#गुरु_का_जन्मदिवस(Surendra Mohan Pathak : Happy Birthday)
2011 में एक दोस्त बना, उसको पढ़ने का बिल्कुल शौक नहीं था, घर आया तो उसने लम्बा-चौड़ा बुक्स कलेक्शन देखा। बोला सब समय व्यर्थ करने के तरीके हैं। स्कूल में इतना पढ़ लिए, अब क्या जीवन भर पढ़ते ही रहें।

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मैंने उसको दो किताबें पकड़ाईं, एक धब्बा, दूसरी निम्फोमेनियाक, फिर उससे कहा कि “इस हफ्ते में जब भी समय मिले, दोनों किताबों के बस तीस-तीस पन्ने पढ़ ले और मुझे लौटा दे।”
वह फिर वही बात बोला “यार मुझे पढ़ते ही नींद आती है”
“अरे जब नींद न आ रही हो तब पढ़ लेना, पूरी थोड़ी पढ़नी है, बस तीस तीस पन्ने”
उसने दिल रखने के लिए बात मान ली। उसको बता दिया कि धब्बा एक मर्डर मिस्ट्री है जिसे एक मेहनती मज़ेदार प्रेस रिपोर्टर सुनील हल करेगा, दूसरी कहानी एक ऐसे डिटेक्टिव की है जिसमें उसकी पत्नी निम्फो है। निम्फो बोले तो हर दिन दोपहर उसके मन में सिवाए सेक्स के कुछ नहीं चलता। रात तो उसे हर हाल एक आदमी चाहिए ही चाहिए। पति न हो तो पड़ोसी सही! ये भी मर्डर मिस्ट्री ही है, पर अलग टाइप की है।
अगला हफ्ता आया। मैं उसके घर पहुँचा। पता चला उसने पूरी रात जागकर निम्फो ख़त्म की है और धब्बा पढ़ते-पढ़ते तो वो इतना हँसा कि वापस लौटाना ही नहीं चाहता। बकौल उसके, 30 पन्नों के बाद रखने की कोशिश भी की तो दिमाग में यही चलता रहा कि आगे क्या हुआ होगा! फिर झक मारकर उठा, पढ़ने बैठा तो कब रात बीत गयी पता ही न चला।
जिसे किताबों से एलर्जी थी, जो कहते हैं कि उन्हें किताबों को देखकर ही नींद आती है, उनके लिए भी एसएमपी का लिखा ऐसा अपवाद है कि नींद आ रही हो तो भाग जाती है।
पाठक साहब (आदरणीय सुरेंद्र मोहन पाठक) की लेखनशैली का जादू ही कुछ ऐसा है
पाठक साहब की लेखन शैली का जादू देखिए कि जिन्होंने किसी को नहीं पढ़ा, सिर्फ उनका लिखा पढ़ा उनमें से कुछ पाठक आज खुद लेखक हैं और जबरदस्त लेखक हैं। उनकी लेखनी सिर चढ़कर बोलने लगी है। इनमें कँवल शर्मा जी का नाम सबसे ऊपर है। फिर राजीव रोशन उर्फ admin को भला कोई कैसे छोड़ सकता है। ऐसे ही और भी कई जबरदस्त पाठक हैं जो आज बेहतरीन लेखक बनकर उभरे हैं।
1940 में जन्में पाठक साहब आज 82 वर्ष के हो चुके हैं पर न उनके मिजाज़ में कोई शिकन आई है और न ही उनके लेखन में। वह आज भी पूरी तन्मयता से लिखते हैं, पब्लिश्ड नॉवेल्स की ट्रिपल सेंचुरी मार चुके एसएमपी के लेखन का सिलसिला आज भी जारी है, दुआ है सालों साल चलता रहे।
उनको पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ा गया है। पिता से पोते तक का सफ़र तय किया है उन्होंने! कहते हैं पल्प फिक्शन किताबें बच्चों को नहीं देनी चाहिए क्योंकि उसमें काफी फाश लेखन होता है। ये बात किसी समय तर्कसंगत होती होगी, पर आज बच्चे जितना ‘कुछ’ नेटफ्लिक्स और सावधान इंडिया पर देख रहे हैं, उसकी 10 प्रतिशत अश्लीलता भी इन, ख़ासकर सुमोपा के उपन्यासों में नहीं मिलती।
मैं दुआ करता हूँ कि पाठक साहब का जाहूरा यूँ ही कायम रहे, उनके लिखे उपन्यास लाखों लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाते रहें। पढ़ने का ये सिलसिला कभी ख़तम न हो।
नए पाठकों को जोड़ने के लिए, साहित्य विमर्श प्रकाशन की ओर से सिर्फ आज-आज के लिए पाठक साहब की चार किताबें मात्र 399 में मिल रही हैं। ये ऐसा सेट है जिसे बच्चे से लेकर बड़े बुज़ुर्ग तक, सबके लिए कुछ न कुछ मौजूद है।
देर न कीजिए।
पढ़ते रहिए, पढ़ाते रहिए।