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हम कई बार किसी हरकत को इस इसलिए भी खराब कहना शुरु कर देते हैं, कि उसे सब खराब कह रहे हैं। OMG2 यानी ओह माय गॉड के दूसरे अध्याय में भी ऐसा ही मास्टरबेशन यानी हस्तमैथुन के बारे में सवाल उठाया है।

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पर कमाल की बात ये है कि कहानी सिर्फ हस्तमैथुन से शुरु और खत्म नहीं है। मज़ा ये भी है कि गंभीर मुद्दे में कॉमेडी का तड़का भी है तो ज्ञान की बरसात भी।

कहानी कान्ति शरण मुग्दल की है जो उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर परिसर में पूजा-पाठ के सामान की छोटी सी दुकान लिए बैठा है और महंत जी का बड़ा लाडला है। पर क्योंकि सेंसर के 27 cuts में से एक ये भी कट था कि जब आपकी कहानी काल्पनिक है, तो आप उज्जैन का नाम न इस्तेमाल करें, मंदिर का नाम बदल दें, सो फिल्म में लास्ट मोमेंट पर हुई एडिटिंग साफ नज़र आती है।

कान्ति की एक बेटी और एक बेटा है। बेटा विवेक स्कूल से सिर्फ इसलिए निकाल दिया जाता है कि स्कूल में ही किसी ने उसकी मजाहिया वीडियो बना दी है, जिसमें वो हस्तमैथुन कर रहा है।

स्कूल का कहना है कि ये गलत है, दर्शक भी यही सोच रहे हैं कि हाँ, ये गलत तो है। पर फिल्म गलत सही से कहीं आगे, क्यों(?) नामक शब्द को लेकर आती है। ये शब्द जिस भी वाक्य में लग जाए, उसे एक सवाल बना देता है और सॉरी टू से, सवाल पूछने की आज़ादी तो वो टीचर्स भी नहीं देते, जो पेरन्ट टीचर मीटिंग में बकते नहीं थकते कि “बच्चों जितनी बार पूछना है पूछो, जो भी समझ न आए उसे लेकर मेरे पास आओ”

तो विवेक के पिता, कान्तिशरण स्कूल समेत  ये क्यों वाला सवाल पूछने लगते हैं कि क्यों विवेक इतना ज़्यादा हस्तमैथुन करने लगा था?

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और इन सारे क्यों वाले सवालों को पूछने की शक्ति, कान्तिशरण को साक्षात अक्षय कुमार से मिलती है, जो फटाफट किए गए एडिट के बाद शिव के गण बना दिए गए, वर्ना दो हफ्ते पहले तक वो साक्षात भोलेनाथ ही थे।

एक्टिंग की बात करें तो अक्षय कुमार फिल्म में कैमीओ कर रहे हैं, पर अपने मसक्यूलिन फिगर और लीन बॉडी के साथ, अक्षय गजब लग रहे हैं। इन्टरवल से ठीक पहले, विभूति में नहाते हुए शिव तांडव स्त्रोतम पर उनका नृत्य कमाल है। पर इसके अलावा फिल्म में उनका पात्र सिर्फ हेल्पिंग हैंड से ज़्यादा नहीं है। एक गाइड से बढ़कर नहीं है।

एक तरफ जहाँ परेश रावल की OMG की सारी कहानी आस्तिक और नास्तिक के बीच झूल रही थी, इसलिए उसमें भगवान का साक्षात अक्षय कुमार रूप लेकर आना, तार्किक था। लेकिन OMG 2 में धर्म से जुड़ा, या शिव की ओर मुड़ा कोई मुद्दा ही नहीं है।

पर जो मुद्दा है, उसको लेकर पंकज त्रिपाठी अपना सिग्नचर किरदार फिर निभा गए हैं।

OMG 2

पंकज त्रिपाठी की पत्नी बनी गीता अग्रवाल शर्मा, इन्होंने तो मज़ा बाँध दिया है। अच्छे कलाकारों को कम टाइम मिले तो वह और बेहतर किरदार निभा जाते हैं। यही बात बीजेन्द्र काला के लिए भी कहता हूँ कि कुल जमा दो सीन में भी, वो अपनी छाप छोड़ गए हैं।

पवन मल्होत्रा जज के रूप में कॉमेडियन लगे, उनका कैरेक्टर बड़ा अजस्टेबल जज का बना दिया।

विवेक बने आयुष शर्मा ने गिनती के सीन्स में भी गज़ब का अभिनय किया है। पूत के पाँव पालने में नज़र आते हैं।

गोविंद नामदेव फिल्म में नाम के लिए ही हैं, पिछली बार जैसा प्रभाव इस बार नहीं मिला है। पर उनकी बेटी का सीन आँखों में आँसू लाने के लिए काफी है।

इनसबसे बेहतर, डॉक्टर द्विवेदी और अमित राय की राइटिंग है। स्क्रीनप्ले सेक्स टैबु से जुड़ी हर एक छोटी से छोटी बात को, खुलकर, नंगा कर उसके असल रूप में इस तरह पेश करता है कि वो अश्लील लगने की बजाए, ज़रूरी लगती है।

फिल्म इसके साथ-साथ दवाओं के भरोसे सेक्स-लाइफ बेहतर करने वालों समेत फ़र्ज़ी झोला छाप doctors पर भी हमला करने से नहीं चूकती है।

इस बेहतरीन राइटिंग और अमित राय के डिरेक्शिन को संगीत का भी अच्छा साथ मिला है। हंसराज रघुवंशी का “ऊँची ऊँची वादियों” से शुरुआत होती फिल्म, विक्रम के हर-हर महादेव से समां बाँधती, संदेश शांडिल्य और श्रद्धा मिश्रा के बेहद खूबसूरत गीत “अकेलो चल पड़ियो” से परवान चढ़ती है। इस बीच, अक्षय के लिए खास बनाया ‘शिव-तांडव-स्त्रोतम’ दर्शनीय है।

कुलमिलाकर फिल्म इतनी बढ़िया लिखी गयी है कि अफ़सोस होता है ये दस साल पहले क्यों नहीं आई। पर तब आई होती तो रिलीज़ को ही तरस गई होती।

फिल्म थोड़ी सी बड़ी भी है, अगर दस मिनट कम कर देते तो शायद ग्रिप और कसी होती पर, जो बना है, जिस मुद्दे पर जिस तरीके से बात हुई है, वो काबिल-ए-तारीफ है, थिएटर में ही देखनी चाहिए।

रिव्यू अच्छा लगे तो शेयर ज़रूर करें।

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

4 Comments

  1. Neeraj Mishra
    August 11, 2023 @ 9:51 PM

    बेहतरीन समीक्षा, पहले तो ना देखने का निर्णय किया था, लेकिन आपकी समीक्षा पढकर जरूर देखना चाहूंगा 👏👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏

    Reply

  2. Rachana Rajpurohit
    August 11, 2023 @ 11:27 PM

    बहुत खूब हर बार की तरह बेहद कसे हुए शब्दों में की गई समीक्षा, फिल्म देखने का मन हो गया अब तो 🎉

    Reply

  3. Manpreet Makhija
    August 13, 2023 @ 9:19 AM

    समीक्षा से ही पता चल रहा है कि सही वक्त पर एक सही फ़िल्म जो कि जरूरी टॉपिक को लिए हुए है, रिलीज़ हुई है। सब्जेक्ट अच्छा है , सवाल फिर यही है कि कितने पेरेंट्स अपने बच्चों को पे जाएंगे ये फ़िल्म दिखाने ! मेकर्स को शुभकामनाएं। रिव्यू के लिए भी धन्यवाद

    Reply

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