Punyapath देखकर आंखें चमक गई कि यार इतने दिनों के बाद भी पढ़ा क्यों नहीं तो किताब उठाई और शुरू हो गए।
लोक अस्मिता के लेखक सर्वेश जी की यह किताब “Punyapath” मेरे पास आज से लगभग छः महीने पहले ही आ गई थी लेकिन पढ़ने का मौका अब जाकर आया इसके लिए सिर्फ मैं जिम्मेदार हूँ, क्योंकि मैं अपनी आदत के अनुसार किताब के टाइटल से किताब को जज करके पढ़ना शुरू करता हूँ, और इसी वजह से इतना विलंब हुआ इसे पढ़ने में। कल जब मेरे पास मौजूद किताबों पर नजर डाली तो Punyapath देखकर आंखें चमक गई कि यार इतने दिनों के बाद भी पढ़ा क्यों नहीं तो किताब उठाई और शुरू हो गए।
किताब आजादी के समय हुए बटवारे के बाद पाकिस्तान में रह रहे एक हिंदू परिवार पर आधारित है। पहले पन्ने से कहानी जुड़ने लगती है। इस किताब से पहले पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओ के बारे में कभी नहीं पढ़ा था। किताब में उनके संघर्ष को पढ़कर मन द्रवित हो गया। आजादी के बाद देश के बटवारे के चक्कर में न जाने कितने लोग जो पहले अच्छी जिंदगी जी रहे थे, आजादी के बाद दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर हो गए। नेहरू, जिन्ना, गांधी और पटेल के तब के निर्णय की वजह से एक हिंदू परिवार को पाकिस्तान में कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा, यह इस किताब में बहुत अच्छे तरीके से दिखाया गया है।
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Punyapath की कहानी बिल्कुल नए मुद्दे जैसे एनआरसी और धारा 370 पर भी आसान भाषा में लिखी गई है। अपने धर्म को जिंदा रखने पर भी खासा जोर दिखाई पड़ता है। पाकिस्तान में रह रहे हिंदू जो आजादी के समय गांधी जी के ठोस निर्णय न ले पाने के वजह से अब भी वहाँ रह रहे हैं, उन पर हो रहे जुल्म और अत्याचार को “Punyapath” के माध्यम से दिखाने का प्रयास सराहनीय है। वो लोग जो पाकिस्तान से किसी तरह भाग कर भारत आए उन पर भी यहां के लोगों ने कम जुल्म नहीं किया।
उनके यहां रहने, कमाने और खाने तक की जो बुनायादी दिक्कतें हैं उस पर भी लिखकर लेखक ने भारत के लोगों को भी एक तरह से जगाने का काम किया है। किताब पढ़ते हुए कई बार मन सवाल कर रहा था कि कौन जिम्मेवार है आनन फानन में हुए देश के बटवारे की वजह से तबाह हुए लोगों के लिए। वामपंथ और दक्षिण पंथ की विचारधारा पर भी लेखक ने अच्छा लिखा है। पूरी किताब की खूबसूरत पंक्तियों से सजी हुई है जैसे कि –
1. मनुष्य अपने विपरीत दिनों में एक ऐसे दोस्त को खोजता है जिससे अपनी परेशानियां बता सके।
2. मनुष्य जब अपनी मिट्टी छोड़कर दूसरे स्थान पर बसता है तो उसे एक-एक सांस खरीदनी पड़ती है ।
3. हृदय में धर्म हो तो एक निर्धन व्यक्ति भी दूसरे व्यक्ति की दुनियां संवार सकता है।
अपने घर को छोड़कर पलायन करने की पीड़ा असहनीय है, ऐसे समय में हमारा धर्म ही हमें भरोसा देता है। कुल मिलाकर हिन्दी के पाठकों के लिए “पुण्यपथ” एक जरूरी किताब है। अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। इसे पढ़ लेने के बाद मैं सर्वेश जी की पहली किताब “परत” भी पढ़ना चाहूंगा
कुलमिलाकर ये किताब एक नहीं सौ बार सोचने पर मजबूर करती है कि 1947 में मिली आज़ादी क्या वाकई सबके लिए आज़ादी ही थी? क्या ऐसा नहीं था कि कुछ लोग 47 के बाद खुद को गुलाम महसूस करने लगे थे? क्या अब, आज़ादी के 75 साल बाद ही सही हमारा कर्तव्य है कि इंसानियत को बॉर्डर्स से ऊपर देखने की शुरुआत करें?
सवाल बहुत हैं, पर मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि आपके पास 47 में हुई त्रासदी को अबतक भुगतते नागरिकों के लिए क्या जवाब है?
आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा, धन्यवाद।
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किताब – Punyapath
लेखक – सर्वेश तिवारी श्रीमुख
प्रकाशक – हर्फ पब्लिकेशन
पेज – 140
मूल्य – 150/-
यह किताब पढ़ने के लिए – पुण्यपथ – पर क्लिक करें।
April 10, 2022 @ 8:21 PM
बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी। आभार💝