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2 ऑक्टूबर को क्या हुआ था? जिसने भी Drishyam देखी है वो गाँधी जयंती और लाल बहादुर शास्त्री जयंती से पहले यही बताएगा कि 2 ऑक्टूबर को स्वामी चिन्मयानंद का सत्संग हुआ था जिसमें विजय सलगाओकर और उसकी फैमिली पणजी गए थे। वहाँ उन्होंने पाव भाजी खाई थी। फिर उन्होंने फिल्म देखी थी। वो सिनेमा हाल के प्रजेक्शन रूम में भी गए थे।

Fewhhhh, 2014 में ये सब इतनी बार सुन लिया था कि रिलीज़ के एक महीने बाद Drishyam देखने से खुद को रोक न सका। फिर जब देखी, तो यकीन ही नहीं हुआ कि ये मुंबई के राइटर्स ने लिखी है!

फिर अपने यकीन को शाबाशी दी कि बेटा अच्छा हुआ तू नहीं हुआ…, क्योंकि ये तो जीतू जोसेफ की मलयालम फिल्म थी जिसे सीन बाई सीन उठाकर अजय देवगन और viacom18 ने  निशिकांत कामत जैसे होनहार डायरेक्टर से बनवाई थी।

अब जब मलयालम में Drishyam 2 रिलीज़ हुई तो मैंने amazon prime पर आते ही देख ली। जहाँ पहले वाली मलयालम Drishyam तेज़ रफ्तार थी वहीं मोहन लाल की दूसरी Drishyam ढाई घंटे की होकर 2 घंटे गोल-गोल घुमाती रहती है और बेहतरीन क्लाइमैक्स पेश करती है।

drishyam 2

अरे नहीं नहीं, ये मोहन लाल की Drishyam का review नहीं है भई। ये अजय देवगन की Drishyam की ही कहानी है। पर चिंता न करो कोई स्पॉइलर नहीं है।

2021 आ चुका है और अब पंडोलम गोवा का विजय सलगाओकर सिनेमा हाल का मालिक बन चुका है। अपने धंधे में तरक्की कर चुका है पर उसकी फैमिली अभी भी घबराई-घबराई घूमती है। उन्हें आए दिन पुलिस भी तंग करती रहती है और वो टीवी में भी JCB की खुदाई देख लें तो कांप उठते हैं!

वहीं विजय की बड़ी बेटी अंजू, अब एपिलेप्सी और PTSD से ग्रसित हो चुकी है। (ये क्या होता है जानने के लिए शब्द पर क्लिक कर सकते हैं)

दूसरे ओर निश्चिंत दिखने की कोशिश करता विजय एक फिल्म बनाने वाला है। उसकी कहानी भी वो तैयार कर चुका है और स्क्रीनप्ले बड़े राइटर मुराद अली से लिखवा रहा है।

तीसरी ओर पुलिस स्टेशन में एक नया आईजी, तरुण अहलावत आता है जो दिमाग का बहुत तेज़ है, बिना चेस का एक भी प्यादा हिलाए पूरी चेस खेल लेता है। ये गायतोंडे को बुलाकर विजय का केस फिर ओपन करवाता है! क्यों? इसको क्या खुजली है भई?

तो इसे मीरा देशमुख का पुराना दोस्त दिखाया है। अब थोड़ा रेवाइन्ड चलते हैं…

फिल्म का पहला सीन कुछ ऐसा है कि विजय की पोल पट्टी एक मिनट में खुल सकती है! पर वो पोल सात साल तक इंतज़ार करती है क्योंकि मलयाली फिल्ममेकर जीतू जोसेफ को जितना थैंक्स बोले उतना कम है क्योंकि हर हिट फिल्म पर production house चाहता है कि तुरंत सीक्वल निकले, फटाफट दूसरी फिर तीसरी आए लेकिन जीतू ने अच्छी स्क्रिप्ट के इंतज़ार में 6 साल निकाल दिए और फिर जब कुछ सालिड मिला, तो फिल्म बनाई, बनाई तो प्राइम पर रिलीज़ की, रिलीज़ की तो हिट भी हुई और तभी अजय देवगन ने जुबां से केसरी थूककर समझा दिया कि बे, हिन्दी डब मत करना, साल भर रुको हम भी बना लेंगे और थिएटर रिलीज़ करेंगे!

एक्टिंग की बात करूँ तो अजय देवगन कहीं से भी बेफिक्र नहीं लगे हैं जबकि मोहनलाल का कमाल देखिए कि वो एक ऐसे किरदार को निभा रहे थे जो बेफिक्र होने की acting कर रहा है और अंत होने पर सीरीअस होता है तो यही उन्होंने करके भी दिखाया है। जबकि मेरी एक दोस्त ने अजय देवगन के बारे में क्या मस्त कमेन्ट किया है कि – “अजय देवगन का चेहरा और आँखें ऐसी हैं कि वो कुछ न भी करे तो लगता है बैठा कुछ कर रहा होगा, कुछ नहीं तो आगे की प्लानिंग कर रहा होगा, इसके दिमाग में कुछ तो चल रहा होगा”

यही हाल अजय का यहाँ भी है।

drishyam 2

श्रिया सरन इस बार भी डरी-दबी-पिटती-घबराती अच्छी लगी हैं। वो इस कदर कैरेक्टर में घुस चुकी थीं कि मेरे साथ बैठा आदमी गाली बकते हुए बोल बैठा कि “इन औरतों का मुँह ही बंद नहीं होता साला” (हालाँकि वो बीवी के साथ फिल्म देखने आया था और फिर पूरी फिल्म कुछ न बोल सका)

अंजू बनी ईशिता ने भी बहुत अच्छी एक्टिंग की है। मृणाल जाधव इसमें बड़ी हो गईं हैं, उनके हिस्से (एक बर्थ्डै पार्टी, दो डाँट एक पिकनिक और कपल ऑफ गाइतोंडे के थप्पड़ से ) ज्यादा कुछ नहीं आया है।

सौरभ शुक्ला का भी यही हाल है। किसी को तो राइटर बनाना था, उन्हें बना दिया।

जेनी (पड़ोसन) बनी नेहा जोशी की acting कमाल है। छोटे से रोल में भी वो छा गई हैं। योगेश सोमन की acting भी अच्छी है।

पर शो स्टॉपर हैं अक्षय खन्ना, इस साढ़े पाँच फिट के एक्टर को कोई डाइलॉग न भी दो तो भी यह पूरे पर्दे रूल करता नज़र आता है। मुझे तो ऐसा भी लगा कि खास अक्षय के लिए घर वाला एक सीन लिखा गया है जिसमें सिर्फ आँखों से ही पूरे सीन में थ्रिल आ गया है।

तब्बू का रोल छोटा है, पर हमेशा की तरह ईफेक्टिव है। यही हाल रजत कपूर का भी है।

आप Drishyam सिर्फ विजय सलगाओकर या मीरा देशमुख के लिए याद नहीं रखते हैं। आप Drishyam याद करते हैं तो सब इन्स्पेक्टर गाइतोंडे बने कमलेश सावंत का चेहरा अपने आप सामने आ जाता है।

कुलजमा 3 सीन मिले इस एक्टर को पर ये मराठी कलाकर तालियाँ बटोर गया! बहुत समय बाद कोई नेगेटिव कैरेक्टर ऐसा बना है कि उससे नफरत हो सके।

बाकी डायरेक्टर अभिषेक पाठक दृशयम 1 के प्रोड्यूसर थे। अगर निशिकांत कामत की कोरोना से अकस्मित मृत्यु न हुई होती तो ये इस बार भी सिर्फ प्रोड्यूसर ही होते पर…, इनकी पिछली डायरेक्टेड फिल्म उजड़ा चमन को देखते हुए Drishyam 2 फ़्लोलेस डायरेक्ट हुई है।

लेकिन जब मुझे पता चला कि Drishyam 2 में विशाल भारद्वाज और गुलज़ार की जोड़ी संगीत में नहीं है तो मुझे लगा इस बार म्यूजिक औसत होगा। पर नहीं, देवीश्री प्रसाद (हाँ मुझे भी बाबू राव वाला देवी प्रसाद याद आया था) ने बेहतरीन म्यूजिक दिया है। DSP के नाम से मशहूर देवी के तीनों गानों का संगीत ज़बरदस्त है।

तो कुलमिलाकर दूसरी Drishyam में थ्रिल, मलयाली से ज़्यादा है। ये हर सीन में बाँधें रखती है, आगे क्या होगा इसकी उत्सुकता रखती है। स्क्रीन टाइम कम है, मतलब वो 2 घंटे 33 मिनट थी ये 2 घंटे 20 मिनट है तो पकने का कोई डर नहीं रहता।

सिनिमटाग्रफी भी ज़्यादातर जगह सीन बाई सीन सेम है।

यह भी पढ़ें – लव जिहाद से गुज़रती एक कहानी निहारिका

लेकिन, एक वाइटल चीज़ जो मिसिंग है वो बता दूँगा तो स्पॉइलर हो जायेगा! हालाँकि मुझे उम्मीद के विपरीत भी एक उम्मीद थी कि राइटर आमिल खान हिन्दी पट्टी के लिए क्लाइमैक्स में भी कुछ ट्विस्ट चेंज करेंगे, जैसे उन्हें बाकी फिल्म में कुछ थोड़ा बहुत चेंज किया है, पर नहीं, क्लाइमैक्स जस का तस है। पर वो मुझे नहीं खला…

खला विजय और उसके परिवार की सज़ा का जिक्र न होना। अब जो मलयालम देख चुके हैं वो समझ जायेंगे और जो सिर्फ हिन्दी देखकर दूसरे का इंतज़ार कर रहे थे उनके लिए स्पॉइलर नहीं होगा, बल्कि उत्सुकता बढ़ेगी।

रेटिंग – 7.5/10*

रिव्यू अच्छा लगा हो तो शेयर ज़रूर करें… नहीं लगा तो कमेन्ट करें कि क्यों नहीं लगा? (थोड़ा टाइम आपका भी इन्वेस्ट हो)

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

19 Comments

  1. Prashant
    November 18, 2022 @ 6:35 PM

    अच्छा रिव्यू है sid, ऐसे ही रिव्यू का इंतजार था, मैं साल में एक ही मूवी देख पाता हूं थियेटर में इसलिए चुनाव थोड़ा मुश्किल होता है, चुनाव आसान करने का शुक्रिया, मैं देखने जाने वाला हूं एक दो दिन में इसे।

    Reply

    • सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
      November 18, 2022 @ 6:39 PM

      बहुत शुक्रिया… शेयर करते चलिए।

      Reply

      • Dr.Wasif Quazi
        November 18, 2022 @ 8:18 PM

        यक़ीनन बेहतरीन फ़िल्म है…. आपकी समीक्षा भी सराहनीय है सर
        Exhilarating and Engaging Thriller

        Reply

  2. Ravi
    November 18, 2022 @ 7:23 PM

    हर बार की तरह आपका बेहतरीन रिव्यू। अब मैं मूवी देखकर भी रिव्यू न लिखूंगा। आपको पढ़ना एक सुखद अहसास है।

    Reply

  3. Pradeep Kumar Pandey
    November 18, 2022 @ 7:34 PM

    बहुत खूब, शानदार जबरजस्त रिव्यू 😊

    Reply

    • सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
      November 19, 2022 @ 1:04 AM

      बहुत शुक्रिया

      Reply

      • Istiyak
        November 19, 2022 @ 11:24 AM

        सहरनामा का मुकाम एकदिन ऐसा होगा कि बड़े-बड़े प्रोड्यूसर और डिरेक्टर पैसा देंगे अपनी फिल्म का पॉज़िटिव रिव्यू करने के लिए। लेकिन! सिद्धार्थ बोलेंगे “मैं नहीं बिकेगा साला’’
        Istiyak mogal

        Reply

  4. Sai Sundar
    November 18, 2022 @ 10:04 PM

    बेहतरीन भैया,

    आपके रिव्यु पर कोई शक ही नहीं होता कभी, पुरानी फिल्मों की रिव्यु पढ़ने आपके टाइम लाइन पर जाया करता था पहले।

    Reply

  5. Ashutosh Jha
    November 18, 2022 @ 11:02 PM

    मैं एक दिन ऐसी किताब छपवाऊंगा की सब कुछ मजेदार हो

    Reply

  6. Nishtha_Abhijit Agnihotri
    November 18, 2022 @ 11:16 PM

    बढ़िया रिव्यू दिया आपने। आप जो फिल्म देखते समय अगल बगल के लोगों का रिएक्शन लिखते हैं वह भी कमाल होता है। 🌼

    Reply

  7. Dr. KK Sharma
    November 19, 2022 @ 1:25 PM

    Saw it yesterday itself and liked it sooo much. Not every sequal has been quiet a real sequal in bright terms but this one stand apart.

    Reply

  8. Rachana Rajpurohit
    November 19, 2022 @ 1:43 PM

    बहुत बढ़िया लिखा है, मुझे लगा कहीं फिल्म जायका बिगाड़ने वाली न हो,
    अभी तो जिज्ञासा बढ़ गई है।

    Reply

  9. Aparna
    November 20, 2022 @ 8:11 AM

    बेहद शानदार रिव्यू..

    Reply

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