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निहारिका को जो एक बार देख ले, वो पलट कर न देखे ऐसा हो ही नहीं सकता था।

साढ़े पाँच फिट उसकी हाइट, दूध जैसी गोरी, भरा-भरा बदन और फीचर्स इतने प्यारे कि जैसे डिज्नी प्रिंसेस हो और आवाज़ ऐसी कि किसी को डाँट भी दे तो लगेगा आग्रह कर रही है। प्लस, स्वभाव की बिल्कुल सरल। इतनी खूबसूरत और अच्छी खासी कमाई के बावजूद कोई घमंड नहीं। बिल्कुल सिम्पल।

जहाँ उसकी सहेलियाँ अमूमन जींस टॉप में घूमती थीं, वहीँ निहारिका को सूट सलवार पहनना पसंद था। हालाँकि सुबह ऑफिस जाते वक़्त मेट्रो पकड़ने के लिए जल्दबाज़ी में कई बार उसका दुपट्टा मेट्रो गेट में अटका था, उसे ये इरिटेटिंग भी लगता था पर फिर भी, निहारिका सूट ही पहनती थी क्योंकि उसकी मम्मी के कहे मुताबिक वो सुबह घर से निकलकर पहले मंदिर जाती थी, फिर ऑफिस के लिए मेट्रो पकड़ती थी और मंदिर में उसे जींस पहनकर जाना ठीक नहीं लगता था।

निहारिका को खुद को मेंटेन रखने का बहुत शौक था। तो एक रोज़ उसकी कलीग उसे हेयर ड्रेसर के पास ले गई! यहीं, दिलशाद गार्डन मेट्रो में ही एक हाई क्लास सैलून खुला था। वहाँ से स्टाइलिश बाल कटवाकर निहारिका आई तो दो ही दिन बाद उसे लगा कि सलून वाला सही कह रहा था, उसे ‘केराटिन’ भी करवा लेना चाहिए।

वो अगले शनिवार बालों में केराटिन करवाने गई तो नाई ने सजेस्ट कर दिया कि कलर भी करवा लो। नौवा इतना बढ़िया सेल्समेन था कि उसने अगले हफ्ते कलर कराने के लिए भी बुला लिया। अब जबतक बाल सूख रहे थे, तबतक दोनों गप्पे मारने लगे। गप्पे इतनी बढ़ गईं कि फोन नंबर एक्सचेंज हो गए और हफ्ते भर के अंदर दोनों का दिल एक दूसरे के लिए धड़-धड़-धड़क उठा।

अब निहारिका ने अपनी कज़न को इसके बारे में बताया। लड़कियों में एक क्यूरिओसिटी होती ही है कि लाओ देखें कौन बॉयफ्रेंड मिल रहा है हमारी लड़की को! जब उस कज़न ने उस लड़के को देखा तो सहम गई। लाल बालों में वो सुकड़ी सा हद सांवला ऊदबिलाव, निहारिका के आस-पास भी नहीं था। फिर भी मेरी दोस्त ने सोचा कि शायद बातों में अच्छा हो, पर बात करके देखी तो बिल्कुल छपरी वाली! उसके मुँह पर ही बोला कि सालियाँ तो बहुत गजब हैं, मेरे दोस्तों का भी काम हो जाएगा! निहारिका को इसमें जाने कैसे कृष्ण लीला नज़र आई कि वो हँस दी। कज़न कलप गई। उसने निहारिका को समझाया कि देख, एक तो लड़का कम काकातुआ ज़्यादा लग रहा है, दूसरा हम ब्राह्मण हैं, तेरी मम्मी निचले गोत्र में शादी नहीं करने देंगी ये तो दूसरा धर्म है।

पर नहीं, निहारिका तो हड़ गई! एक महीना भी नहीं बीता और शादी की बात घर में चला दी। घरवालों ने पहले डाँटा फिर समझाया फिर भी नहीं ज़िद पर अड़ गई तो थक हारकर उसके चाचा ने कह दिया कि चल लड़के को घर बुला ले, बात कर लेते हैं। आस पड़ोस में बातें शुरु हो गईं कि जिसके पिता नहीं होते हैं, वो बेटियाँ देखो कैसे हाथ से निकल जाती हैं!

अब निहारिका खुशी-खुशी नौवे से बोली कि चलो घर, मम्मी मान गई हैं तो पट्ठा घर आने को राज़ी ही न हो। करीब एक महीने तक ये मनुहार चली, पर लड़का अपनी ज़िद्दी बन गया कि तेरे घरवाले ड्रामा कर रहे हैं, नहीं मानेंगे, हम भागकर ही शादी करेंगे!

अब निहारिका कि दिक्कत ये कि वो भाग तो जाए, पर बिना मम्मी से पूछे कैसे भागे? अपनी मम्मी के बिना तो उसने समीज नहीं खरीदी कभी, शादी का जोड़ा कैसे खरीदे?

छः महीने बीते! एक दिन वो कज़न निहारिका के घर गई तो पता चला निहारिका घर वालों से नाराज़ चल रही है कि वो लोग सादिक के घरवालों से बात करने नहीं जा रहे, उन्हें उसकी शादी की कोई चिंता ही नहीं है।

वहीं निहारिका की हालत यूं थी कि सूख के कांटा हो चुकी थी। कज़न ने उसको शॉपिंग पर चलने के लिए कहा कि मूड फ्रेश हो जाएगा पर उसके लिए भी मना कर दिया, बहाना मिला कि पैसे नहीं है! अब जब कज़न ने अच्छे से कुरेदा तो पता चला सादिक को अपनी अलग दुकान खोलने की सोची थी, उसके लिए ऑफिस से लोन करके 2 लाख रुपये उसको दिए हैं। उसने वादा किया है कि जब दुकान चल निकली तो प्रॉफ़िट हाफ-हाफ कर लेंगे।

अब ये बात कज़न ने उसकी फैमिली को बता दी! घर में फिर हंगामा हुआ।

माँ ने दो कान के नीचे लगाए तो निहारिका घर से भाग जाने की धमकी देने लगी!

मामला सीरीअस हो गया था!

अब किसी ने सुझाया कि लड़की पर कुछ करा दिया है लड़के ने, वर्ना ऐसे लुच्चई तो ये नहीं करती थी…

ऐसे में अंग्रेज़ लोग चर्च के पिताजी को बुला लेते हैं, इस दीक्षित फैमिली ने फरीदाबाद के एक तांत्रिक के पास जाने का प्लान बनाया। निहारिका को डॉक्टर का बहाना देकर, उसकी बहनें बहाने से फरीदाबाद ले गईं। अब सिद्ध तांत्रिक ने पहली ही मीटिंग में बताया कि छः महीने पहले इस लड़की पर गंभीर टोटका किया गया है, ये उस लड़के से मिलती रही तो निपट जायेगी!

तो बाबा इलाज?

बाबा बोले इलाज बाद में पहले सफाई, इसके पेट में उसका बीज आ गया है!

अब बहनें सकते में आ गईं! ऐसे कैसे? अभी 20 दिन पहले ही periods हुए हैं!

लेकिन एक माँ के सामने कोई बाबा उसकी फूल सी बच्ची के लिए ऐसे बोल दे तो माँ का भड़कना स्वाभाविक है! उन्होंने बाबा को डायरेक्ट तो नहीं पर उनके चेले तो सुना दिया कि हमारी किस्मत फूटी थी जो यहाँ ले आए, क्या समझ रखा है हमारी बच्ची को? इससे तो किसी दिमागी डॉक्टर के पास ले जाते बेहतर था।

बाबा ने भविष्यवाणी कर दी कि तू जितनी जल्दी में जा रही है, उतनी ही फुर्ती से वापस आएगी!

वहीं लड़की ऐसी कि सबके सामने बैठी, सबको सुन रही थी पर बोदी बनी समझ कुछ नहीं पा रही! छोटी बहन ने डाउट पालना ठीक न समझा, वो डॉक्टर को दिखाने चल दी। पता चला 14 दिन का गर्भ है। माँ को पता चला तो मार रो-रो के बुरा हाल कर लिया।

दूसरी ओर निहारिका को बहुत छुट्टियाँ लेने और काम में लापरवाही करने के कारण ऑफिस से 30 दिन का नोटिस मिल गया कि बस, बहुत एनर्टैन किया आपको, अब कुर्सी खाली करो! अब बिचारी, बीमार भी थी और बेरोज़गार भी। उधर सादिक घर से भागने के लिए प्रेशर कर रहा था। इधर बहन ने बताया कि वो प्रेग्नेंट हो चुकी थी! मोहल्ला अगर कानाफूसी करने लगा था।

अब?

अब निहारिका की माँ ने सबसे पहले खुद को संभाला और फिर उसका इलाज कराने की ठानी! पर निहारिका ने फिर भूत सवार कि उसे भ्रूण नहीं हटाना! अब फैमिली के पास दो रास्ते बचे थे! या तो बेटी को घर से भगा दो या सारे समाज में बेइज्जती करवा के, चुप-चाप दोनों की शादी करवा दो।

लेकिन मौके की नज़ाकत समझ, कज़न निहारिका को लेकर सादिक के पास पहुँच गई कि अगर पेट साफ नहीं करवाना है तो दोनों शादी कर लो। सादिक की फिर भी वही रट, शादी करनी है तो यहाँ से भाग चलो, मेरे गाँव चलो वहीं चलकर शादी करेंगे और वहीं रहेंगे। यहाँ नहीं रहना! कज़न उसको समझाने लगी कि जब घरवाले मान रहे हैं तो भागना है तो बस तू भाग? इसे भागने को क्यों कह रहा है?

कज़न की देखा-देखी निहारिका ने भी पूछ लिया कि जब सलून यहाँ खोल रहे हैं तो गाँव में रहकर क्या करेंगे? तो सादिक ने साफ कह दिया कि तू गाँव में रहेगी, मेरा बच्चा पालेगी, मेरे घर में अम्मी के साथ हाथ बटाएगी और मैं यहाँ दिल्ली रहूँगा सैलून चलाऊँगा! राज़ी है तो चल अभी चलते हैं!

मेरी दोस्त ने एक हाथ रखा सादिक के गाल पर पे और दूसरे हाथ से पकड़ा निहारिका का हाथ और फैसला करते बोली कि अगर तुझे अब भी इस चूतिये के साथ ज़िंदगी बितानी है तो मुझे मार के चली जा जहाँ तुझे जाना है!

अच्छा शायद निहारिका की आँखों की भी कुछ पट्टी हटी होगी। उसने माँ की बात मान ली और सबसे पहले दवा लेनी शुरू की। 15-20 की प्रेग्नेंसी के लिए किसी अबॉर्शन की ज़रूरत नहीं होती, unwanted kit की तीन गोलियों से ही periods आने शुरु हो जाते हैं।

जब भ्रूण हटा तब फिर से निहारिका को तांत्रिक के पास लेकर गए। उन्होंने झाड़-फूँक किया और फिर बताया कि अगले तीन महीने बहुत दर्द-भरे गुज़रेंगे बेटी! उसकी बहुत याद आएगी, बार-बार जाने का मन करेगा, लेकिन संयम रखना, जाना नहीं! धीरे-धीरे रिकवर हो जायेगी! कुछ मंत्र दिए, बीते 4 महीने से मंदिर जाना छोड़ चुकी थी, वो फिर से चालू करने के लिए कहा! दिमाग को दूसरी ओर उलझाने की भी सलाह दी।

माँ को सख्त हिदायत दी कि इसकी कहीं और शादी का ज़िक्र भी मत करना अभी, वर्ना ये खुदकुशी कर लेगी!

कहते हैं इलाज भी तब कारगर होता है जब मरीज़ ठीक होना चाहे! निहारिका अब खुद इस चंगुल से निकलना चाहती थी! इसलिए सबसे पहले उसकी माँ ने उसे ऋषिकेश मौसी के यहाँ शिफ्ट किया। वहाँ जाकर कुछ दिन तो चैन रहा पर फिर निहारिका पगलाने लगी।

कभी-कभी रात को सोते-सोते चीख पड़ती, सुबह उठती तो हाथ पाँव में गहरे लाल निशान पाती कि जैसे किसी ने काटा हो या ज़ोर से नोचा हो! दो बार दिल्ली भागने की कोशिश भी की लेकिन मौसी ने जैसे-जैसे पकड़ लिया। जाने कितने ही थप्पड़ लगाकर, फिर समझा-बुझाकर, एक दो दिन बाद जाने का बहाना देकर, नये-नये पकवान बनाकर उसे जाने से रोक लिया।

धीरे-धीरे 6 महीने में सेहत वापस आने लगी। दिमागी संतुलन फिर बनने लगा। जब शरीर और दिमाग काबू में आए तो उसको लगा कि कुछ काम करना चाहिए। अब माँ ने भी दिल्ली बुला लिया। इन सब चोंचलों में, छोटी बहन ने phD बीच में ही छोड़कर जॉब करनी शुरु कर दी थी। निहारिका ने घर आकर फिर जॉब ढूँढ़नी शुरु की पर कहीं भी पहले जैसी सैलरी क्या उसकी आधी भी नहीं मिली।

फिर उस छपरी से 2 लाख रुपये वापस लेने की कोशिश में मिलने गई तो पता चला वो अब किसी और लड़की से भी एक-सवा लाख लेकर सलून की जॉब छोड़कर गाँव भाग गया है। सेविंग्स और फंड आदि सब बीमारी और ऑफिस लोन में चुक गया था।

यहाँ मुझे उसके बारे में पहली बार पता चला था। उसकी कज़न मेरी कलीग और दोस्त थी। मुझे अमूमन टोटकों-तंत्रों पर भरोसा नहीं होता था। फिर भी जब उसने निहारिका कि रीसन्ट फोटो दिखाई तो मुँह से यही निकला कि खंडहर बताते हैं कि इमारत बुलंद थी। उसकी साल डेढ़ साल भर पुरानी फ़ोटोज़ के मुकाबले निहारिका रूखी, बेजान सी दिखने लगी थी पर अब उसकी सेहत ठीक थी। फिर उसकी बीमारी वाली फोटो भी देखी तो पहचानना मुश्किल हो रहा था कि ये सेम लड़की है।

बहरहाल, अमूमन नौकरी करता आदमी कभी किसी दूसरे को नौकरी करने की सलाह नहीं देता, ठीक वैसे ही जैसे शादीशुदा आदमी हर कुँवारे को चेताया रहता है कि शादी मत करनया। वैसे ही मैंने अपनी दोस्त को सुझाया कि उसको बोले जॉब-वॉब का चक्कर छोड़, कुछ अपना करे। अब तो लोन-क्रेडिट कार्ड इत्यादि भी जल्दी बन जाते हैं। जॉब में कुछ नहीं रखा!

पर बिना जॉब के लिए लोन भी नहीं मिल सकता था। लेकिन निहारिका तो निहारिका है, उसने हार नहीं मानी, हर माँ की तरह उसकी माँ ने भी बचपन से ही उसकी शादी के लिए थोड़ी-थोड़ी जूलरी बनवानी शुरु कर दी थी। उसने माँ से वो गहने ले लिए और मुथूट फाइनैन्स से ढाई लाख रुपये लोन ले लिया। इस पैसे से उसने वुमन बेस्ड सीज़नल कई आइटम थोड़े-थोड़े खरीदने शुरु किये ऑनलाइन बेचने शुरु किये। बीते कुछ वर्षों से नाइका नामक ई-कॉमर्स वेबसाईट बहुत फेमस हो रही थी, तो निहारिका को उसकी नाइका मिल गई। निहारिका ने घर को ही गोदाम, ऑफिस बना लिया और प्रोडक्ट क्वालिटी के साथ-साथ अच्छी पैकिंग पर भी ध्यान देने लगी।

इस बात को 3 साल हो गए हैं। कोरोना जैसे समय में निहारिका ठीक-ठाक कमा रही थी। तब वो मास्क और सेनीटाइज़र ऑनलाइन बेचने लगी थी। अभी का ये आलम है कि उसका घर एक मंजिल और ऊँचा उठ रहा है। छोटी बहन पीएचडी कर चुकी है, उसके लिए लड़का देख रही है, खुद की शादी के लिए पूछो तो हँसते हुए कहती है अभी मम्मी के लिए पेंशन की व्यवस्था कर दूँ फिर सोचूँगी!

पर हालिया मुद्दे को देखकर लगता है कि अगर निहारिका हमारे सोशल मीडिया के उन मठाधीशों की बेटी होती जो फ्रिज वाले जोक बना रहे हैं और कहते नहीं थक रहे हैं कि अच्छा हुआ मर गई साली, जानबूझकर कट-वो के पास जायेगी तो मारी ही जायेगी; तो अबतक निहारिका भी किसी सूटकेस या फ्रिज में कटी मर गई होती। वो तो भला हो उसकी माँ का, जिन्होंने हज़ार लानतें दीं, दसियों बार कूटा, मौसियों ने भर के सुनाई, बहनों ने, कज़न होते हुए भी सगी बहन का फ़र्क न रखा, एक बार जो उसका हाथ पकड़ लिया तो फिर साथ न छोड़ा!

मैंने निहारिका को लंबे समय बाद देखा तो वो खुश लग रही थी! बात भी अच्छे से की। उसके चेहरे पर अब हँसी, जीत की खुशी नज़र आती है। हाँ, आँखों में चमक पुरानी तस्वीरों में दिखती थी, वो अब भी गायब है! और हाँ, सुना है अब उसने बाल कटवाने ही छोड़ दिए हैं!

(नाम छोड़ बाकी कहानी बिल्कुल सच्ची है)  

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

14 Comments

  1. अजीत
    November 17, 2022 @ 6:53 PM

    उत्तम

    Reply

  2. Mohan T Jain
    November 17, 2022 @ 7:27 PM

    Outstanding story bhai

    Reply

  3. Rahul Porwal
    November 17, 2022 @ 7:34 PM

    बहुत बढ़िया सिद्धार्थ भाई 😊👍

    Reply

  4. Rupam
    November 17, 2022 @ 9:33 PM

    Reply

  5. निशान्त कुमार
    November 17, 2022 @ 10:45 PM

    हमेशा की तरह आपका लेखन बेहद उच्च स्तर का है

    Reply

  6. jitendra tiwari
    November 17, 2022 @ 11:19 PM

    wordless

    Reply

  7. Sachin jha
    November 18, 2022 @ 1:05 AM

    Heart touching…❤️

    Reply

  8. Pradeep Kumar Pandey
    November 18, 2022 @ 8:45 AM

    बहुत खूब, शानदार जबरजस्त

    Reply

  9. पूजा
    November 18, 2022 @ 4:58 PM

    पढ़कर बहुत अच्छा महसूस कर रहे…धन्यवाद ये लिखने के लिए

    Reply

  10. Gaurav sen
    November 19, 2022 @ 1:26 AM

    बेहतरीन, लाजवाब,

    Reply

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