Manoj Bajpayee की ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ बिना कोई हल्ला-गुल्ला किए ZEE5 पर रिलीज़ हुई और आते ही छा गई। डिस्ट्रिक कोर्ट की चार दीवारी पर फिल्माई 80% फिल्म में ऐसा कुछ तो है कि हम आप बोर होने की बजाए, बढ़-चढ़ के एक दूसरे को सुझाव दे रहे हैं कि भई ये देखो।
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कहानी एक लड़की के कमला नगर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाने से शुरु होती है। बिना कोई भूमिका बाँधे, कवर-अप किये, फिल्म अगले ही सीन में आसाराम बापू उर्फ बाबा जी के रेप केस पर पहुँच जाती है।
अब हम सब जानते हैं कि आसाराम को उम्र कैद हो गई थी। इसका मतलब ये क्लीयर है कि फिल्म में नया कुछ नहीं आने वाला। फिर भी आगे बढ़ते हैं…
लड़की के माँ-पिता को एक सरकारी वकील मिलता है और फिर अगले ही सीन में स्पष्ट हो जाता है कि वकील बिका हुआ है। उस वकील को हटाकर अब पी.सी. सोलंकी यानी Manoj Bajpayee को प्रोसीक्यूशन वकील चुना जाता है और यहीं, लड़की और उसके माँ-पिता द्वारा लड़की के साथ क्या घटा, ये बताया जाता है।
अब सोचिए, पहले सीन से आपको पता है कि लड़की के साथ क्या दुर्घटना घटी है, पर डायरेक्टर अपूर्व सिंह कर्की ने इस बेहतरीन शैली से डायरेक्ट किया है कि अपनी घटना बताते-बताते रोती लड़की को देख आपकी भी नसें गुस्से से फूल जाएं। दीपक इससे पहले aspirants और टीवीएफ के कुछ चुनिंदा शोज़ डायरेक्ट कर चुके हैं।
इसके बाद कोर्ट में डिफेंस की बेतुकी दलीलें और दीपक किंगरानी की बेहद शानदार राइटिंग पर मनोज बाजपायी की टॉप मोस्ट एक्टिंग शुरु हो जाती है।
एक डरे हुए लेकिन अपने कर्तव्य पर अडिग रहने वाले वकील के रूप में Manoj Bajpayee छा गए हैं। वाकई उनका कोई जवाब नहीं। साथ ही अद्रिजा की एक्टिंग भी कमाल है। कम dialogues में मात्र बॉडीलैंग्वेज से अद्रिजा दर्शकों को कंविस करने में कामयाब हुई हैं कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है। हालाँकि फिल्म के ऐन्टैगनिस्ट बने सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ के हिस्से में दो डाइलॉग और दो ही इक्स्प्रेशन आए हैं। अंत में फफक के रोने को भी काउन्ट कर लें तो 3 आए हैं।
तारे ज़मीन पर के पापा विपिन शर्मा भी अच्छे लगे हैं।
माना कि फिल्म सच्ची घटना ही नहीं, सच्चे कैरेक्टर और सच्ची हीयरिंग को नाटकीय रूपांतरित कर बनाई गई है पर फिर भी, मेरी नज़र में फिल्म की कामयाबी का बड़ा श्रेय राइटर दीपक किंगरानी को जाता है। दीपक की लेखनी टू द पॉइंट होती है, ये आप स्पेशल ऑप्स के दोनों सीज़न में देख चुके होंगे।
खैर कहानी पर लौटते हैं –
बच्ची का पिता जब हिचकिचाते हुए पूछता है कि फीस कितनी होगी?
तब पीसी सोलंकी का डायलॉग “गुड़िया की स्माइल” दिल को छू जाता है।
Manoj Bajpayee का एक सीन पूरी फिल्म पर भारी है
बादबाकी फिल्म को कोर्टरूम ड्रामा तक ही सीमित रखने के चक्कर में 5 साल में हुई बाकी अनगिनत केस तोड़ देने वाली घटनाओं को फॉर्मैलिटी सा दिखाया गया है। मसलन, वकील को खरीदने की कोशिश की, मसलन पिता का काम धंधा चौपट हो गया, गवाह मरते जा रहे हैं। पहले हाई-कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में टॉप मोस्ट वकीलों द्वारा जमानत की अर्ज़ी देना।
इन सारी फॉर्मैलिटीज़ के बाद क्लाइमैक्स देख इच्छा होती है कि जेब में पड़े आधा दर्जन सिक्के लैपटॉप की स्क्रीन पर न्यौछावर कर दें। Manoj Bajpayee के तो हाथ चूम लें।
जजमेंट डे पर क्लोज़िंग स्टेटमेंट सुनाई जाती है जिसमें विपिन शर्मा साफ फॉर्मैलिटी करते नज़र आते हैं लेकिन Manoj Bajpayee उस एक मोनोलॉग में अपनी जीवन भर की एक्टिंग, आस्था और कमाई उलटकर रख देते हैं।
मैं उस मोनोलॉग को 3 बार लगातार देख चुका हूँ, चाहूँ तो यहाँ पूरा dialogue लिख सकता हूँ और ये दावे से कह सकता हूँ कि पूरी फिल्म एक तरफ है और Manoj bajpayee का वो मोनोलॉग एक तरफ।
इस बंदा की खास बात ये भी है कि इसमें आसाराम की हकीकत तो दुनिया के सामने लाई गई है, पर सनातन धर्म को नीचा दिखाने की टुच्ची कोशिश नहीं की गई है। मतलब जो कट्टर हिन्दू शेर चीते जेगुआर भी हैं, उन्हें भी फिल्म अच्छी ही लगेगी।
यहाँ तक की आसाराम के अनुयायी अगर फिल्म देख लें तो कोई बड़ी बात नहीं वो भी बाबा बदल लें।
इन सब क्वालिटीज़ से इतर, मुझे खुशी है कि ये फिल्म बनी। इसका स्केल और ड्यूरेशन ओटीटी लायक ही था, सिनेमाहॉल में शायद फिल्म एक हफ्ता न टिक पाती पर ये तब भी मेरी नज़र में ज़रूरी फिल्म होती। ठीक वैसे ही जैसे ‘एक बदनाम आश्रम’ सीरीज़ है।
जिसके पास साधन हैं, संपन्नता है, मानने वालों की फौज है, वो स्कूल, हॉस्पिटल, लंगर आदि चलाकर भगवान से चार हाथ ऊँचा सिंहासन रखने का दावा करता है और ऐसे Zeus पर कोई आम शख्सियत न सिर्फ आरोप लगाती है बल्कि अंत तक लड़ने की हिम्मत भी बनाए रखती है; तो ज़रूरी है कि उसकी कहानी सबके सामने आए।
बाकी आप भी देखिए और बताइए कैसी लगी।
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May 25, 2023 @ 12:41 PM
Very well written review.
Dnt know abt film but review is jist peefect.
May 25, 2023 @ 12:55 PM
Well written
May 25, 2023 @ 10:11 PM
THANK YOU SO MUCH
May 25, 2023 @ 1:07 PM
सटीक विश्लेषण। मनोज बाजपेई के पीड़िता के साथ फिल्माया गया हर सीन मार्मिक है। अपनी खुद की बेटी को एक पिता जैसे ढांढ़स बंधाता या उसकी हिम्मत बंधाता ठीक वैसा ही अभिनय और संवाद। सटीक संवादों और कानून की धाराओं का विस्तृत विवरण फिल्म को स्वाभाविक बनाने का काम किया।
May 25, 2023 @ 10:11 PM
THANK YOU SO MUCH FOR YOUR COMMENT
May 25, 2023 @ 1:28 PM
काफी दिनों से आप की हर फिल्म समीक्षा को पढ़ा है …..अद्भुद और लाजवाब लेखन
May 25, 2023 @ 10:10 PM
THANK YOU SO MUCH SHEEETAL JI
May 25, 2023 @ 3:21 PM
बेहतरीन रिव्यू 👏👏👏👏
May 25, 2023 @ 10:10 PM
THANK YOU SO MUCH
May 28, 2023 @ 2:58 PM
Beautifully written. ..keep it up