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Nirmal Pathak ki Ghar Wapsi Review: और अगर आप बिहारी लड़की हैं तो आप जानती होगी की शादी से पहले आपकी राय नहीं ली जाती, इस वेब सीरीज ने इसे बहुत खूबसूरती से दिखाया है। 

Nirmal Pathak ki Ghar Wapsi Review: घर वापसी और बिहार इसका नाता सदियों पुराना है जैसे बिहार में जन्म और जातिवाद… जी सही पढ़ रहे हैं आप, बिहार हो और जातिवाद ना हो ऐसा मुमकिन होता तो नहीं दिख रहा। इसी जातिवाद और बाकी कुप्रथाओं पर प्रहार करते हुए बिहारियत को खुद में समेटे सोनी लिव की वेब सीरीज है “निर्मल पाठक की घर वापसी”

एक लड़का 24 सालों बाद अपने गांव आता है, बिहार बक्सर और पहला ही इंप्रेशन बिहार को लेके ये होता है की उसका बैग और जूता चोरी हो जाता है।  वो बक्सर दो कारणों से आया है पहला उसके चाचा के लड़के आतिश की शादी और दूसरा अपने पापा के अस्थियों का बक्सर के गंगा में विसर्जन….

कहानी को लिखा है राहुल पांडे ने और सच में बहुत खूबसूरत लिखा है, ऐसी जमीनी लेखनी मैंने शायद ही कभी पढ़ी या देखी हो। जब निर्मल गांव में प्रवेश करता है उसकी बुआ दौड़ती चिल्लाती आती है,”ए चाची ए बड़की माई हमार भतीजा आइल बा हो” तब ऐसा लगता है जैसे अपने गांव की कोई बुआ आपके घर आने पर खुश हुई हो। पहली बार ऐसी वेब सीरीज देख रही हूं जिसमें भोजपुरी को भोजपुरी के जैसा बोला गया है। 

मेरी एक बहुत बुरी आदत है मैं लिखते–लिखते भटक जाती हूं और दूसरा ही कोई रूट पकड़ लेती हूं। हां तो मैं कहां थी ?? कहानी पर…. तो कहानी का कुल जमा सार ये है की मुख्य किरदार निर्मल गांव तो आता है शादी में शामिल होने लेकिन यहां का जातिवाद और बाकी जकड़े हुए रीति–रिवाजों को देखकर मन उचट जाता है व्याकुल हो जाता है वो…. तो फिर कैसे इस गांव में वो अपनी बेचैनी को समेटे इस गांव की रूढ़िवादिता और पुराने दकियानूसी प्रथाओं के बीच खुद को स्थापित कर पाता है ??

Nirmal Pathak ki Ghar Wapsi Review

आगे बात करें तो इस वेब सीरीज का निर्देशन सतीश नायर और राहुल पांडे ने किया है और इन दोनों ने अपने अपना काम बखूबी और बहुत बेहतरीन ढंग से किया है। पहले एपिसोड से लेकर आखिरी एपिसोड तक आपको बांधे रखा है। जैसे–जैसे कहानी आगे बढ़ती है आपको हंसाना गुदगुदाना छोड़ रुलाना शुरू कर देती है।

आपकी आंख हर एपिसोड के साथ और गीली होती जाती है। साथ ही गांव का जो चित्रण किया गया है वो काबिले तारीफ है, अगर आप गांव से हैं और कभी गांव गए हैं तो ये वेबसरीज़ जरूर आपको आपके गांव के मिट्टी की याद दिलाएगी। हवा का एक प्यारा झोंका गांव की खुशबू समेटे आप तक बड़े प्यार से पहुंचाती है ये वेब सीरीज। 

संगीत की बात करूं तो मुझे हमेशा से पारंपरिक संगीत पसंद है जी मुझे इस वेब सीरीज से जुड़ाव  की एक और वजह देती है।

 “जिंदगी प्यार की एक उलझी पहेली

तन्हा होके भी ये खुद की ही सहेली”

ये गाना आपके दिल को छू जायेगा आपके अंतर्मन के सारे तारों को झकझोर जायेगा आपके सारे बुझे एहसासों को फिर से जीवित कर जायेगा। और पार्श्व संगीत की बात करूं तो पीछे बजता वो मधुर बांसुरी का संगीत और बाकी कलाकारों का अभिनय आपकी आंखें गीली करने के लिए काफी है। 

कलाकार!! हा सभी कलाकारों ने अपने अपने हिस्से के किरदारों को ईमानदारी से जिया है… हा सच कह रहीं हूं जिया है किरदारों को जिंदा कर दिया है, चाहे वो गेंदा बुआ के किरदार में गरिमा विक्रांत हो या फिर संतोषी पाठक के किरदार में अलका अमीन।

आतिश के किरदार में आकाश मखीजा ने भी खूब वाहवाही बटोरी है…वहीं निभा के किरदार में तनिष्क राणा को भुला नहीं जा सकता। गरिमा विक्रांत और अलका अमीन अपने संवाद बोलते हुए लग ही नहीं रहे थे की ये बिहारी नहीं हैं।  इसके लिए संवाद लेखक तारीफ के पात्र हैं। 

संवाद जान हैं इस वेब सीरीज की,

“छोड़ के गइल आसान होला रुक के बदलल मुश्किल” या फिर “धर्म, धन और आशीर्वाद ये मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं चुनाव जीतने के लिए” ये संवाद चोट करती हैं आपकी अंतरात्मा पर। 

और अगर आप बिहारी लड़की हैं तो आप जानती होगी की शादी से पहले आपकी राय नहीं ली जाती, इस वेब सीरीज ने इसे बहुत खूबसूरती से दिखाया है। 

Nirmal Pathak ki Ghar Wapsi Review

अब अगर बात की जाए की वेब सीरीज देखने लायक है या नहीं इसके माइनस प्वाइंट क्या हैं ??? तो ज्यादा कुछ नहीं लेकिन इस वेब सीरीज ने भी बिहार को उसी गुड़ागर्दी और बाकी नजरिए से देखा है जोकि आजतक बॉलीवुड करते आया है, मैं नहीं कहती कि बिहार बिलकुल ही ऐसा नहीं है लेकिन हां बिहार ऐसा भी नहीं है जैसा दिखाया गया है। बाकी 5 एपिसोड की छोटी सी वेब सीरीज है देख जाइए आपको निराश नहीं करेगी। 

प्रिया (किस्सा कैफ़े)


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

1 Comment

  1. Pradeep Kumar Pandey
    November 18, 2022 @ 8:44 AM

    शानदार जबरजस्त 👌

    Reply

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