KGF Chapter 2 की खदान में हैं एक से बढकर एक डायलॉग
वाक़ई KGF Chapter-2 के हिंदी वर्जन में उम्दा डायलॉगबाजी है। सिंगल स्क्रीन के दर्शक वर्ग को खूब पसंद आएंगे। तालियां, सीटियां और हूटिंग से करेंगे स्वागत।
ख़ैर कई दमदार पँच थे KGF Chapter 2 की माइंस के अंदर, इस सोने की खदान से जो हीरा डायलॉग निकला है “अपन को इतिहास पर कतई भरोसा नहीं है। क्योंकि होता कुछ है और लिखवाते कुछ और है। कही सुनी बातें मत लिखना, आँखों देखी लिखना, उसमें वजन होता है।”
इसे डायलॉग की खुदाई करेंगे, तो इसके बहुत गहरे मायने निकलेंगे। जो सीधे मुगलों यानी मनोज मुन्तशिर की भाषा में डकैत व वर्तमान वामपंथी के कालखण्ड में ले जाता है।
KGF Chapter 2 का सबसे पहले डकैतों के कालखण्ड की बात करते है। इतिहास की निगाहों में जो असल घटनाक्रम था, माँ भारती के सपूतों के शौर्य व साहस के रक्त से सींचा अखंड भारत वर्ष की गाथा थी। इतिहास साक्षी रहा, तब उन डकैतों ने उन सब पन्नों को बर्बाद करवा दिया। फड़वा दिया। नालंदा व तक्षशिला विश्वविद्यालय भारत का मस्तिष्क था। इसे जला दिया गया। इतिहास को डराया और चाटुकार लेखकों की कलम की स्याही से उसकी आँखें फोड़ दी। अंधा कर दिया और बंदी बना लिया। ये चाटुकार इतिहास के संजय बन बैठे। जो अपने आकाओं के इशारे पर नामे पर नामे लिखते गए, उनकी झूठी शौर्य गाथाओं और महानता का बखान लिखा।
उन सपूत वीरों के शौर्य व साहस को मिटा दिया। उन्हें सीमित दायरे में जगह दी। इतिहास रोता रहा। इसकी चीख किसी ने सुनी। सब मुगलों के नामे बांच रहे थे। तभी तो मुगलों को राष्ट्र निर्माता बताते न थकते है।
इतिहास क्या था। लिखवाया क्या गया।
मुगल निकले तो गोरे आ गए। उन चाटुकारों की रोजी-रोटी मजे से चलती रही। साथ ही अपनी पीढ़ियों को सेट कर दिया। फिर उन लोगों ने अपने बाप-दादाओं के नक्शे कदम पर चलते हुए, गोरों की शान में कसीदे पढ़े और सत्ता के अनुरूप बाप बदला। सैकडों स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्य, साहस व बलिदान से गोरे भारत छोड़कर भागे थे। स्वतंत्र भारत में लोकतांत्रिक सत्ता स्थापित हुई। चाटुकारों के सामने नया आका खड़ा था। फिर क्या, कूद पड़े चाटूकारिता करने के लिए। आगे चलकर इन लोगों ने अपने आप को वामपंथी कहलाना पसंद किया।
जब स्वतंत्र भारत में नई सत्ता आई, तो उसने इनकी कलम में पैसे डाले और अपने हिसाब से इतिहास को पन्ने दिए। भारत की स्वतंत्रता में जिन सेनानियों का योगदान था, हँसते-हँसते मौत को गले लगा लिया। उन्हें अतीत की तर्ज पर छोटा कर दिया और स्वतंत्रता के नामे में नेहरू-गांधी परिवार को केंद्रित कर दिया। भारतीय संसद में कांग्रेसी नेता चौड़े होकर कहते मिलते है, नेहरू-गांधी परिवार ने देश की आजादी में कुर्बानी दी है। आपके यहां से कोई कुत्ता भी आजादी की लड़ाई में नजर आया।
इस लेफ्ट विंग ने भारत वर्ष की विरासत को खत्म कर दिया। कुछ भी न छोड़ा। उन योद्धाओं का नाम अवश्य रखा क्योंकि इसे रखना आवश्यक था। वरना मुगलों की झूठी गाथाओं को किसके सक्षम बड़ा बतलाया जाता। बाक़ी गाथाओं को जला दिया।
गांधी-नेहरू परिवार को सबको बौना कर दिया। भारत को इनकी बपौती बतलाते है। इन लोगों की नजरों में धरोहर है।
अगर कोई असल नायक को बाहर लाते है। तो ये चाटुकार तुरन्त प्रभाव अति राष्ट्रवाद और प्रोपगैंडा क़रार दे जाते है।
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इसलिए रॉकी ने पत्रकार आनंद इंगलाई को कहता है। ईमानदारी से आँखों देखा लिखना, कही सुनी बातों से इतिहास को पन्ने न देना।
तभी तो आनंद कहता है ‘रॉकी ने खुद लिखा था कैसे मरना है, लेकिन मैं लिखूँगा कैसे जिया और क्या था’ केजीएफ़ के चैप्टर 2 से यह संवाद उन चाटुकारों को संदेश था। निष्पक्षता से कलम चलाओ।