राजस्थान, गुजरात और हरियाणा, ये कुछ ऐसी states रही हैं जहाँ लड़कियों की कद्र करना दूर, उनके लिए ज़िंदा रह पाना बहुत मुश्किल होता है। बड़े घरानों को अपना वंश बढ़ाने के लिए लड़का चाहिए तो गरीब आदमी दहेज से बचने के लिए सिर्फ लड़का चाहता है। ऐसा नहीं कि बेटी चाहिए नहीं, बेटी चाहिए, पर दूसरे के घर की, किसलिए?
बच्चा पैदा करने के लिए।

इसी मुद्दे को लेकर शुरु होती है JayeshBhai Jordar की कहानी, जहाँ Jayeshbhai यानी रणवीर सिंह 9 साल की बेटी का पिता है और अपनी बीवी मुंद्राबेन (शालिनी पांडे) के छः अबॉर्शन करवा चुका है। नहीं नहीं, ऐसा वो अपनी मर्ज़ी से नहीं करवाता, बल्कि उसके पिता और गाँव से पूर्व सरपंच रामलाल पटेल उर्फ बोमन ईरानी और माँ यशोदा पटेल बोले तो रत्ना पाठक के कहने पर करता है।
अब मुद्रा फिर प्रेग्नेंट है। बकरे के सींग हिलाने से लेकर बाबा-ओझा को बुलाने तक, माँ रत्ना पाठक सब टोटके कर चुकी हैं।
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यहाँ एक और गंभीर मुद्दा है, साटा ब्याह। इसमें एक परिवार के लड़का लड़की को बचपन में ही दूसरे परिवार के लड़के-लड़की से फिक्स कर दिया जाता है। मतलब एक भाई बहन दूसरे घर के भाई बहन से शादी कर लेते हैं और इसमें एक घर में जैसा व्याहवार वो बहु का करते हैं, दूसरे घर में भी बहु के साथ वही सब किया जाता है।
यहाँ जयेशभाई की बहन को उसका पति मारता है तो जयेश भी अपनी बीवी को मारने का नाटक करता है। क्योंकि असल में Jayeshbhai अपनी बीवी से बहुत प्यार करता है। उसकी सुपरस्मार्ट बड़बोली बेटी सिद्धि (जिया वैद्य) उसकी लाडली है और वो खुद चाहता है कि उसको एक बेटी और हो।
मगर जब पता चलता है कि पेट में वाकई बेटी है, तो jayeshbhai खिसक लेते हैं।

अब एक और मुद्दा पकड़ा है – महिला मुखिया। कहने को मुखिया मुद्रा है पर Jayeshbhai एसपी हैं। नहीं वो सुपरिटेन्डेन्ट ऑफ पुलिस नहीं, बल्कि सरपंच पति हैं। अब सारा काम धाम देखना तो बाउजी ने ही है, मुद्रा नाम की मुखिया है।
बहरहाल बेटी और प्रेग्नेंट बीवी को लेकर भागे Jayeshbhai कुछ जगह जोरदार भी लगते हैं और interval तक असरदार भी लगते हैं। लेकिन यहाँ से फिल्म बेतुकी होने लगती है, बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताने लगती है और Punit Issar के दमदार डोलों पर खत्म होती है।
डायरेक्टर दिव्यांग ठक्कर की ये पहली फिल्म है। लिखी भी उन्होंने ही है।
पहली ही फिल्म में उन्हें रणवीर सिंह, बोमन इरानी, रत्ना पाठक, पुनीत इस्सर और शालिनी पांडे से दमदार कलाकार और उनके अपने ही गाँव से जुड़ी अच्छी story मिली है, दिव्यांग ‘मुंद्रा’ नामक गाँव से हैं जो कच्छ गुजरात में पड़ता है) प्लस यशराज फिल्म्स जैसा बैनर मिला है, आदित्य चोपड़ा प्रोड्यूसर मिले हैं, इतना कुछ पहली ही फिल्म में मिलने पर दिमाग बौराना लाज़िम हो जाता है, इसमें आप कुछ नहीं कर सकते।
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फिल्म का फर्स्ट पार्ट, जहाँ कहानी कही जा रही है, अच्छा है पर इंटरवल के बाद इसी समस्या का समाधान देने के लिए दिव्यांग के पास सिर्फ एक पप्पी बचती है। एक पप्पी का मुद्दा उन्होंने अच्छा उठाया है कि गाँव-ग्राम की शादियों के बाद विवाहित जोड़ा बच्चे तो चार कर लेता है लेकिन चुम्मी एक नहीं ले पाता।
लेकिन kiss जैसे खूबसूरत एहसास को मुद्दा बनाकर दिव्यांग ने अपने किये कराये पर दही डाल दी है।
हाँ, एंड नोट, लास्ट सीन उन्होंने बहुत अच्छा लिखा है, उसकी तारीफ बनती है। अपने गाँव के नाम पर फीमेल लीड का नाम रखना, अच्छा सिंबॉलिक इफ़ेक्ट बनाता है।
Jayeshbhai की acting तो है बहुत jordar
एक्टिंग की बात करें तो रणवीर सिंह को इस वक़्त एक्सप्रेशंस और एनर्जी में बीट करने वाला शायद ही कोई एक्टर मौजूद है। उनकी बॉडी लैंग्वेज, एक्सप्रेशन और उसी के हिसाब से voice, सुपर्ब एनर्जी, सब कमाल की है।
बोमन ईरानी भी अपने रोल में बहुत जमे हैं। रत्ना पाठक ने दो सीन्स में तो मज़ा ला दिया है।
शालिनी पांडे मासूम सी, गोलू मोलू सी, डरी-डरी बहुत अच्छी लगी हैं। जिया वैद्य गजब चाइल्ड आर्टिस्ट हैं। एक जगह छोड़कर कहीं लाउड नहीं हुईं, कहीं ओवर नहीं गयीं और शर्तियाँ फिल्म देखने वालों को पसंद आने वाला करैक्टर प्ले कर गयी हैं।
बबली पांडे का छोटा सा रोल भी अच्छा है लेकिन पुनीत इस्सर बर्बाद हुए हैं। ऐसे आर्टिस्ट को waste करने से बचना चाहिए। Doctor बनी actress कमाल की हैं। इनको पहले कहीं देखा है पर नाम याद नहीं आ रहा है।
म्यूजिक के मामले में विशाल शेखर ने बहुत सारे शोर के बीच, जयदीप साहनी का लिखा “धीरे-धीरे सीख जाऊँगा” गीत बहुत शानदार कम्पोज़ किया है। हर बाप को ये गाना सुनना चाहिए।
Cinematography दीवान की है और बढिया है। बस गुजरात के रेगिस्तान का एक भी शॉट न होना थोड़ा सा अखरता है पर हो सकता है एडिटिंग में हट गया हो।
क्योंकि
नम्रता राव की एडिटिंग के बाद फिल्म एक घंटे 55 minutes की ही बचती है। अब इतने में ही तीन गंभीर मुद्दे हैं, एक पप्पी का चक्कर है और साबुन सूंघकर बच्चा पैदा करती महिला भी है। ये नया नशा आया है मार्केट में)
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Final Virdict of Jayeshbhai Jordar
कुलमिलाकर ये फिल्म अपने समय से लेट बनी है। Jayeshbhai की ये कहानी आज से 15 साल पहले ज़ोरदार भी होती और असरदार भी लगती। फिर इतने गंभीर मुद्दे पर फूहड़ कॉमेडी फिल्म को बहुत हल्का कर देती है। पुनीत इस्सर, पहलवानों का आना, पूरा का पूरा गाँव बिना औरत का, ढाबे में सरदार, ट्रक वाला बॉडी-बिल्डर, ये सब अति की पराकाष्टा लगती हैं।
बाकी राजिस्थान या गुजरात में लड़का-लड़की में कितना भेदभाव है ये वाकई जानने के इच्छुक हैं तो parched देखिए। गुजराती बहुओं की कैसी कद्र है ये देखने के लिए ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ भी देखा जा सकता है।
बाक़ी बॉलीवुड की दस में 9 फिल्म्स में अगर कोई बाबा दिखाते हैं तो वो ढोंगी ही निकलते हैं, बेवकूफाना हरकतें करते ही मिलते हैं, सिद्ध पुरुषों से या तो राइटर-डायरेक्टर कभी मिले ही नहीं है, या वो भी ऐसी ही फ़िल्में देखकर बड़े हुए हैं जिसमें बाबा ढोंगी ही होता है, पीर फ़कीर दयालु ही होता है।
थिएटर में खर्च करने की सलाह तो मैं नहीं दूंगा पर रणवीर की जोरदार ऐक्टिंग के लिए जब OTT पर आए, तब आप देख सकते हैं।
अगले हफ्ते दो फिल्में रिलीज़ हो रही हैं, Bhool Bhulaiyaa 2 और Dhaakad, आप बताएं आप पहले किस फिल्म का रिव्यू पढ़ना चाहेंगे?
Rating – 5/10*
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Trailer – Dhaakad and Bhulbhulaiyaa 2
May 13, 2022 @ 2:04 PM
Movie ka to nhi pta pr pr pr…
Review to bhai h Jordar
May 13, 2022 @ 2:13 PM
मूवी भी देखना एक बार, जब कभी free में देखने को मिले
May 13, 2022 @ 2:04 PM
विषय अब भी कहीं न कहीं समाज में मौजूद है।यकीन नहीं करोगे कि अब भी नयी बहुओं की सोच में संतान मतलब बेटा है भले ही बेटी होने पर वह इसे ही अपनी चाहत बताएं।संतान न होने की कंडीशन में मुँह से निकलता है कि एक बच्चा हो जाए भले ही लड़की।
रणवीर सिंह मुझे पसंद है।उनकी अदाकारी काबिलेतारीफ रहती है।कहीं पर भी लूज नहीं लगते।बाकी रीव्यू बढिया लिखा है।
May 13, 2022 @ 2:13 PM
हम शुरू से शहरों में रहे हैं तो यहाँ कभी कोई खास भेदभाव होता नहीं देखा. गाँव की स्थिति भिन्न होसकती है लेकिन इसमें अति दिखाई है
May 13, 2022 @ 5:44 PM
बढ़िया रिव्यु..
May 13, 2022 @ 6:02 PM
बहुत शुक्रिया