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बॉलीवुड निर्माता विपुल अमृतलाल शाह ने ‘The Kerala Storyटाइटल के साथ केरल के मुद्दों को उठाने का फैसला लिया है।

The Kashmir Files ने बॉक्स ऑफिस व दर्शकों के बीच ख़ूब धूम मचाई है। नज़दीकी सिनेमाघरों तक दर्शक स्वतः ही पहुँचने लगे और दूसरों को भी देखने को सजेस्ट करने लगे। सिनेमाई भाषा में कहे तो वर्ड ऑफ माउथ एक्सट्रीमली पॉजिटिव रहा। दर्शकों ने इसे फ़िल्म के तौर पर न लेकर दस्तावेज के रूप में लिया है। इसे दिल की दराज में संभालकर रखा है। फिल्म ने लगभग 235 करोड़ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया है और ओवरसीज जुड़ना बाक़ी है।

The Kerala Story

ऐसा नहीं है कि कश्मीर फाइल्स सभी को अच्छी लगी है। कुछ वर्ग है जिसे कश्मीर फाइल्स ने दर्द व असहनीय पीड़ा दी है। वे चीख रहे है कि फाइल्स पूरी तरह प्रोपगैंडा व झूठी है। 

इन समीक्षाओं के बाद कश्मीरी हिन्दू आगे आए और विवेक अग्निहोत्री की फाइल्स के एक एक फ्रेम को शत-प्रतिशत सच बताया। बल्कि उन्होंने कहा है कि इससे ज्यादा भयावहता रही थी जो फिल्म में दर्शाया नहीं गया है।

पिछले दिनों फिल्म की सफलता देखकर बॉलीवुड निर्माता विपुल अमृतलाल शाह ने ‘The Kerala Storyटाइटल के साथ केरल के मुद्दों को उठाने का फैसला लिया है। इन मुद्दों को निर्देशक सुदीप्तो सेन क्लासिफाइड करेंगे।

सूत्रों के अनुसार ख़बरें है कि The Kerala Story में कहानी व किरदार पिछले 10 साल में 32000 लड़कियों के लापता होने के सच से पर्दा उठाएगी। कहानी केरल की उन 32000 हजार लड़कियों की है जो घर लौटी ही नहीं।

निर्माता व निर्देशक का दावा है कि उनकी तीन-चार साल लंबी रिचर्स उन भयावह मुद्दों को दर्शकों के सामने लाएगी, जिन्हें देखकर रूह कांप जाएगी। दिमाग को झकझोर देगी। कहानी निष्पक्ष और सच्चाई के साथ सिल्वर स्क्रीन पर पहुँचेगी।

इसमें धर्म परिवर्तन एंगल होगा। कैसे हिन्दू लड़कियों को ईसाई व मुस्लिम बनने पर मजबूर किया गया। उसके बाद सीरिया अफगानिस्तान से होकर आईएसआईएस आतंकी क्षेत्रों में भेजा गया और जबरन शादी करवा दी गई।

The Kerala Story

2017 में यशराज फिल्म्स की टाइगर फ्रेंचाइजी की दूसरी कड़ी टाइगर ज़िंदा हैमें केरल की नर्सो का जिक्र किया था। लेकिन… लेकिन! उसमें साथ ही पाकिस्तान की नर्सो का मुद्दा शामिल किया गया था। इससे केरल वाला सेगमेंट कमज़ोर पड़ गया। दर्शकों के बीच ठीक से नोटिफिकेशन न पहुँचा था।

यक़ीनन! विवेक अग्निहोत्री और उनकी फाइल्स ने अन्य फ़िल्म निर्माताओं को जगाया है कि असल मुद्दों के साथ दर्शकों के बीच जाओ तो फ़िल्म को प्रमोशन की जरूरत नहीं पड़ती है। दर्शक स्वयं ही आगे बढ़कर दर्शक जोड़ते चले जाते है। बशर्ते! प्रोपगैंडा और फेक नैरेटिव न हो।

केरल वाले अनटोल्ड पहलुओं से 90 प्रतिशत लोग अनजान होंगे क्योंकि कॉमरेड गैंग के ईको सिस्टम में इस सच को जूते पहनने ही नहीं दिए। जबकि अपने झूठ को अच्छी तरह सजा-धजाकर दुनिया में भेज रखा है। नैरेटिव सेट कर रखा है। सबकुछ ठीक है। जब ये लोग कश्मीरी हिंदुओं के सच को 32 साल तक छिपाने में कामयाब रह सकते है। तो केरल में तो लाल सलाम है। वहाँ बिना कॉमरेड की आज्ञा के परिंदा भी पर नहीं मार सकता है।

The Kerala Story

अभी तो द कश्मीर फाइल्स दराज में अकेली पड़ी है। यूँ तो द ताशकेंट फाइल्स साथ दे रही है। लेकिन विश्वास है कि इस फाइल्स को ढेरों फाइल्स(The Kerala Story) का साथ मिलेगा। जो सच जूते नहीं पहन सका है। अन्य फाइल्स उसे जूते भी पहनाएगी और दुनिया के चक्कर लगवाएगी। विवेक ने कॉमरेड गैंग के झूठ को लंगड़ा-लूला बना दिया है। तभी तो भंयनकर रुदन चालू है। लेकिन देखना केरला स्टोरी की निष्पक्षता सच का हाथ पकड़कर निकली न! तो प्रोपगैंडाजीवी ज्यादा तड़पेंगे। लाईलाज बीमारी से ग्रसित हो जाएंगे।

दरअसल, सिनेमा समाज का आईना है। विगत कई दशकों से वह आईना टूट कर बिखर गया है। उसके कुछ टुकड़े प्रोपगैंडा जीवी या कहे एजेंडाधारियों के हाथ लग गए। बस, फिर क्या वे अपने अनुरूप नैरेटिव दिखलाते रहे। भावनाओं को भड़काते रहे।

सिनेमा की आड़ में अपना मकसद दर्शकों के बीच रखा। नया नजरिया सेट करने की पुरज़ोर कोशिश हुई। लेकिन अब फिर से उस टूटे आईने को जोड़ने की कोशिश शुरू हुई है। अभी कुछ टुकड़े जुड़े है। उनसे ही टुकड़े-टुकड़े गैंग बिलबिला उठी है। सहन नहीं कर पा रही है कि कौन इस आईने को दोबारा जोड़ने पर तुला है। उसे बर्बाद करना होगा। वरना सालों साल पुरानी हमारी मेहनत और इमेज चूर चूर हो जाएगी। जो नैरेटिव सेट किया है। उसका तिलिस्म खत्म होने लगेगा। दर्शक सच के करीब आते जाएंगे। सच जूते पहनकर बाहर होगा। जबकि हमारा झूठ नंगे पांव सड़क और अकेला उदास बैठा होगा। दर्शक उसे पत्थर मार रहे होंगे।

इसलिए तो द कश्मीर फाइल्स को रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा लिया था। परन्तु सफलता न मिली।

अन्य स्टोरी के लिए: अगर बदल गया 1952 का cinematography act, तो कितना हंगामा होगा कभी सोचा आपने?

ये लेखक के नीजी विचार हैं।

ओम लवणीय ‘प्रोफेसर’ 


1 Comment

  1. आनन्द विश्वकर्मा
    March 31, 2022 @ 6:38 PM

    बहुत सुंदर भैया। इस फिल्म यह भी नैरेटिव सेट कर दिया। कि बहुसंख्यकों को नजरअंदाज मत करिये, उनके हिसाब से कंटेट लाईये फिल्म जरूर हिट होगी फिर उसको कोई समर्थन करे या न करे।

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