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2020 में जब अल्लू अर्जुन की Shehzada, आई मीन आला वैकुंठापुरमुलू आई थी तब तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में धूम मच गई थी। 100 करोड़ में बनी 2 घंटे 45 मिनट्स की फिल्म ने 250 करोड़ के आसपास का कलेक्शन किया था। इस फिल्म के प्रोड्यूसर अल्लू अर्जुन के पप्पा श्री अल्लू अरविन्द ही थे।

शायद इसीलिए कार्तिक आर्यन Shehzada बनने के लिए पहले प्रोड्यूसर बन गए।

कहानी का Shehzada फिल्म का producer है भाई

कहते हैं जब आदमी नया-नया पैसे वाला बनता है तो दोनों हाथों से लुटाता है। बहुत भूखा भिखारी फैला-फैला के खाता है।

हॉस्पिटल में गरीब वाल्मीकि (परेश रावल) के बेटा हुआ है। वहीं, उसी हॉस्पिटल के ऊपर वाले माले पर अमीर रणदीप नंदा (रॉनित रॉय) के घर भी बेटा यानी Shehzada होता है।

अब एक बिना डिग्री की नर्स रणदीप के बेटे को हिला-डुला के देखती है, वो नहीं रोता तो उसे मरा मान लेती है (फुद्दु नर्स)। ये बात वाल्मीकि को पता चलती है तो वो कहता है कि उसके बेटे की बजाए मेरे बेटे को रख दो, सिम्पल! (इस फाइव स्टार हॉस्पिटल में रात के टाइम सिर्फ एक ही नर्स होती है ताकि बच्चा अदला-बदली हो तो कोई देख न सके)

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shehzada

हम फिर ट्राई करेंगे, दूसरा आ जाएगा, बड़े लोग तो उसके बॉस भी हैं, उन्हें क्यों डिसअपॉइंट करना।

नर्स वो बच्चा हटा लेती है और वाल्मीकि का बालक रख देती है पर हॉस्पिटल की लॉबी आते ही बालक ऑन हो जाता है और रोने लगता है। अब नर्स कहती है कि वापस रख देते हैं, वाल्मीकि हड़ जाता है और 80 किलो की नर्स को एक हाथ से ऐसा धक्का मारता है कि वो 3 फिट की बाउन्ड्री से उलटकर नीचे गिर जाती है और 25 साल की वैलीडिटी के साथ कोमा चली जाती है।

इधर वाल्मीकि के बेटे का नाम बंटू रखता है जबकि रणदीप के बेटे का नाम Raj रखा जाता है।

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राज अव्वल दर्जे का फुद्दु बच्चा है, वहीं बंटू बहुत चंटू है पर कभी झूठ नहीं बोलता।

डायरेक्टर रोहित धवन ने इससे पहले देसी बॉयज़ और ढिशूम जैसी महा-कचरा फिल्में बनाई हैं। पर shehzada कचरा नहीं है, shehzada एक म्यूज़िकल टॉर्चर है जिसमें जब कहानी का क बनना शुरु होता है; तब एक गाना टपक पड़ता है। रोहित धवन ने हद दर्जे के फ्लॉज़ शूट किये हैं।

पूरी फिल्म बस कार्तिक आर्यन को सुपर-हीरो घोषित करने में बर्बाद होती है। हाँ, कुछ पंच लाइंस अच्छी हैं। एक सीन, जिसमें कार्तिक बिना लड़े विलन के गुर्गे को IPC की धराएं सुना-सुना के इरिटेट करता है; वो बढ़िया लिखा है। बाकी रोहित को समझना चाहिए था कि तेलुगु सिनेमा में जिस तरह के हीरो पसंद किये जाते हैं, उस तरह से हिन्दी पट्टी में कम से कार्तिक आर्यन को तो लोग हज़म नहीं कर पाएंगे।

तिस्पर कार्तिक ने एक्टिंग भी बहुत गंदी की है। इतना ओवर तो वरुण धवन भी नहीं हुआ कभी।

हालांकि कृति सेनन अच्छी लगी हैं, अच्छे तो सनी हिन्दूजा भी लगे हैं। पर फायदा क्या? दोनों को तीन-तीन सीन्स देकर सारी एल्बम कार्तिक आर्यन ने ही भर दी है।

फिर भी अंकुर राठी ने मस्त बैकग्राउन्ड में हँसाया है।

रॉनित रॉय ने फिर छोटे से रोल में कमाल किया है।

मनीष कोइराला वेस्ट हुई हैं। अली असगर, शालिनी कपूर, आश्विन मुशरन फिल्म में क्यों थे इसका पता लगते ही मैं आपको चिट्ठी लिख दूँगा।

राजपाल यादव एक सीन के लिए आये हैं, टेढ़े-मेढ़े मुँह बना, हँसाकर चले गए हैं।

प्रीतम के म्यूजिक में हद दर्जे की चेवतीयापंती है। सारी धुने सुनी सुनी सी लगती हैं, sheszada टाइटल ट्रैक गीत तो इतना लंबा है कि मेरे पड़ोस वाला भाई सोनू निगम की आवाज़ को लोरी समझ सो गया था। मुंडा सोना कुड़ी तू करोड़ की दिलजीत की आवाज़ में अलग से ठीक हो सकता है पर फिल्म में अझेल और इललॉजिकल है।

दरअसल इललॉजिकल तो ये पूरी फिल्म ही है, डेविड धवन के पूरे कुनबे से लॉजिक की उम्मीद करना मतलब टाइगर श्रॉफ को 100 कदम सीधे चलने के लिए कहना! Impossible है न?

shehzada

2 घंटे 25 मिनट की इस फिल्म का क्लाइमैक्स 90s की फिल्मों वाला emotional drama create करने की कोशिश तो करता है, पर सिवाये ग्लिसरीन वाले आँसू के कुछ create नहीं कर पाता। इस फ्राइडे का Shehzada ऑडियंस के सिर में दर्द ज़्यादा करने के लिए आया है।

तिसपर, मुझे ये समझ नहीं आया कि फिल्म के एक कैरेक्टर का नाम वाल्मीकि ही क्यों रखा गया? और उस कैरेक्टर को बार-बार वाल्मीकि तू ये वाल्मीकि तू वो करके इतनी गालियाँ क्यों दी गईं? दनादन थप्पड़ क्यों बरसाए गए? मतलब कोई भी नाम रख सकते थे पर महर्षि वाल्मीकि के नाम को ही क्यों “बच्चा बदलू वाल्मीकि कहकर बुलाना था?” मैंने कभी वाल्मीकि नाम महर्षि लिखे बिना नहीं लिया।

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अब ये तेलुगु मेकर्स (आला वैकुंठापुरमुलु में भी यही नाम था) का भी अजेंडा ही था या नॉन-सेंस, पता नहीं! पर ये बेतुका केरेक्टर नेम मुझे नहीं जमा।

बहरहाल, फिल्म का बजट 65 करोड़ था, ऊपर से प्रमोशन में इतना खर्च किया गया है कि imbd पर 5000 यूजर्स द्वारा 10 रेटिंग भी आ गई है। इतनी मेहनत के बावजूद फिल्म पहले तीन दिन में 50 करोड़ भी कर ले तो गनीमत होगी।

हालाँकि netflix ने 40 करोड़ में shehzada पहले ही खरीद ली थी, अगर आप कार्तिक तिवारी (अरे गलती से सही नाम निकल गया), मेरा मतलब कार्तिक आर्यन के फैन हैं तो एक महीने बाद देख लीजिएगा।

Rating – 3/10* 

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सिद्धार्थ अरोड़ा सहर


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

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