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रहस्यमयी, सौ- दो सौ साल पुरानी, काली शक्तियाँ, तंत्र-मंत्र, काली गुड़िया, कटी जीभ, फूटी आँखें, और एक कालदण्ड (Kaaldand)!

ये कुछ ऐसे keywords हैं जो अगर किसी किताब के पहले पन्ने पर लिखे दिख जायें तो फिर उसे खत्म किये बिना चैन मिल ही नहीं सकता।

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कालदण्ड (Kaaldand) की कहानी

kaaldand

विशु उर्फ विशाल नामक भले घर के बड़े शैतान लड़के से शुरु होती है। क्योंकि ये लड़का अब 21 बरस का हो गया है, इसलिए इसको घर के मंदिर की देखभाल की ज़िम्मेदारी दे दी जाती है। इस मंदिर की साफ-सफाई करते समय विशु को एक छोटा सा बक्सेनुमा तहखाना मिलता है और तहखाने से एक पोथी और एक दंड निकलता है, कालदण्ड (Kaaldand)!

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कालदण्ड क्या है? कहाँ से आया? इसका इस्तेमाल कैसे करना है, ये जानने के लिए कहानी दो सौ साल पीछे जाती है पर उससे पहले, वर्तमान समय में, विशु के गाँव के तालाब के पास कुछ हत्याएं हो रही हैं। इन किलिंग्स का एक पैटर्न है, इसमें मरने वाले की आँखें फोड़ दी जाती हैं, उसकी जीभ काट दी जाती है और उसके बाल उड़ा दिए जाते हैं।

विशु इन हत्याओं से खासा डिस्टर्ब है, लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि विशु खुद पुलिस की नज़र में सस्पेक्ट बन ऐसा फँस जाता है कि उसे सिर्फ और सिर्फ पूनम याद आती है… अब ये पूनम कौन है?

अरे भाईसाहब! सब मैं ही बता दूँगा तो ‘कालदण्ड’ आप क्योंकर पढ़ेंगे?

कालदण्ड की कहानी पहले पेज से लेकर आखिर पेज तक रोमांच और रहस्य दोनों बनाये रखती है।

बात भाषाशैली की करूँ तो वर्तमान समय और 200 साल पहले की वर्णन में भाषाशैली का कोई खास फेरबदल नहीं मिलता। पात्र कमोबेश एक ही सी हिन्दी में बात करते पाए जाते हैं। लेकिन इस हिन्दी में उर्दू और अंग्रेज़ी की मिलावट न के बराबर मिलती है, जो अच्छा लगता है।

अब पात्रों की बात करूँ तो विशु उर्फ विशाल का चित्रण शानदार हुआ है। उसके पिता सोमदेव से कहीं ज़्यादा विशु के चाचा और मामा ध्यान खींचते हैं। बहन प्रियांषी और विशु के बीच की नोकझोंक भी बढ़िया लगती है।

वहीं आशीष, सर्वेश और कृपा शंकर के किरदारों का परिचय अध्याय ‘ज़रा-बहुत’ गुदगुदाता तो है, पर न भी होता तो चल जाता। हालाँकि आगे इन तीनों पात्रों की हाज़िरी सार्थक होती नज़र आती है। विशु के दोस्तों का नाममात्र को ज़िक्र है, जो न भी होता तो शायद कहानी पर कोई फ़र्क न पड़ता।

अब बात वर्तनी और सम्पादन की तो – इस क्षेत्र में सबसे ज़्यादा दिक्कत नज़र आई है। वर्तनी में थोड़ी गलतियाँ हैं। में की बजाए ‘मे’ को छोड़ भी दें तो भी छिट-पुट चींटी-मच्छर नज़र आते रहे हैं जो उम्मीद है कि अगले संस्करण में सुधर जायेंगे।

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सम्पादन के बारे में तो वो स्पॉइलर हो जायेगा।

बात क्लाइमैक्स की करूँ तो इस 124 पन्नों की तेज़ रफ्तार उपन्यासिका का अंत भी सुपरफास्ट एक्स्प्रेस सा हुआ है। ठहरने-संभलने-रुकने का समय ही नहीं मिला है। ये भी निश्चित है कि अगर आप मग्न होकर किताब पढ़ने वालों में से हैं तो आपके पास लेखक से पूछने के लिए आधा दर्जन सवाल भी ज़रूर इकट्ठा हो जायेंगे। इस किताब में मात्र एक ही बताने लायक कमी है कि ये बहुत जल्दी खत्म हो जाती है। 

भविष्य में इस किताब के दूसरे भाग की घोषणा हो जाए तो मुझे हैरानी नहीं होगी।

कुलमिलाकर ‘कालदंड’ एक बाँध सकने वाला, तंत्र-मंत्र जादू टोने और फ्लैशबैक से भरपूर मनोरंजन उपन्यासिका है जिसकी कहानी एक बार पढ़ ली जाए तो जल्दी दिमाग से निकल नहीं सकती।

124 पेज की इस किताब का एमआरपी मात्र 160 रुपये है, जो कागज़ के दामों और प्रकाशकों की मजबूरी (लालसाओं) को देखते हुए बहुत शानदार है। फिलहाल डाक खर्च भी इसी 160 में शामिल है तो इससे बढ़िया बात नहीं हो सकती है। रिव्यू पसंद आया हो तो किताब भी अच्छी लगेगी। मँगवाने के लिए इस लिंक का प्रयोग कर सकते हैं –

https://amzn.to/3ownimz

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’

(Saharnama को सपोर्ट करने के लिए विज्ञापनों पर एक क्लिक मार वापस भाग आयें, यूँ चार चवन्नी हम भी बना लेंगे)

 


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

2 Comments

  1. Ajeet
    June 1, 2023 @ 9:09 PM

    बढ़िया

    Reply

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