Jadugarni – जब मैं छोटी थी तो मेरे घर में ये पल्प फिक्शन की मोटी-मोटी किताबें रखी होती थी। उन किताबों का जो कवर था वो मुझे बहुत फेसिनेट करता था। जब भी मैं उन किताबों को अपने हाथ में लेती और ज़ोर-ज़ोर से पढ़ने की कोशिश करती तो कभी मम्मी तो कभी चाचू आकर मेरे हाथ से किताब छीन लेते।
फिर मुझे सख्ती से उन किताबों को छूने से मना किया जाता था और फिर से वो किताब मुझे वापस से उसी जगह दिखाई देती थी जहाँ पर बाकी किताबें रखी हुई थी।
फिर 12वीं के बाद मुझे भी नॉवेल पढ़ने में इंट्रेस्ट आने लगा। मुझे ऐसा लगता है कि ये पढ़ने की आदत मुझे अपनी माँ से मिली है। मेरी माँ लम्बी से लम्बी दूरी पैदल तय कर लेती थीं और रिक्शे के पैसे बचाकर किताबें, ख़ासकर नॉवेल्स ख़रीद लाती थीं।
धीरे-धीरे मेरी किताबों के तरफ रुचि और बढ़ती चली गई। बीते पाँच सालों में मैंने बहुत सारी किताबें पढ़ी। कुछ किताबों को लोग सजेस्ट कर देते थे तो कुछ मुझे अमेजन पर दिख जाती थी।
फिर अचानक से साहित्य विमर्श प्रकाशन की बदौलत सुरेंद्र मोहन पाठक का नाम मेरे सामने आया। फिर भी मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब मैंने उनकी किताब जादूगरनी का कवर देखा तो ऐसा लगा कि किसी ने मेरे धूल जमें चश्मे को साफ कर दिया है। मुझे फिर एक बार अपना बचपन याद आ गया।
फिर क्या था मैंने जादूगरनी ऑर्डर कर दी और एक ही सिटिंग में पढ़कर पूरी भी कर दी।
कहानी सुनील(चीफ रिपोर्टर) और मलिक साहब(ब्लास्ट न्यूज़ पेपर के हेड) की बातचीत से शुरू होती है जो 7 महीने पहले मर चुके सहजपाल केस पर डिस्कस करते हैं। मलिक साहब को लगता है कि अभी भी इस केस में कोई गुंजाइश बची है लेकिन सुनील उनकी बात से कोई इत्तेफाक नहीं रखता है।
सुनील के कहे अनुसार भूतपूर्व राज वित्त मंत्री चंद्र मोहन सहजपाल ने दिवालिया हो रही ओमेगा इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंसेज नाम की एक कंपनी को इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन जैसी बड़ी कम्पनी के साथ हुए संगम की बात अपने 15 मिनट की एक स्पीच में बोल देता है जिसके लिए उसे कंपनी की तरफ से एक लाख रुपये की रिश्वत दी जाती है। हालांकि इस बात का खुलासा एक दूसरा न्यूज पेपर क्रॉनिकल द्वारा किया जाता है और मंत्री जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ता है।
वहीं मलिक का ये मानना है कि सहजपाल ने कोई रिश्वत नहीं ली थी। करोड़ों की संपत्ति वाला एक व्यक्ति 1 लाख रुपये की मामूली रकम क्यों लेगा। और अगर उसने रिश्वत नहीं ली तो अपने बचाव में कुछ कहा क्यों नहीं। बात कुछ और ही है।
सुनील अभी भी मलिक साहब की बात से सहमत नहीं था लेकिन फिर भी वो अपने बॉस के कहने पर केस की छानबीन शुरु कर देता है।
इस केस के बारे में इन्वेस्टिगेशन के दौरान सहजपाल की बेटी नीना सहजपाल का सुनील को कॉल आता है और वो उससे कहती है कि उसके पास इस बात के सबूत हैं कि उसके पिता ने 1 लाख रुपये की रिश्वत नहीं ली थी और वो ये बात साबित कर सकती है। सुनील उससे मिलने का प्लान बनाता है लेकिन जब नीना उससे मिलने आती है तो एक जोरदार धमाका होता है और नीना सहजपाल की मौत हो जाती है।
नीना की मौत से पुलिस हरकत में आ जाती है और इस केस को इन्वेस्टिगेट करती है। अब धीरे धीरे कहानी के कई पात्र सामने आते हैं- जिनमें इंस्पेक्टर बलदेव राज, नीना की माँ और करोड़ों की संपत्ति की मालकिन मिसेज सहजपाल, एक प्राइवेट डिटेक्टिव ब्यूरो का मालिक जगदीश नरूला, सहजपाल की एक्स प्राइवेट सेक्रेटरी शोभा देशमुख, नीना का भूटानी बॉयफ्रेंड ल्योन पो वांगचुक, और सबसे अहम किरदार अनुपमा जोशी जिसके साथ इस समय मंत्री जी रहते हैं। अनुपमा जोशी को ही सब Jadugarni समझते हैं। उसी ने मंत्री जी पर कोई जादू किया हुआ है जिसकी वजह से उन्हें अपने घर, पद, समाज यहाँ तक की बेटी से भी हाथ धोना पड़ा, लेकिन वो सच नहीं बोले।
also read – Book Review: दिल की खिड़की में टंगा तुर्की
अब सवाल उठता है कि क्या वाकई करोड़ों के मालिक सहजपाल ने एक लाख रुपये की चिंदी रिश्वत ली थी? अगर नहीं तो फिर ऐसा कौन सा राज था जिसके वजह से वो बदनाम होने के लिए भी तैयार था? नीना आखिर ऐसा क्या जानती थी जिसकी वजह से उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा? और सबसे अहम सवाल, क्या अनुपमा सच में जादूगरनी है? अगर हाँ तो कैसे करती है वो अपना जादू?
इन सारे सवालों के जवाब हैं इस Jadugarni में।
पाठक साहब ने ये किताब काफी सरल भाषा में लिखी है। आज का यूथ जो हिंदी पढ़ने में विश्वास नहीं करता है वो भी उतने ही आसानी से इस किताब को पढ़ सकता है। हिंदी के साथ साथ उर्दू और अंग्रेजी भाषा की मिलावट कहानी को इंटरेस्टिंग बनाती है। जब में किताब पढ़ रही थी तो मुझे ऐसा लगा कि किताब का मुख्य पात्र सुनील मेरे कुछ दोस्तों जैसे बात कर रहा है। लेकिन फिर एहसास हुआ कि ये वही दोस्त हैं जो पाठक साहब की किताब को घोलकर पी चुके हैं। बात करने का लहजा भी वैसा ही है। पाठक साहब को जो भी पढ़ता है उस पर उनका इनफ्लुएंस आ ही जाता है।
वहीं बात करें एडिटिंग की तो Jadugarni में कहीं भी किसी गलती की जगह नहीं रखी गई है।
Jadugarni के बारे में खास बात-
ये एक ऐसी किताब है जिसे पढने के लिए आपको अलग से समय निकालना पड़ेगा क्योंकि जब आप इसे पढ़ना शुरू करेंगे तो आपके दिमाग में बस एक ही बात चलेगी कि आगे क्या हुआ? और इस सस्पेंस को खत्म करने के लिए आप लगातार पन्ने दर पन्ने को पढते चले जाएंगे, बीच में कोई ब्रेक लेने का मौका नहीं मिलेगा। सस्पेंस और थ्रिल के साथ-साथ पॉलिटिकल दांव पेंच भी इसमें बहुत हैं।
मेरा मानना है कि सुरेंद्र मोहन पाठक की किताब पाठकों के साथ साथ लेखकों को भी पढ़नी चाहिए। खासकर नए लेखकों को। मैंने हाल ही में कुछ किताब पढ़ी जो नए लेखकों द्वारा लिखी गई है। नो-डाउट उनके पास अच्छा कंटेन्ट है लेकिन उनमें भाषा शैली ऐसी नहीं है कि ज़्यादा देर तक लगातार पढ़ते रहें।
पाठक साहब की किताब पढ़कर ऐसा लगा जैसे कि एक जानकार होने और कहानीकार होने में कितना फर्क होता है। बात कही जाती है और कहानी सुनाई जाती है। जादूगरनी (Jadugarni) में कहानियों के साथ साथ उचित जानकारी को भी ऐसे पेश किया गया है जैसे कि वो थोपी हुई नहीं लगतीं।
ये पाठक साहब की दूसरी किताब थी जो मेरे हाथ लगी है, लेकिन एक ही बार में मैं अभी इसे ही पढ़ पाई हूँ। अब शेल्फ में रखी पिछली किताब nimphomaniac भी बुला रही है, जल्द ही उसे भी पढ़ूँगी और अब पाठक साहब की लिखी किताबें पढने का सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक मैं पिछली सारी किताबों को पढ़ न लूँ।
अपनी बात खत्म करने से पहले मुझे आप सभी रिडर्स से ये पूछना है कि क्या बचपन में आप के हाथों से भी पाठक साहब की किताब छीन ली जाती थी? या फिर आपका बचपन उनकी किताबों को पढ़कर बीता है? मुझे कमेंट कर जरूर बताएं।
फिलहाल आप Jadugarni को अमेजन और साहित्य विमर्श की वेबसाइट से जाकर खरीद सकते हैं।
Amazon पर इस किताब की कीमत- रु 179
Sahitya Vimash पर किताब की कीमत- रु 179
अगर आप किसी खास किताब का रिव्यू पढ़ना चाहते हैं तो हमें कमेंट कर जरूर बताएं। साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा छपी सुरेंद्र मोहन पाठक साहब की पहली किताब निम्फ़ोमैनियाक के बारे में अनमोल दुबे के विचार भी पढ सकते हैं- https://bookwalaofficial.com/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A5%9E%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AE/
Also Read: Humsafar Everest Review: पहाड़ी travelers के लिए guide का काम कर सकती है ये किताब
You can follow us on instagram and facebook for latest updates
May 31, 2022 @ 8:45 PM
पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख…
May 31, 2022 @ 9:14 PM
यकीनन, अभी तो मैंने भी पढ़ी थी
May 31, 2022 @ 8:45 PM
वाह बहुत सुंदर
May 31, 2022 @ 9:13 PM
बहुत शुक्रिया
May 31, 2022 @ 9:25 PM
बढ़िया! पाठक साहब का जादू है ही ऐसा कि जो एकबार पढ़ लेता है तो मुरीद हो जाता है। एक बड़ी ही खूबसूरत बाह कही आपने – ‘बात कही जाती है और कहानी सुनाई जाती है।’
बढ़िया शुरुआत है उम्मीद है आपको आगे पाठक साहब के और बेहतरीन नगीने भी पढ़ने को मिलेंगे।
June 1, 2022 @ 7:34 PM
thanks a lot
May 31, 2022 @ 11:23 PM
जल्द हमारे पास भी होगी जादूगरनी।तब पढकर राय देंगे।
June 1, 2022 @ 7:34 PM
Waiting..
June 1, 2022 @ 5:41 AM
बहुत अच्छा लिखते हैं आप।
June 1, 2022 @ 7:34 PM
thank you so much
June 1, 2022 @ 6:16 AM
जादूगरनी ऐसे लगता है एक जादूगर ने लिखी है…….शब्दों के जादूगर ने
June 1, 2022 @ 7:34 PM
completely agree with you
June 1, 2022 @ 1:00 PM
एक जादूगर द्वारा लिखी गई ‘जादूगरनी’ के रिव्यू से कोई शब्द संपदा समृद्ध जादूगरनी ही न्याय कर सकती थी ,जो कि आपने बाखूबी किया है।
जहाँ तक बचपन की बात है ,मैं तो उपन्यास को अपनी कोर्स की किताब में छुपाकर पढ़ता था।
June 1, 2022 @ 7:35 PM
thank you so much
June 4, 2022 @ 12:26 AM
गज़ब लिखें 💐
एक वक़्त त्योहारों के समय जैसे होली और दीवाली मे छुट्टी के समय दिन और रात मै पाठक सरजी की तीन किताब एक के बाद एक लगातार पढ़ लेता था, खाना खाते खाते भी 😁 ईब ऊ बख्त कंहा 🤔
June 4, 2022 @ 4:22 PM
hahaha.. same here