ट्रेवलिंग एक ऐसी चीज है जो आपको जिंदा होना का एहसास कराती है। जब भी हमें अपने बिजी शेड्यूल से वक्त मिलता है तो हम पहाड़ों में घूमने की योजना बनाते हैं। 10 में से 8 लोग ऐसे हैं जिनका घूमना-फिरना सपना होता है लेकिन केवल 1-2 ही होते हैं जो इस सपने को पूरा कर पाते हैं। ऐसे एक इंसान को मैं भी जानती हूँ वो हैं घुमक्कड़ नीरज मुसाफिर!
नीरज मुसाफिर की “Humsafar Everest” एक ऐसी किताब है जो आपको एक अनोखी एडवेंचर ट्रिप पर लेकर जाएगी। आसान से लेकर मुश्किल रास्तों से आपका परिचय कराएगी। किताब पढ़ते हुए आपको एहसास होगा कि आप भी नीरज मुसाफिर के साथ इस सफर पर हो।
कैसा है सफर – ये यात्रा है नीरज मुसाफिर संग उनकी वाइफ दीप्ति और उनके साथी देवेंद्र कोठारी की। नीरज और दीप्ति दिल्ली से अपनी बाइक पर काठमांडू तक की यात्रा कर रहे थे वहीं कोठारी जी जयपुर से निकल चुके हैं। दिल्ली से सफर शुरु करने के बाद नीरज कई शहरों में अपने मित्र और रिश्तेदारों से मिलते हुए जा रहे हैं। उन्होंने इस दौरान उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों का भी वर्णन किया है। दिल्ली से काठमांडू और एवरेस्ट पहुंचने तक में नीरज मुसाफिर ने कई महत्वपूर्ण जानकारी भी दे रहे हैं।
साथ ही सभी चीजों के बारे में बताने के साथ साथ उनके रेट भी बताएं गए है। हमसफ़र एवरेस्ट एक आम किताब नहीं है बल्कि एवरेस्ट जाने वाले यात्रियों के लिए एक गाइड की तरह है।
अपनी यात्रा की कहानी को उन्होंने कई भाग में बांटा है। शुरुआत की है तैयारी से – नीरज मुसाफिर के अनुसार एवरेस्ट पर जाने के लिए आपको कम से कम महीने भर पहले से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। फिजिकली, मेंटली और फाइनेंशियली।
वहीं दूसरे भाग में- वो दिल्ली से काठमांडू जाने तक की पूरी जानकारी दे रहे हैं। किन रास्तों जाना आसान रहेगा, किन से जाने में ज़्यादा समय लगेगा! क्या-क्या मुश्किलें आ सकती हैं और फिर आई भी। कितने पैसे खर्च होंगे और कहाँ-कहाँ रुका जा सकता है।
तीसरा भाग था एवरेस्ट बेस कैम्प तक के ट्रैक का जो इस तरह से लिखा गया है कि काफी चुनौतीपूर्ण नज़र आता है।
पूरी यात्रा के दौरान वह रास्तों पर मिलते लोग, सड़क, बाजार के बारे में बताते जा रहे हैं। किताब पढ़कर ऐसा लगता है जैसे नीरज अपनी बाइक पर पाठकों को भी बांधकर एवरेस्ट ट्रैक करने ले गए हैं।
वहीं भाषाशैली की बात करूँ तो नीरज मुसाफिर की किताब को पढ़कर ऐसा लगा कि एक कहानीकार, यात्री तो हो सकता है लेकिन एक यात्री के लिए कहानीकार बनना मुश्किल है। कारण ये है कि अगर एवरेस्ट की कहानी एक राइटर ने लिखी होती तो किताब में हर तरह का इमोशन होता, एक हिस्सा दूसरे से connected होता, ज़रूरत पड़ने पर स्वादानुसार शायद ह्यूमर भी होता तो हीं पर एडवेंचर या फियर फैक्टर टाइप इफेक्ट भी बनाया होता।
लेकिन नीरज मुसाफिर की राइटिंग से प्रोफेशनल-पन नहीं झलता, Humsafar Everest बिल्कुल रॉ, बिल्कुल आँखों देखी घटना का आँखों देखा हाल लगती है। मतलब जैसा हुआ है वैसा ही उन्होंने लिख दिया है। इस चीज का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने फ़िज़ूल बातों को भी इतनी तरजीह दी है कि असल यात्रा से मन हटने लगता है। – उदाहरण देखिए –
“100 रुपए की एक बाल्टी गर्म पानी में से आधी बाल्टी से कोठारी जी नहा लिए। फिर मैं मुँह हाथ धोने गया तो मेरा भी मन करने लगा कि मैं नहा लूँ। तो मैं भी उतने ही पानी में साबुन लगाकर नहा लिया। अगले दिन दीप्ति (नीरज मुसाफ़िर की पत्नी) को नहाने की ज़रूरत थी। 150 रुपए में गर्म पानी की बाल्टी मिली, वो नहा आई। एक तो हम ट्रैकिंग में नहाते नहीं और अगर नहाने का मन भी कर जाए तो गर्म पानी इतना महँगा होता है कि कई बार सोचना पड़ता है। मैं कल नहा लिया था, इसलिए आज नहीं नहाया। अब पता नहीं कब नहाना हो”
हालांकि भाषा बहुत ही आसान है, इसमें हरियाणवी टच महसूस होता है इसलिए किसी भी उम्र का पाठक आराम से पढ़ सकता है।
एडिटिंग: किताब की सबसे अच्छी बात यही थी कि इसमें न के बराबर गलतियाँ हैं। किसी भी किताब में एडिटिंग का पार्ट सबसे अहम माना जाता है। वो इसलिए क्योंकि जब पाठक किताब पढ़ते हैं तो अगर उन्हें लगातार वर्तनी की खामियाँ दिखें तो पढ़ने से मन हटने लगता है।
किताब की सबसे बड़ी कमी ये ही है कि ये जस की तस लिख दी गई है। इसलिए मुझे बीच-बीच में इतनी informative होते हुए भी बोरिंग लगने लगी और खत्म करने में औसत से काफी ज़्यादा वक़्त लग गया।
दूसरी कमी Characters के introduction की रही, पात्रों का परिचय सही तरह से नहीं हुआ है। अचानक ही वो अपनी पत्नी का जिक्र करते हैं जिसकी वजह से समझने में देर लगी कि आखिर दीप्ति नाम की महिला कौन हैं, जबकि
नीरज मुसाफिर ने कई जगह व्यंग्य करने की भी कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए।
कुलमिलकर ये किताब आपको यात्रा करने के लिए प्रेरित करती है। अगर आप एवरेस्ट ट्रैक जाने की योजना बना रहे हैं तो हमसफर मुसाफिर को पढ़ना फायदेमंद साबित होगा। लेकिन अगर आप आलसी हैं, ज़्यादा घूमना फिरना नहीं पसंद पर घूमने फिरने के किस्से बहुत रास आते हैं, तो ये किताब आपके लिए नहीं है। ये ऐसी तरकारी है जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है पर इसमें चटपटे मसाले नहीं है।
लेकिन, ये नीरज मुसाफिर की 2017 में लिखी हुई किताब है। और ये साल चल रहा है 2022। मैंने उनकी इसके अलावा कोई किताब नहीं पढ़ी है। जल्द ही ऑडर करूंगी। फिलहाल आप इस किताब को अमेजन और साहित्य विमर्श की वेबसाइट से जाकर खरीद सकते हैं।
Amazon पर इस किताब की कीमत- रु 129
Sahitya Vimarsh पर इस किताब की कीमत- रु 110
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ये लेखक के निजी विचार हैं।
प्रगति राज