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Javed Akhtar Birthday Special: रॉकस्टार में कुमुद मिश्रा उर्फ खतारा भाई जब जनार्दन उर्फ रणबीर कपूर के लिए कहते हैं कि रहने दे तू, तेरा कुछ नहीं हो सकता। अबे तेरे अंदर न वो बात नहीं है, वो जो बात होती है न, वो तेरे म्यूजिक में है ही नहीं। तेरा कुछ नहीं हो सकता।

Video Credit – Eros Now

तब जनार्दन पूछता है “ऐसा क्या नहीं है मेरे में? क्या कमी है मुझमें?”

तो खतारा भाई दाँत भींच के बोलते हैं कि “अबे तेरा कभी दिल टूटा है? तूने कभी मुसीबत झेली है?”

यहाँ जनार्दन लूप में चला जाता है। वो खुद से सवाल करता है कि हाँ यार वाकई, मेरा तो कभी दिल ही नहीं टूटा? रहता भी अपने घर में हूँ। माँ-बाप भी ज़िंदा हैं। हाथ पैर भी सलामत हैं!

लेकिन फिर समय करवट बदलता है और पहली बार जनार्दन को इश्क होता है। इश्क होने पर नया नाम मिलता है, जॉर्डन! अब इश्क होता है तो दिल भी टूटता है। सब कड़वा लगने लगता है! सब इतना कड़वा हो जाता है कि घर से निकाल दिया जाता है! फिर सड़कों पर सोता है, फिर दरगाहों पर गाता है, फिर जब ऐसा लगता है कि अब और कुछ नहीं हो सकता, तब सितारा चमकता है और जनार्दन जाखड़, जॉर्डन रॉकस्टार बन जाता है।

मैंने जब ये फिल्म पहली बार 2011 में देखी थी, तब से लेकर लंबे समय तक खुद से ये सवाल किया था कि क्या वाकई मुश्किल हालात बेहतर कलाकार बनाते हैं?

बचपन से बागी थे Javed Akhtar

Javed Akhtar
Javed Akhtar जो जवानी के दिनों में शशि कपूर से लगते थे

फिर मेरा मौका लगा, ऐसे ऐसे गीतकार के बारे में जानने का, जिन्हें मैं ‘वन ऑफ द फेवरेट’ कह सकता हूँ।

ये जनाब हैं जावेद उर्फ जादू, (Javed Akhtar), जो बचपन से ही बाग़ी किस्म के इंसान थे। जब आठ बरस के थे तब घर के आँगन में माँ की डेड-बॉडी पड़ी देखी थी। इनकी मौसी ने कहा कि अच्छे से देख लो, तो अच्छे से देखने लगे कि चेहरा याद हो जाए। फिर पिता मुंबई चले गए तो ये खुद लखनऊ आ गए। यहाँ नानी के घर कुछ समय पले बढ़े तो ऐसे कि हर दिन हर शाम ताने खाते हुए।

इन्हें रोज़ बताया जाता था, इनके ज़हन में गोदा जाता था कि तुम्हारी पढ़ाई पर बहुत खर्च हो रहा है, पढ़ लिख लो तो किसी काबिल बनो। कुछ नहीं तो पोस्ट-ऑफिस में स्टाम्प लगाने लायक तो हो जाओ!

इनकी बनती थी तो बस अपने छोटे भाई से, लेकिन वो भी कितने दिन! अगले साल इनको अलीगढ़ भेज दिया गया और भाई लखनऊ ही रह गया ताकि बिन माँ के दोनों बच्चों को पालना ‘आसान’ हो जाए।

लेकिन दसवीं के बाद यहाँ से भी बोरिया बिस्तर उठ गया और पता चला कि अब सौतेली माँ के साथ भोपाल रहना होगा। पर जैसा शुरु में ही बताया, जावेद (Javed Akhtar) थे बाग़ी इंसान, हफ्ते भर में ही सौतेली माँ के घर से निकल लिए और अब दोस्तों के भरोसे हो गए। यहाँ जब मौका लगा तो क्लास के बाद दो बेंच जोड़कर उसी पर सो गए पर बाप की दूसरी बीवी के घर नहीं गए।

समय बीता तो BA में एक ऐसा दोस्त मिला (एजाज़) जिससे ज़्यादा बात तो नहीं हुई, पर उसने अपने कमरे में इन्हें रहने दिया और कभी-कभी एक दो रुपये भी इनके सिरहाने रख दिए। जब नहीं रखे तब जावेद ने खुद उसकी जेब से निकाल लिए।

अब भोपाल में रहते ग्रैजूएट होने का समय आ गया। पर न तो अबतक कॉलेज की फीस दी गई थी और न ही कॉलेज की तरफ से किसी ने माँगने की कोशिश की।

एक रोज़ बहुत बुखार हो गया तो पता चला कैन्टीन भी अब उधारी वालों के लिए बंद हो चुकी है। अब क्या करें?

पर तब दो क्लासफेलो फ़रिश्ते बनकर उभर आए और Javed को खाना दे दिया। ऐसे ही एक और मेहरबान आदमी मिला, मुश्ताक सिंह! मुश्ताक के यहाँ रहने खाने प्लस दारू का भी इंतज़ाम हो गया। ये जनाब Javed से उर्दू में भी बेहतर थे और शायरी में भी। ये सिख अनोखा दिलदार आदमी था, इसने खाने-रहने के साथ बदन पर चार कपड़े भी दिला दिए और खुद सिख होते हुए भी जावेद के लिए सिगरेट ज़रूर लाने लगा।

Javed akhtar
Javed akhtar अपने पिता जाँ-निसार-अख्तर और भाई सलमान के साथ, पिता के साथ ये जावेद अख्तर की दुर्लभ तस्वीर है। जाँ-निसार अख्तर तब के बहुत बड़े लेखक और गीतकार हुआ करते थे

इन्हीं का कड़ा उतारकर, खुद पहन जावेद 1964 में चल पड़े मुंबई की ओर। सौतेली माँ की तरह ही बाप के घर भी 6 दिन से ज़्यादा जावेद न रुके। अब 27 पैसे लेकर निकले जावेद स्टूडियो-स्टूडियो धक्के खाने लगे। साल भर में कुछ काम मिला भी तो खाने-पीने में निकल गया। कोई रात स्टेशन पर भीगते गुज़री तो कोई किसी कोने कुतरे में सुस्ताते।

अब कमाल स्टूडियो (अब नटराज स्टूडियो) के कम्पाउन्ड में कभी पेड़ के नीचे तो कभी किसी कमरे में सोने लग गए। यहीं एक दोस्त बना जगदीश, इसके भरोसे कभी खाने का इंतज़ाम हो जाता तो कभी पीने का!

Javed Akhtar
Honey Irani, Farah Akhtar, Zoya Akhtar (जावेद 1972 में हनी ईरानी से सीता और गीता के सेट पर मिले और ऐसे मिले कि 4 महीने बाद शादी कर ली)

कुछ रोज़ एक कमरा मिला जिसमें पाकीज़ा की कास्टूम पड़ी थी। मीना कुमारी के तीन फिल्मफेयर पुरस्कार पड़े थे! जावेद ने उन्हें साफ किया और खुद को शीशे में देखते हुए बोले कि जब मुझे मेरा अवॉर्ड मिलेगा तो मैं कैसे मंच पर पेश होऊँगा!

लेकिन ये भी आशियाना भी क्षणिक था, अब नया रूल आ गया कि जो लोग कमाल स्टूडियो में काम नहीं करते हैं, वो अब यहाँ कम्पाउन्ड में नहीं सो सकते!

इसका सोल्यूशन भी जगदीश ने निकाल लिया। अब जावेद(Javed Akhtar) महाकाली की गुफाओं में सोने लगे। लेकिन तीन दिन बाद ही बांद्रा से एक दोस्त का बुलावा आ गया और जावेद चले गए। यहाँ कुछ महीने रहे, पर ये दोस्त जुआरी थे, सारा दिन पत्ते पीटते थे और जावेद(Javed Akhtar) को भी पत्ते पीटने सिखा चुके थे!

अब ये तीन दोस्त भी अपने-अपने घर चले गए। रह गए जावेद, और रह गया महीने का किराया!

Javed Akhtar ने कभी कॉम्प्रोमाइज़ नहीं किया

Javed Akhtar
Javed Akhtar के सैकड़ों शौक में से एक कुल्फी भी है।

अब यहाँ एक मकबूल शायर ने 600 रुपये महीने की तनख्वाह का ऑफर दिया, कहा कि जो भी लिखोगे वो आयेगा मेरे नाम से, पर तुम्हें दिक्कत न होगी!

जावेद(Javed Akhtar) ने कुछ दिन सोचा और फिर…. न कह दी! क्यों?

क्योंकि उन्हें लगा कि एक बार नौकरी के लिए हाँ बोल दिया तो कभी छोड़ न पाऊँगा, और फिर उस वादे का क्या होगा?

वो वादा जो खाला ने माँ की लाश के पास दिया था और कहा था कि “इनसे वादा करो कि तुम ज़िंदगी में कुछ बनोगे, इनसे वादा करो कि तुम ज़िंदगी में कुछ करोगे”

उस नौकरी को ठुकराने के बाद फिर कुछ समय फ़ाके में गुज़रे, लेकिन 1969 में जब रमेश सिप्पी की अंदाज़ आई, तो सारी मुफ़लिसी, सारी गर्दिश खत्म हो गई। हर वो सुख, चैन, अवॉर्ड मिलने लगा, जिसके लिए कभी आहें भरा करते थे! अगले 6 सालों में 12 हिट फिल्में दीं, जिसमें से एक – शोले – भी है।

यूं तो जावेद साहब की ज़िंदगी पर लिखने के लिए बहुत कुछ है पर जो बात मुझे सबसे ज़्यादा रास आती है वो है उनकी ढिठाई, उनकी हड़ कि नहीं, कॉम्प्रोमाइज़ नहीं करना है! हालांकि अपने पॉलिटिकल बयानों और सोशल स्टेटमेंट्स के चलते जावेद(Javed Akhtar) बहुत ट्रोल किये गए और अक्सर अब भी किये जाते हैं! पर वो किस्से फिर कभी, जन्मदिन पर कहाँ किसी की टांग खिंचाई होती है!

इनकी जीवनी जानकार लगता है कि वाकई, वाकई जब आँधी-तूफान आपको पीट-पीटकर ज़मीदोज़ करने पर आमादा हों, तब आप भी कुछ बेहतर होकर, कुछ खिलकर, अंकुरित होकर ऐसी फ़सल बनते हो जिसके चर्चे विश्व में होते हैं।

Javed Akhtar
Javed Akhtar and Shabana Azmi 1979 में पहली बार मिले और ऐसे मिले कि एक दूसरे के बिना अधूरे लगने लगे। फिर 1983-84 में जावेद और उनकी पहली पत्नी, हनी ईरानी अलग हुए। लेकिन जावेद अख्तर का कहना है कि आज भी हम दोनों अच्छे दोस्त हैं और मेरे बच्चों के मन में अगर हमारे अलग होने बावजूद कोई कड़वाहट नहीं है, तो उसका श्रेय हनी को जाता है।

जावेद अख्तर(Javed Akhtar) गीतकार को देखते हुए, मेरे लिए उनका बेस्ट गीत है – ओ पालनहारे, निर्गुण और न्यारे, तुम्हरे बिन हमरा कौनों नाही…

आपके लिए जावेद अख्तर(Javed Akhtar) का कौन सा गाना फेवरेट है?

Credit: Sony Music

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सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ 

 


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

9 Comments

  1. Adityanshu
    January 17, 2023 @ 7:00 PM

    Hame ja se mohabbat ho gayi hai
    One of favourite song❤️

    Reply

    • सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
      January 17, 2023 @ 8:17 PM

      Mere liye second best…

      Reply

      • आयुष
        January 17, 2023 @ 8:45 PM

        हमारा भी सबसे पसंदीदा। जब तब सुनता ही रहता और अभी ये पढ़ने से पहले भी यही गुनगुना रहा था।

        Reply

  2. Anurag
    January 17, 2023 @ 7:05 PM

    क्या बात है वाह, बहुत सुंदर

    Reply

  3. Meenakshi Yadav
    January 17, 2023 @ 7:49 PM

    बेहतरीन लिखा आपने।। मुझे भी जावेद साहब कई वजहों से बेहद पसंद हैं।

    Reply

  4. शालिनी सिंह
    January 17, 2023 @ 11:33 PM

    हर बार आपको आपसे बेहतर पाती हूं
    यूं ही लिखते रहे 🤗

    Reply

  5. Asma
    January 18, 2023 @ 8:28 AM

    वाह! बहुत अच्छा लिखा आपने। जावेद साहब को जन्मदिन मुबारक!
    बाग़ी लोग अक्सर अपने उसूलों के पक्के होते हैं, शायद यही वजह है कि जावेद साहब ने कभी अपने हालात के साथ समझौता नहीं किया।

    Reply

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