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Based on Real events of Uri sector and Indian army’s surgical strike in POK इस फ़िल्म के बारे में कुछ भी लिखने के पहले ये बताता चलूं कि जेपी दत्ता की मशहूर फ़िल्म बॉर्डर, जिसमें आधे से ज़्यादा जवान और ऑफिसर शहीद दिखाए गए थे। पर असल में 1971 लोंगेवाला में हमारा सिर्फ एक जवान शहीद और एक घायल हुआ था। (वो भी पाकिस्तान आर्मी के किये नहीं) जबरन इमोशनल करने के लिए ट्विस्ट डालकर हमें गलत जानकारी परोसी गयी थी।

निर्देशक और लेखक – आदित्य धार
निर्माता – RSVP (रॉनीस्क्रूवाला)
संगीत – शाश्वत सचदेव
सिनेमेटोग्राफी – मितेश मीरचंदानी
एडिटिंग – शिवकुमार पेनिकर
कॉस्ट्यूम – रोहित चतुर्वेदी
एक्शन निर्देशक – स्टीफेन रिक्टर

कहानी

Uri: The Surgical Strike

शुरु होती है 2015 में नॉर्थ ईस्ट में हुए एक हमले से। जवान गाते-गुनगुनाते बस में बैठे जा रहे हैं और उनपर हमला हो जाता है। इसके तुरंत बाद स्पेशल कमांडोज़ की एक टीम जिसके लीडर मेजर विहान शेरगिल (विकी कौशल) इंडिया-म्यामार बॉर्डर के पास ढेरो आतंकियों को ढेर कर देते हैं। ‘इंडियन आर्मी का कोई नुकसान नहीं होता’

इस कामयाबी के बाद प्रधानमंत्री (रजित कपूर) खुद उन्हें बधाई देते हैं और अपने पी ए गोविंद (परेश रावल) से कहकर विहान का तबादला दिल्ली करा देते हैं। क्यों?
क्योंकि विहान की माँ को अल्ज़ाइमर है। यहाँ एक नर्स (यमी गौतम) सरकार की तरफ से विहान की फैमिली का ख़्याल रखने आ जाती है। विहान का बहनोई भी स्पेशल फोर्सेज़ में है।

 फ़िल्म को अलग-अलग चैप्टर्स में रखा गया है। फ़िल्म का टाइटल कोई 45 मिनट बाद आता है और जिस मौके पर आता है वो बिलकुल सटीक बैठता है।
आदित्य कहानी लिखने और बताने में पूर्णतया सफ़ल हुए है।
स्क्रिप्ट में दो-तीन बेवजह के इंटरप्शन है जिन्हें चाहते तो इग्नोर कर सकते थे।

Uri: The Surgical Strike

डायरेक्शन

आदित्य ने कहीं कोई गलती न करते हुए फ़िल्म को बैलेंस रखा है। सरकारी फैसलों को इतनी गहराई से दिखाती पहली बार कोई फ़िल्म बनी है। लगता है मानो सरकार ने खुद फ़िल्म प्रोड्यूस की है।
एक्शन और सिनेमेटोग्राफी ज़बरदस्त है। पहली बार रात के एक्शन सीन इतने क्लियर बने हैं।

एक्टिंग

Uri: The Surgical Strike

लीड एक्टर विकी कौशल और परेश रावल ने बेहतरीन एक्टिंग की है। आप देखकर कह सकते हैं कि विकी बने ही URI के इस रोल के लिए थे। इन दोनों के अलावा रजित कपूर मिसकास्ट हैं। यमी भी। कीर्ति कुल्हरी की कोई ज़रूरत नहीं थी। स्वरूप संपत (विकी की माँ) की एक्टिंग अच्छी है और आकाशदीप अरोड़ा सप्राइज़ पैकेज हैं। ये बच्चा (DRDO इंटर्न जो गरुण ड्रोन बनाएग) यकीनन आपका दिल जीत लेगा। मोहित रैना का हेरोटिक रोल है, ठीक है।

म्यूजिक

Uri का बैकग्राउंड म्यूजिक इस फ़िल्म की जान है। ज़बरदस्त ड्रम बीट्स का इस्तेमाल हुआ है।
कुलमिलाकर फ़िल्म तथ्यों को बहुत बढ़िया तरीके से समेटे है। कुछ एक इमोशनल कंटेंट डाला है जैसे बहनोई का मरना और फिर बदला लेने जाना पर इसे आप ऐसे समझ सकते हो कि हर सिपाही ने अपना दोस्त, अपना भाई उरी अटैक में खोया था, जिसने मिशन किया वो बदला लेने ही गया था।
ये बदला सैनिक पाकिस्तानी आवाम से नहीं आतंकियों से ले रहे है। जिनसे नफ़रत होनी ही चाहिए।

uri के कुछ मज़ेदार पॉइंट्स

फ़र्ज़ और फ़र्ज़ी वाला डायलॉग।
DRDO में इंटर्न के साथ परेश रावल का सीन
लास्ट स्ट्राइक के वक़्त डायलॉग “इसे कहते हैं इंडियन आर्मी”

Uri The Surgical strike में एडिट किये जाने चाहिए थे यह सीन्स-

बिलावजह फ़ोन तोड़ना, फिर अगला फ़ोन डायरेक्ट एक्टिव (हालांकि लोग इसे एन्जॉय कर रहे थे)
पैर काटने का ब्रूटल सीन

दस मिनट की लेंथ। जहाँ टाइटल आया था वहीं इंटरवल होता तो बेहतर था।
देखने की वजह – अबतक जितनी भी आर्मी की लड़ाइयों पर बनी फ़िल्म देखी हैं, उनमें ये अकेली है जिसमें जवानों की दुर्गति नहीं दिखाई। भले ही एक भी जवान शहीद न हुआ हो पर बॉलीवुड ने हमेशा दयनीय ही दर्शाया। पर इस बार नहीं।
बेहतरीन बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए जाएं। अच्छी एक्टिंग के लिए भी।
न देखने का बहाना – देशभक्ति से नफ़रत है। एक्शन नहीं झेल पाते।

रेटिंग – 8/10*

प्रोफेशनलिज्म को किनारे रखकर एक आख़िरी बात।

अगर आप देशभक्त हैं तो इस फ़िल्म के बाद आपके मन में इंडियन आर्मी के लिए इज़्ज़त डबल हो जायेगी। अचानक आप खुद को और सुरक्षित महसूस करने लगेंगे क्योंकि इंडियन आर्मी कुछ भी करने में सक्षम है।

वहीं अगर तू आतंकी है, हमारे देश में छुप के बैठा है और गलती से ये फ़िल्म देख आया है तो यकीनन तुझे दहशत हो जायेगी। ऐसा रूप किसी डायरेक्टर ने नहीं दिखाया होगा इंडियन आर्मी का।

Siddharth Arora ‘Sahar’ 


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

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