Kuttey से 14 साल पहले, विशाल भरद्वाज जब 2009 में कमीने लेकर आए थे, तब देखते ही पहली नज़र में लगा था कि विशाल कुआंटिन टेरेंटिनों (हॉलिवुड के मशहूर सनकी निर्देशक) से थोड़े बहुत इन्सपायर हैं। लेकिन Kuttey देखते समय ऐसा लगा कि विशाल के पुत्तर जी ‘आसमान’ अमेरिका में कुआंटिन के घर बर्तन भी माँझकर आए हैं।
मज़ाक से इतर… Kuttey की कहानी interesting है
kuttey की कहानी एक नक्सल अटैक से शुरु होती है। इस अटैक की लीडर लक्ष्मी (कोंकणा सेन) सारे पुलिसियों को मार देती है पर एक कॉन्स्टेबल पाजी (कुमुद मिश्रा) को ज़िंदा छोड़ देती है और जाते-जाते एक गिफ्ट देती है – एक हैंडग्रेनेड।
अब कहानी का पहला चैप्टर आता है, – सबका मालिक एक।

यहाँ नेपटिज़म के शहंशाह और फिल्म के हीरो गोपाल (अर्जुन कपूर) की एंट्री होती है। ये जनाब संभोग कर रहे हैं, लेकिन इनके संभोग में बाधा बनने नसीरुद्दीन शाह पहुँच जाते हैं। यहाँ से एंगल ड्रग्स और सुपारी किलिंग की ओर मुड़ जाता है।
पता चलता है कि गोपाल सब इन्स्पेक्टर है, जो ड्रग लॉर्ड के साथ काम करता है और अब उसी की सुपारी उठा लेता है। आगे भयंकर शूटआउट होता है! शूटआउट के बाद गोपाल और पाजी को दो करोड़ की कोकीन मिलती है और मेरे दिमाग में फिल्म धीरे-धीरे कमीने 2 की तरफ बढ़ने लगती है लेकिन नहीं, अब एक मस्त ट्विस्ट आता है और ड्रग्स तो शादी में आए फूफा की तरह मुँह फुलाकर किनारे हो जाता है।
फिर क्या होता है? फिर प्लानिंग होती है, रॉबरी की प्लानिंग!
फिर आती है तब्बू, आशीष विद्यार्थी, राधिका मदान, शार्दूल भारद्वाज और अच्छे भले थिएटर ऐक्टर्स, जो0 फिल्म को संभालने की भरपूर कोशिश करते है।
अब बात निर्देशन की करूँ तो 2002 में विशाल भारद्वाज की मकड़ी आई थी। इस फिल्म के बारे में विशाल बताते हैं कि Indian Children’s Films के लिए बनाई गई ये फिल्म बेदर्दी से रिजेक्ट कर दी गई थी। इस फिल्म को बनाने के लिए, शायद 50 लाख रुपये; उधार लिए थे। मकड़ी देखने के बाद मैं कई रात ठीक से सो न सका था क्योंकि शबाना आज़मी की ऐक्टिंग और फिल्म का साउन्ड, रूह कंपा देने में सक्षम था।
वहीं आसमान की पहली फिल्म kuttey, कम से कम 40 करोड़ (अनुमानित) में बनी फिल्म है। आसमान अमेरिका में स्क्रीनप्ले राइटिंग का 3 साल का कोर्स करके आए हैं। डिरेक्शिन भी उन्होंने वहीं से सीखा है, पर भारतीय सिनेमा लवर्स कैसी फिल्म चाहते हैं, ये समझने के लिए आसमान को अभी और चाँद-सितारे देखने होंगे। फिल्म का डिरेक्शिन बुरा नहीं है, पहली फिल्म के हिसाब से अच्छा है।
एक्शन बिल्कुल टेरेंटिनों स्टाइल है पर यहाँ सेंसर एक हद के बाहर अलाऊ नहीं कर सकता है। सीन्स भी एक दूसरे से connecting बनाने की भरपूर कोशिश की है और एक दो जगह कामयाब भी हुए हैं, पर अंत आसमान बिल्कुल संभाल नहीं पाए हैं। फिल्म क्लाइमैक्स में बिखर गई है!

यहाँ मैं विशाल के शागिर्द अभिषेक चौबे का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूँगा। अभिषेक ने कई साल विशाल के साथ इन्वेस्ट किये और जब अपनी पहली फिल्म बनाई (इश्क़िया), तो सबका दिल जीत लिया।
हालांकि kuttey द्वारा सूंघकर अर्जुन को उठाया जाना, एक सीन के छोटे से टुकड़े ने मुझे बहुत इंप्रेस किया।
वहीं पटकथा की बात करूँ, तो फिल्म लिखने की बजाए सारा ध्यान सीन लिखने में लगा दिया है। मात्र 40 मिनट में हुए interval के बाद फिल्म अपनी ग्रिप खोने लगती है। वहीं संवाद ऐसे हैं जैसे बकरी का दूध, जो बहुत लाभकारी होता अगर बकरी उसमें हग न देती!
डाइलॉग्स लिखने का क्रेडिट विशाल भारद्वाज ने लिया है तो लानत भी उन्हें ही सहेजनी होगी! बेवजह की बहनदोच, मादरदोच, छूतिए-तूतिए आदि गालियाँ डाइलॉग्स की क्वालिटी गिराती ही मिलीं।
फिर भी, Kuttey में तब्बू के हिस्से कुछ बढ़िया संवाद आए हैं –
“ऊपर वाले ने मर्द बनाने बंद कर दिए हैं…”
“अरे मछली है, कांटा है, समुंदर है…”
“पैसा इसलिए चाहती हूँ ताकि अंगड़ाई ले सकूँ…”
एक्टिंग के मामले में भी, तब्बू एक तरफ हैं और बाकी कास्ट दूसरी तरफ (और अर्जुन कपूर तीसरी तरफ, अकेले, कोने में खड़े, या किसी गड्ढे में पड़े)
तब्बू ने पहले सीन से जो फुटेज ली है, वो अंत तक बरकरार रखी है।
फिल्म के सेकंड लीड कुमुद मिश्रा दबे-दबे से नज़र आए हैं। वह एक्शन फिल्मों के लिए नहीं बने हैं, फिर भी ठीक-ठाक दाल दलिया कमा गए। हालांकि उन्हें पूरी फिल्म में पाजी की बजाए ‘सूरी’ के नाम से संबोधित करते तो बेहतर होता।
राधिका मदान लिमिटेड टाइम में बढ़िया रोमांस कर गईं। संभोग सीन और डेथ सीन, दोनों में ही उनकी एक्टिंग कमाल की है।
शार्दूल भारद्वाज ने भी बढ़िया एक्टिंग की है।
वहीं आशीष विद्यार्थी एक बार डेढ़ और कोंकणा सेन के पास सिर्फ दो सीन थे, दोनों यारी दोस्ती में फिल्म करते नज़र आए।
Actually यारी दोस्ती में ही नसीरुद्दीन शाह भी फिल्म में नज़र आए हैं, क्योंकि दो सीन्स के बाद तीसरे सीन जहाँ हो सकता था, वहाँ शायद डायरेक्टर साहब उन्हें भूल ही गए।
भूले क्यों? क्योंकि फिल्म का हीरो तो अर्जुन कपूर है। अर्जुन कपूर की दोनों हथेलियों पर कपूर बत्ती जलाकर बोला जाए कि भैया घूरने के अलावा भी कोई अच्छा एक्स्प्रेशन दे दो, तो भी वो हाथ जलवा लेंगे लेकिन एक्टिंग नहीं करेंगे।
एक फिल्म आई थी “A dog’s purpose”, उसमें एक रियल Kuttey की एक्टिंग देखते आप, मज़ा आ जाता!
बात साउन्ड और म्यूजिक की करूँ तो Kuttey के हॉलिवुड स्टाइल एक्शन सीक्वेंसेस में साउन्ड बहुत लाउड हो गया है। म्यूजिक ने ढेन-टे-नेन की रेहड़ मार दी थी इसलिए वो गाना फिल्म में आया ही नहीं। वाट लागली जबरन गाना है। खून की खुशबू पूरे क्लाइमैक्स की रेहड़ मारने के लिए फिल्म में डाला गया गीत (फिल्म के अलावा सुनो तो बुरा नहीं) है। लेकिन….
विशाल की आवाज़ में – “तेरे साथ जीना है, मेरे साथ मर न तू” मैं फिल्म देखने के बाद से चार बार सुन चुका हूँ। अद्भुत गाना है। गुलज़ार साहब ने पूरी एल्बम में एक गीत तो दे ही दिया है कि जिसे याद रखा जा सके।
साथ ही फ़ैज़ साहब की नज़्म “kuttey” रेखा भारद्वाज की आवाज़ में बहुत ज़बरदस्त कम्पोज़ हुई है।
फिल्म के पाज़िटिव पक्ष में तब्बू के बाद सिनिमटाग्रफी है भाईसाहब, फरहाद अहमद दहलवी का नाम तो किसी मुशायरे में अनाउंस होने वाले फनकार सा लगता है पर काम इनका कैमरा चलाना है। आखिरी मेढक वाला सीन हो या वैन का शूटआउट सीन, पूरी फिल्म ही शानदार शूट हुई है।
लेकिन श्रीकर प्रसाद ने इतनी भयंकर एडिटिंग की है कि फिल्म 1 घंटे 40 मिनट में खत्म भी हो जाती है। ये फिल्म का सबसे बड़ा ड्रॉबैक है। ससुर 250 रुपये के टिकट में 100 मिनट का सनीमा(?), कोई तुक हुआ भला!
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कुलमिलाकर kuttey एक अच्छी नेओ-नॉइर क्राइम ड्रामा फिल्म हो सकती थी, अगर इसका डिरेक्शिन किसी तजुर्बेकार हाथों में होता, अगर इसके संवादों में जबरन मैया-बहनियाँ न घुसाई गई होती, अगर पटकथा साक्षात टेरेंटिनों से लिखवाई जाती, अगर इसकी एडिटिंग किसी ऐसे एडिटर के हाथ में होती जिसका पेट खराब नहीं होता, अगर दिन में पुच्छल तारा नज़र आने लगता, अगर फिल्म के लीड हीरो को ड्रग्स केस में जेल हो जाती, अगर…
वैसे बेहतर होता कि ये Kuttey नेटflix पर ही आते तो और बेहतर गालियाँ दे सकते थे।
पर इसी साल विशाल भारद्वाज की फिल्म खुफ़िया netflix पर रिलीज़ हो रही है, उसमें भी तब्बू लीड में है और इसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार है।
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January 13, 2023 @ 6:15 PM
शानदार रिव्यू लिखा है ..
पर कथा आलमोस्ट सारी कह दी..अब देखने का स्कोप कम हो गया☺️
खैर,तब्बू और गुलजार के लिये फिल्में देखी जाएगी☺️
January 13, 2023 @ 8:01 PM
only 10 minutes’ story was revealed. Thank you so much
January 13, 2023 @ 7:10 PM
बहुत बढ़िया रिव्यू
प्वाइंट वाइज एकदम,
कुछ भी नही छोड़ा🙆
January 13, 2023 @ 8:01 PM
thank you so much
January 13, 2023 @ 7:49 PM
बहुत ही बढ़िया रिव्यु लिखा है आपने
January 13, 2023 @ 8:01 PM
thank you so much
January 13, 2023 @ 9:09 PM
रिव्यू पढ़ के फिल्म से ज्यादा मजा आया
लिखते रहिए…
January 13, 2023 @ 11:35 PM
Bahut Shukriyaa…
January 16, 2023 @ 1:09 PM
बढ़िया रिव्यु। अब तो ओटीटी पर ही देखना पड़ेगा। तब्बू और मिश्रा जी के लिए। विशाल भारद्वाज अब पैकेजिंग में उलझ गए हैं। जब इससे बाहर निकलेंगे तभी कोई बात बनेगी।
January 16, 2023 @ 4:07 PM
बहुत शुक्रिया, लेकिन विशाल तो अब इस उम्र में बदलने से रहे। हम आप ही फिल्मों का चयन बदल सकते हैं।
January 13, 2023 @ 10:09 PM
बड़िया रिव्यू लिखा आपने वक्त और पैसे दोनो बचा दिए।
January 13, 2023 @ 11:35 PM
Bahut shukriya…
January 15, 2023 @ 10:42 PM
बढ़िया है दोस्त
पैसे बचेंगे