठे कुछ लोग अपने दोस्त, फैमिली के साथ थे। पर मैं तो अकेली हूँ, किससे बात करूँ? जब कोई न मिला तो खुद से बातें शुरु कर दीं। हर एक चीज़ को गौर से देखती, उसके बारे में सोचती मैं तीन बजे के आसपास कब सो गई मुझे पता न चला। सुबह जब नींद खुली तो बस हरिद्वार पहुँच चुकी थी। फिर महादेव का नाम लेकर मैंने अपनी जर्नी की शुरुआत की।

अपने कमिटमेंट के अनुसार बस वाले ने हरिद्वार से सभी यात्रियों के लिए एक वैन उपलब्ध कराई जो ऋषिकेश तक जाती थी। वैन ने मुझे तपोवन में उतारा। मैंने ठहरने की जगह किसी होटल में नहीं बल्कि हॉस्टल में बुक कराई थी। इसके दो कारण थे, पहला हॉस्टल सस्ता था और मैं बजट travel कर रही थी, और दूसरा मैं कभी अकेले होटल में ठहरी नहीं थी और रुकना भी नहीं चाहती थी। मैंने गूगल मैप ऑन किया और उसे फॉलो करते हुए हॉस्टल की तरफ बढ़ गई। लेकिन दो बार रास्ता भटक गई। चलते-चलते मुझे भूख लगने लगी तो याद आया, कि chips के पैकेट तो मैं बस में ही भूल गई।

Solo Trip

लंबे वॉक के बाद फाइनली मैं अपने हॉस्टल के सामने पहुंच गई। लेकिन अंदर नहीं गई। हॉस्टल के दर्शन किये और वापस मुड़ गई। हॉस्टल में 12 बजे चेक इन टाइमिंग थी। और मेरे पास अभी काफी वक्त था तो मैं बिना बैग रखे चलती रही और लक्ष्मण झूला देखने पहुँच गई। लक्ष्मण झूले के बीच में पहुँचकर मैं ठहर गई और ठंडी हवा का आनंद लेने लगी।

ऐसा लग रहा था कि ये हवा मुझे बहा कर दूर ले जाएगी। इस डर से मैंने ज़ोर से झूले को पकड़ रखा था। झूला पार करते ही मैंने एक कप चाय ली और गंगा किनारे पहुँच गई। गंगा के शुद्ध जल को माथे से लगाया और वहीं बैठ गई। घर से निकलने से पहले जो मन में डर था वो गंगा मईया को देखते ही गायब हो गया।

अब डर नहीं था लेकिन झिझक बाकी थी। तीन दिन अकेले! सोचकर मुश्किल लग रहा था। फिर सोचा जब आ ही चुकी हूँ तो अब जो होगा देखा जाएगा। यही सोचते हुए हॉस्टल में अर्ली बुकिंग के लिए कॉल किया, शायद मिल जाए!

अर्ली चेक इन से तो उन्होंने मना कर दिया लेकिन हॉस्टल आने की permission दे दी। घड़ी में 8.30 बजे थे। हॉस्टल से लक्ष्मण झूले तक आना तो आसान था लेकिन वापस जाना उतना ही कठिन लग रहा था क्योंकि आते टाइम तो मज़े से उतरते हुए आना था लेकिन वापस मुझे पहाड़ चढकर जाना था। जैसे तैसे, बैठते उठते मैं हॉस्टल पहुँच गई।

हॉस्टल में एक कॉमन रूम था। वहाँ चहल-पहल थी। कोई सुबह का ब्रेकफास्ट कर रहा था, तो कोई अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था। वहीं कुछ लोग घूमने के लिए तैयार थे। मैंने इधर-उधर देखा और एक सोफे पर जाकर टिक गई। वहीं मैंने चाय और पराठे का ऑर्डर दिया और tasty से गोभी पराठे खाने के बाद रात की थकान मिटाने के लिए उसी सोफ़े पर सो गई। 2 घंटे बाद नींद खुली तो सामने एक मासूम सा चेहरा, बड़ी सी मुस्कान लिए मेरे सामने एक लड़का बैठा हुआ था।

“Hii”
“Hello” – मुझे बात करने में संकोच हो रहा था
“आप अकेले आए हो?” उसने मासूमियत से पूछा
मैंने झिझकते हुए हाँ में सिर हिला दिया।
“मेरा नाम आर्का है”
“आर्का, ये कैसा नाम है?” मेरे मुंह से निकला

Solo Trip rishikesh

मुझे दो मिनट उसके नाम का मतलब समझने में लगा। आर्का मतलब sunrays, पर मेरे लिए उनका नाम रहा IIT Kharagpur, जब मैं उसे इस नाम से पुकारती तो वो चिढ जाता और कहता, आर्का नाम है मेरा आर्का। लेकिन मुझे बड़ा मजा आ रहा था उन्हें चिढ़ाने में।

बीते एक हफ्ते से आर्का Rishikesh में ही थे। पहले अपने घरवालों को ऋषिकेश घूमने के लिए आए थे फिर उन्हें भेजकर यहीं के होकर रह गए। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि न जाने वो हॉस्टल में सबको कितने दिनों से जानते हैं। सब उसके अच्छे दोस्त बन गए थे। शायद आर्का खुद को “जिंदगी न मिलेगी दोबारा” का ऋतिक रोशन समझते हैं, न न, इसलिए नहीं कि उसकी लैला जैसी गर्लफ्रेंड है, बल्कि इसलिए क्योंकि वो ट्रिप के दौरान भी काम ही कर रहे थे। अपनी प्लानिंग में आर्का भी 40 तक नोट छापने का पूरा प्लान बनाए बैठे थे।

आर्का ने मुझे जब भी बुलाया, लेडी कृष्णा कहकर ही बुलाया। (ऐसा क्यों ये मैं आगे बताउंगी)।

Solo TripSolo Trip

आर्का से hello hii के बाद जब मुझे check-in करने का मौका मिला तो मैं bunk bed पर गिरी और सो गई। थकान दूर करने और नींद पूरी करने में काफी वक्त बीत गया। शाम हो चुकी थी और गंगा आरती का वक्त निकला जा रहा था। मैं तैयार हुई और त्रिवेणी घाट की गंगा आरती देखने पहुँची। हर शाम, भारत के तीन पवित्र शहर हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी में गंगा आरती की जाती है। कहा जाता है कि यह एक बहुत ही शक्तिशाली अनुष्ठान है। हर शाम 6 से 7 बजे के बीच गंगा आरती की जाती है। दुनिया भर से लोग गंगा आरती में शामिल होने के लिए आते हैं।

Solo Trip

आरती के बाद मैं फिर राम और लक्ष्मण झूला देखने गई। Rishikesh में गंगा नदी को क्रॉस करने के लिए दो बड़े से लोहे के पुल दिखाई देते हैं जिन्हें राम झूला और लक्ष्मण झूला कहते हैं। पानी से 70 फीट से भी ऊपर लटकते और लगभग 450 फीट लंबे, ये दो पुल दुनिया भर के टूरिस्ट के बीच फेमस है।

कहते हैं कि लक्ष्मण जी ने सिर्फ दो जूट की रस्सियों का उपयोग करके गंगा (जहां लक्ष्मण झूला खड़ा है) को पार किया था। इसी जगह पर साल 1889 में लखमन नाम से 284 फीट लंबा एक लटकता हुआ रस्सी पुल उसी स्थान पर बनाया गया था। फिर साल 1924 में आई बाढ़ में रस्सी का बना पुल बह गया। इसके बाद, लोहे से बना एक और पुल, यूपीपीडब्ल्यूडी (UP-PWD) द्वारा साल 1929 में बनाया गया था। यह पुल टिहरी और पौड़ी (टिहरी में तपोवन और पौड़ी में जोंक) के दो जिलों को भी जोड़ता है।

Solo Trip

खैर लक्ष्मण झूला को पार करते ही मैं गंगा किनारे गई और वहां घंटो बैठी रही। गंगा किनारे सबकुछ बिलकुल परफेक्ट था। मन शांत हो चुका था और अब कोई डर नहीं था। ऐसा लग रहा था कि सारी परेशानी और तकलीफ गंगा मईया ने हर ली है। मैं काफी देर तक गंगा नदी में पैर डालकर बैठी रही। जब वहाँ से उठी तो सारी नेगेटिविटी दूर हो चुकी थी। फिर आर्का के साथ ही गंगा किनारे मैं डिनर करने बैठी ही थी कि तभी ज़ोरदार तूफान ने दस्तक दी। ऐसा लग रहा था जैसे गंगा मईया गुस्से में हैं। लक्ष्मण झूले पर सेल्फी लेते लोग अचानक भागने लगे। मुझे हॉस्टल जाना था जो झूला के दूसरे तरफ था। लेकिन तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा था।

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फिर किसी ने डराया कि यहाँ रात में कई बार घंटों तक तूफान बंद नहीं होता है।

मैं घर से इतनी दूर, almost अकेली, अजनबी शहर में रात के वक़्त अपनी hostel जाने के इंतज़ार में थी, जाने कब तूफान थमेगा और कब hostel जा सकूँगी!

– क्रमशः (to be continued…)

अगर आपको इस किस्से का यहाँ तक का हिस्सा पसंद आता है तो शेयर करें, अगला part बस कुछ ही देर में आपके सामने होगा। (link यहीं इसी sentence के नीचे आने वाला है)

प्रगति राज


6 Comments

  1. Shivani
    April 28, 2022 @ 1:40 PM

    Bahot accha likha h yarr mazza aa gya padh ke

    Reply

  2. Piyush Jha
    April 28, 2022 @ 4:16 PM

    Wow!Just Awesome♥️🇳🇵

    Reply

  3. Pratik
    April 28, 2022 @ 6:25 PM

    अब इसको पढ़ने के बाद मेरे दिल में ‘धुक-धुक’ और पेट में ‘गुड़-गुड़’ होने लगी 😆 जल्दी लाओ नेक्स्ट एपिसोड 🤌

    Reply

  4. Arka
    April 28, 2022 @ 6:37 PM

    Arre awesome. Bohot ache se experience share ki ho! ❤️😁

    Reply

  5. Divya Sharma
    April 28, 2022 @ 9:19 PM

    हम्म, इंतजार है अगले किस्से का।जानना चाहती हूँ मेरा शहरों आपके दिल को और कितना खुरच पाया।

    Reply

  6. Khushboo
    April 29, 2022 @ 11:02 AM

    Excited for the next part

    Reply

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