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Salman Khan के सवाल का प्रतिउत्तर कन्नड़ अभिनेता यश ने दिया। यश इन दिनों अपनी बहुचर्चित व मच अवेटेड फ़िल्म केजीएफ़ चैप्टर 2 को लेकर सुर्खियों में बने हुए है। जोरो-शोरों से फ़िल्म के प्रचार में जुटे है। फ़िल्म ने अच्छा हाई-अप बना लिया है। 

यश ने प्रमोशनल इवेंट के दौरान बतलाया, साउथ कंटेंट ने रातोंरात माहौल नहीं बदला। ऐसा नहीं है हम आए तो हमें गर्मजोशी से स्वागत मिला हो। असफलता मिली। हम नहीं चले। 

Salman Khan

शायद यश का इशारा अस्सी-नब्बे के दशक की तरफ था। जब दक्षिण भारत से रजनीकांत, कमल हसन, वेंकेटश, नागार्जुन, मोहन लाल आदि सितारों ने बॉलीवुड के गलियारें में चमकने की भरपूर कोशिश की थी। लेकिन उन्हें उतनी सफलता न मिली। उस दौर में साउथ इंडस्ट्री अधिकांश हिंदी कंटेंट को रीजनल भाषा में रीमेक करती थी। जॉनी मेरा नाम, खिलौना, दीवार, कालीचरण, अमर अकबर एंथोनी आदि ढेरों हिंदी कंटेंट साउथ की रीजनल भाषाओं में रीमेक किए गए।

दक्षिण भारत सिनेमा में नई पीढ़ी के कलाकार फ्लोर पर उतरे और उन्होंने अपने रीजनल सिनेमा को पहचान देने की दिशा में काम करना शुरू किया। धीरे धीरे कंटेंट में बदलाव देखने को मिले। तकनीक वाइस भी सुधार करने लगे। एस शंकर, एसएस राजमौली, पुरी जगन्नाथ, बाला, एआर मुरुगोदोस सरीखे फ़िल्म मेकर्स ने कहानी कहने के अंदाज में नयापन डाला। स्टोरी टेलिंग को बदला। इन लोगों की मेहनत रंग लाने लगी और इनके कंटेंट को अटेंशन मिलने लगा। कन्नड़ में यश, सुदीप किचा, रक्षित शेट्टी और ऋषभ शेट्टी ने सिनेमा में नया प्रयोग किया है जो सफल रहा है।

जो रीजनल सिनेमा बॉलीवुड के कंटेंट पर निर्भर था। अब माहौल बदलने लगा और बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक-लेखक साउथ की ओर देखने लगे। सेथु, पॉकिरी, रामोजिराव स्पीकिंग, बॉडीगॉर्ड, सिंघम, रेडी आदि साउथ कंटेंट को हिंदी वर्जन मिले। जो बहुत सफल रहे।

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यश आगे जोड़ते है। हमनें हिंदी डब शुरू किए। शुरुआत में उन्हें मज़ाक के रूप में देखा गया। टिपिकल साउथ कंटेंट पर ख़ूब मीम बने। लेकिन हम करते गए। रुके नहीं। दर्शक हमारे काम से परिचित होने लग गए। हमें पहचानने लगे। पैन इंडिया में साउथ के कंटेंट पसन्द किए जाने लगे। अपने सिनेमा को सुधारने व ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुँचने के लिए हर पहलू पर विचार किया। इधर, एसएस राजमौली सर और प्रभास ने बाहुबली से पैन इंडिया दर्शकों को सीधे सीधे कनेक्ट किया। इससे साउथ का रास्ता खुला। 

उसके बाद मुझे लगा मेरे निर्देशक प्रशान्त नील के पास ऐसी स्क्रिप्ट है। जिसे देश भर को देखनी चाहिए। इसलिए हम पैन इंडिया बोर्ड पर आए। यहां हमे एक्सेल एंटरटेनमेंट का साथ मिला। ऐसा नहीं है हम हिंदी फिल्में नहीं देखते है बल्कि हम हिंदी फ़िल्में देखकर बड़े हुए है। मेरे  फेवरेट अभिनेता शाहरुख खान है। सलमान सर का कहना सही है। लेकिन इसके लिए हिंदी फ़िल्म के अन्य पहलुओं हमारी संस्कृति के इर्दगिर्द अच्छे कंटेंट, बढ़िया प्रोडक्शन हाउस पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही निर्माता कंटेंट को ऐसे कलाकार देवे, जो फिल्म बेच सके। 

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बाहुबली, पुष्पा और ट्रिपल आर ने ट्रेंड बदलकर रख दिया है। जबकि पुष्पा के निर्माताओं ने हिंदी बेल्ट में गंभीरता से प्रमोशन नहीं किया था। फ़िल्म के वर्ड ऑफ माउथ के भरोसे रहे। फ़िल्म ने पूरी तरह सकारात्मक वर्ड ऑफ माउथ हासिल किया। इससे फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सरपट दौड़ी। 83, सूर्यवंशी, बच्चन पांडे, राधेश्याम जैसी बड़ी फ़िल्में उम्मीद के अनुरूप न कर सकी। वही, पुष्पा, ने हिंदी ट्रेड पंडितों की आँखें खोलकर रख दी। 

इधर, केजीएफ़ 2 के एडवांस बुकिंग रिपोर्ट को देखकर सदमे में बैठे है। जबकि जर्सी के फ़िल्म निर्माताओं ने समझदारी भरा फैसला लिया है। क्लेश को टाल कर 22 अप्रैल के स्लॉट पर खड़े हो गए। इससे दोनों फिल्मों को फायदा है। उधर, विजय की बीस्ट यानी रॉ के निर्माताओं ने भी क्लेश को हल्का करने की कोशिश की है। बीस्ट 13 अप्रैल के दिन दर्शकों के बीच आएगी। 

साउथ से नब्बे के दशक में पिछली पीढ़ी ने कोशिश की थी।  मुंबई का डॉन बन जाए। लेकिन उन्हें कामयाबी न मिली। अब नई जनरेशन जिस हिसाब से जोर लगा रही है न! उसे देखकर लग रहा है। आने वाले दिनों में बॉलीवुड के गलियारों में साउथ के कंटेंट की ओरिजनल छाप होगी। फिलहाल रीमेक में बंधे है। आगे ओरिजनल में निकलेंगे। वाक़ई इस बार दमदारी और पूरी ईमानदारी से मायनगरी की सत्ता पाने निकले है। लगभग आधी बॉक्स ऑफिस लड़ाई जीत ली है। बाक़ी केजीएफ़ चेप्टर 2 के अध्याय में लिखी जाएगी। 

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केजीएफ़ 2 छह से सात हजार स्क्रीन काउंट पर वर्ल्ड वाइड निकलेगी। इनमें अकेले भारत में 4800 स्क्रीन संख्या रहेगी। इन आंकड़ों से ट्रेड का रिएक्शन देखकर लगता है, केजीएफ़ 2 के पन्नों में चैप्टर 1 जैसा रुतबा रहा तो तय है इसके आंकड़े ट्रिपल आर से बहुत आगे निकलेंगे। हो सकता है बाहुबली का सिंहासन भी ठगमगा जाए। क्योंकि रॉकी और अधीरा के द्वंद में अच्छे अच्छे किले हिलेंगे। ध्वस्त भी हो सकते है। हिंदी में एडवांस बुकिंग 20 करोड़ प्लस ले चुकी है। 

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बॉलीवुड से नहीं हो पा रहा है। कोई न कोई तो करेगा। भारतीय ही करेगा। बाहर वालों को अपना स्पेस और संस्कृति बदलने का मौका क्यों दे।

ओम लवानिया ‘प्रोफेसर’


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