Real War Hero Story: जब वॉर देखी थी तो उसमें ऋतिक रोशन को एक एक्स-आर्मी ऑफिसर कबीर दिखाया गया, जिसके बारे में ख़बर होती है कि वो मर गया पर वो ज़िंदा होकर देश के खिलाफ हो जाता है। पठान में बताया गया कि उसी कबीर के साथ एक जिम भी था, जो फिल्म में जॉन अब्राहम है; उस भाई को भी आतंकयों ने उल्टा लटकाया हुआ होता है।
यहां बताया गया है कि आर्मी अपने सोल्जर्स का साथ नहीं देती है और वो जाने कैसे बच जाता है और देशद्रोही हो जाता है। ‘टाइगर ज़िंदा है’ में आखिरी सीन दिखाया गया कि टाइगर के चारों ओर धमाके आदि हो गए पर नेक्स्ट सीन में टाइगर ज़िंदा था!
उसके अगले सीन में तो नितंब घुमा-घुमा के मटकता हुआ गाने भी गा रहा था।
Pathaan Review: Pathaan मस्त मस्त 40 फिल्मों की लस्सी घोटकर स्पाई सीरीज़ में शानदार एंट्री ले रही है
मुझे अक्सर ऐसे एक सीन में बम ब्लास्ट में घुसे और अगले सीन में वन पीस ज़िंदा बच जाने वाली टेक्नीक देख हैरानी होती थी! हालाँकि बॉलीवुड का ये रिसेन्ट जादूनामा बरसों पुरानी जेम्स बॉन्ड सीरीज से हूबहू उठाया गया है जिसमें हर तीसरी फिल्म में कोई ऐसा इन्सिडन्ट होता था कि जब लगता था कि 007 मर गया, लेकिन वो मौत 16 आने सच्ची नहीं होती थी, मतलब ऐसे सीधे माथे में गोली नहीं मारी गई होती थी बल्कि दिखाया जाता था कि जेम्स खाई में गिर गया, या बॉम्ब ब्लास्ट हो गया, या ऐसा ही कुछ हो गया जिसमें बचने के चांसेस थे!
हॉलिवुड की और भी फिल्मों में ये ड्रामा लिया गया पर सबमें ये दिखाया जाता है कि अगला बचा कैसे, सिवाये यशराज की स्पाई सीरीज़ के।
पर क्या वाकई में कोई गोली खा के या बम के बीच फँसकर ज़िंदा बच सकता है?
Real War Hero

1999 की बात है। पाकिस्तानी घुसपैठिए मौसम का फायदा उठाकर धीरे-धीरे अंदर घुस आए और कई चेकपोस्ट्स पर कब्ज़ा कर लिया। इन्हीं में से एक लोकेशन थी टाइगर हिल! अब टाइगर हिल को छुड़ाना तो बहुत इम्पॉर्टन्ट था, क्योंकि अगर इस पीक पर वापस कब्ज़ा नहीं जमाते, तो पाकी 1D हाइवै पर कोई गाड़ी न निकलने देते।
अब इस टाइगर हिल पर पहुँचने के 3 ही रास्ते थे क्योंकि चौथी तरफ पाकिस्तान था। तीसरी तरफ बिल्कुल खुला मैदान था, दूसरी तरफ थोड़ा मुश्किल रास्ता था पर कम से कम पत्थरों की आड़ थी लेकिन पहली तरफ तो बिल्कुल सीधी खड़ी चढ़ाई थी इसलिए सेना ने दूसरी तरफ से हमला बोला पर वहाँ से इतनी हेवी फाइरिंग हो रही थी कि टिकना मुश्किल था, आगे बढ़ना तो दूर की बात! वहीं पाकियों को ऊपर की तरफ होने का ऐसा फायदा मिल रहा था कि वो तसल्ली से हमारे सिपाहियों की आँख में, माथे पर निशाने लगा रहे थे।
इस दुविधा की घड़ी में चुने हुए कुछ कमांडोज़ की एक टुकड़ी बनाई गई जिसमें 12 फौजी थे। इनमें से एक घातक कमांडो रात के समय, सबसे आगे, सबसे पहले इस खड़ी चढ़ाई को चढ़ने के लिए तैयार हो गया! आखिर ये टीम में सबसे छोटा और सबसे जोशीला जो था।
ये भी पढ़ें: Salman Khan ने कभी-ईद कभी-दीवाली को बदलकर किसी का भाई किसी की जान, bhaijaan क्यों किया?
Gandhi Godse Ek Yuddh Review: मार्वल की what if सीरीज़ को सीरीअस ले गए राजकुमार संतोषी
ये खड़ी चढ़ाई सर्दी के मौसम में बर्फ के पहाड़ पर रात में चढ़नी थी कि जब हवा भी तेज़ चल रही थी! Just imagine,
पर ये जनाब चढ़ गए और अपने साथ-साथ बाकी फौजियों को भी ले चले। प्लान ये था कि एक रात चढ़ना है, दिन छुप के रहना है कि कहीं कोई चेकपोस्ट से देख न ले, और रात फिर चढ़ाई चढ़नी है। दूसरी रात चढ़ते-चढ़ते जब बहुत कम फासला रह गया था, तब एक पाकी सैनिक की नज़र पड़ गई, बस फिर क्या था? दे दनादन फाइरिंग शुरु हो गई और हमारा 19 साल का घातक कमांडो ठीक से देख भी न पाया कि टीम 12 से 6 रह गई। खुद घातक कमांडो को 3 गोलियां घिसकर निकल गईं। पेट से रक्त बहता महसूस हुआ।
Real War Hero: अब क्या करें? वापस जाएं या रुके रहें?
अजी ऐसे कैसे? ये इंडियन आर्मी है! वापस जाना तो सीखा ही नहीं। तो ये जनाब बचे साथियों के साथ फिर रात में चढ़ दौड़े और सुबह होने से पहले ही सरप्राइज़ अटैक कर दिया!
अब पाकी जवाबी कार्यवाही में इन 6 में से भी 3 शहीद हो गए पर हमारा घातक कमांडो डटा रहा। उसे एहसास हुआ कि शरीर में कहीं-कहीं से और खून रिसने लगा है, पर परवाह किसे है? घातक कमांडो ने बाकी दो साथियों संग play dead खेलना शुरु कर दिया कि गोलियां भी बचानी थीं और पाकी प्रॉपर कवर लिए बैठे थे। पाकी सुबह तक गोलियाँ चलाते रहे पर कोई जवाब न मिला!
सुबह वो बिचारे चेक करने आए तो इन तीनों ने दे-दनादन फिर गोलियां बरसानी शुरु कर दीं।
देखते ही देखते पाकी कैम्प में सिर्फ लाशें ही नज़र आने लगीं, पर वो फिर भी ज़्यादा थे। अब घातक कमांडो के बाकी दोनों साथियों के भी गोलियाँ लग गईं। एक बार फिर भारतीय साइड से गोली-बारी बंद हो गई तो पाकी सैनिक चेक करने आया, इस बार उसने रिस्क न लेते हुए घातक कमांडो के सीने में दो गोलियाँ और दाग दीं। कोई हलचल न हुई! वो खुशी से चिल्लाया, पलटा, घातक कमांडो जैसे इसी का इंतज़ार कर रहा था! पर उसे नहीं पता था कि उसने जो दो गोलियां सीने पे मारी हैं, वो असल में घातक कमांडो की जेब में पड़े पाँच के सिक्कों पर लगी हैं।
अगले ही पल घातक कमांडो ने दे दनादन एक बर्स्ट फायर झोंक दिया!
फिर एक हैंड ग्रेनेड भी फेंक कर मारा!
कुछ समय बाद, टाइगर हिल पर फिर एक बाद तिरंगा लहराने लगा!
और हमारे घातक कमांडो का क्या हुआ?
तो जनाब के 17 से 19 गोलियाँ शरीर भर में लगीं। इन गोलियों के साथ ही उन्होंने 12 घंटे से भी ज्यादा समय लड़ते-भिड़ते गोलियाँ चलाते बिताया! उनके हाथ में ऐसी गोली लगी कि हाथ में नर्व सिस्टम ब्रेक हो गया तो जनाब अपना हाथ उखाड़ने की कोशिश करने लगे कि कैसे भी करके लड़ाई में कोई बाधा न आए, जब हाथ नहीं निकला तो उसे कंधे पर रख लिया और सही हाथ से गोलियाँ चलाने लगे।
अच्छा वो तो ठीक है लेकिन हुआ क्या?

हुआ ये कि वो बच गए। और वो कोई और नहीं बल्कि सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव हैं। 15 अगस्त 1999 को उन्हें परमवीर चक्र से भी नवाज़ा गया। ज्ञात हो कि 8 जुलाई को टाइगर हिल जीतने के बाद, वो 15 अगस्त तक भी अस्पताल में ही थे! कहीं ठुमक-ठुमक नाच नहीं रहे थे।
इन्हीं की कहानी से इंस्पायर होकर फिल्म लक्ष्य में दिखाया गया था पर लक्ष्य का अहम फोकस हृतिक और प्रीति जिंटा की लव स्टोरी पर था।
योगेंद्र सिंह यादव जी अपने मुँह से जिस तरह कारगिल की वो जंग बताते हैं, सुनकर सिर्फ आँसू ही नहीं आते बल्कि जोश से खून में उबाल भी आने लगता है।
हाँ तो ये सच है कि, देश पर मर मिटने वाले बॉम्ब ब्लास्ट हो या गोलियों की बौछार, सबसे बच सकते हैं पर
अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करना न भूलें।