Skip to content
Menu

हमारे देश के किसी भी कल्चर की बात करो, लड़कियों की जल्दी-से-जल्दी शादी करा देना उनका पहला और मुख्य संस्कार निकल माना जाता है. लड़कियां, जो या तो रसोई भाती हैं या फिर बिस्तर पर. लेकिन Thinlas chorol ने इस कु-प्रथा का अंत करने कि ठानी। क्योंकि पहाड़ी लड़कियों के लिए जवान होने की उम्र तक आते-आते, या आने से पहले ही शादी कर देने का रिवाज़ है.

इन सबके बीच ज़िन्दगी कहाँ है? इसका जवाब ग्यारह जिलों की औरतें ढूंढ रहीं हैं.

इन्हीं औरतों में से एक ऐसी नारी की कहानी मैं आपको बताने जा रहा हूँ, जिनके बारे में जानकार आपको सिर्फ आश्चर्य ही नहीं, गर्व भी होगा!

Thinlas chorol एक ऐसी लड़की है जिसे सिर्फ घूमना पसंद था, जिसे पसंद था मवेशियों को चराना. जिसे अच्छा लगता था किसी राह भटके को सही रास्ता बताना. जिसे हर वक़्त फ़िक्र रहती थी अपने पापा की, कि कहीं उन्हें चोट न आ जाए!

लद्दाख के छोटे से गाँव तक्माचिक (लगता है शक्ति कपूर ने नाम रखा था) की रहने वाली Thinlas chorol बचपन से घुमक्कड़ रही थीं. उनके पापा किसान थे. खेती उनका धर्म था. लेकिन Thinlas chorol की छोटी उम्र में ही उनकी माँ के गुज़र जाने के बाद, छः बच्चों की वजह से पापा कोरोल ने दूसरी शादी करना बहतर समझा. पापा जब बकरियां चराने के लिए पहाड़ों पर जाते, तो वो भी साथ चली जाती थीं.

क्योंकि उन्हें पापा दी ग्रेट से इतना लगाव, इतना प्यार था कि उनके निगाह से ओझल होते ही वो बेचैन हो जाती थीं. उन्हें लगता था कि कहीं पापा को कुछ हो न जाए इसलिए, सिर्फ इसलिए उन्होंने मवेशियों और पापा के साथ जाना शुरू कर दिया.

Thinlas Chorol

उसके पापा के व्यस्त होने पर वो अकेले भी बकरियों को ले जाने लगी. कई बार कुछ विदेशी पर्यटक उनसे रास्ता भी पूछ लेते, या कोई आता और कहता “यहाँ घूमने लायक जगह कौन-कौन सी है?” और Thinlas chorol तपाक से सब बता दिया करतीं. कुछ पर्यटक उनके स्वभाव से इतने इम्प्रेस/बोले तो प्रभावित होते कि कुछ डॉलर्स भी उन्हें देकर जाने लगे.

यहाँ थिनलास ने सोचा, क्यों न पढ़ाई की जाए? क्योंकि अब तक उनको ये तो समझ आ चुका था कि गरीबी और मुफलिसी से उबरने का सस्ता, अच्छा और इमानदार तरीका यही है कि पढ़ा जाए. पढ़ाई ही गरीबी नामक मुसीबत का समाधान है. बस फिर क्या था, Thinlas chorol सरकारी स्कूल में क्लासेज लेने लगीं.

लेकिन फ्री की पढाई भी कब तक होती? पांचवीं तक पढ़ने के बाद Thinlas chorol को दूसरे गाँव दोमखार जाना पड़ा. ये ट्रेवल भी Thinlas chorol को पैदल ही करना पड़ता था. अब यहाँ तक तो हुई दसवीं, इसके आगे क्या?

मिसाल बनने की कहानी Thinlas chorol ने स्कूल से ही शुरु की

अब इसके आगे थिनलास ने SECMOL (Students Education and Cultural movement of laddakh) में एडमिशन ले लिया. ग्यारवीं और बारहवीं करने के बाद भी वो न रुकीं. उन्होंने कॉरेस्पोंडेंस से BA arts किया, इसके साथ-साथ ही “Nehru Institute of Mountaineering” और “National Outdoor Leadership School” से उन्होंने इंग्लिश और माउंटेन ट्रैकिंग सीखी. और क्या खूब सीखी, मन लगा के सीखी.

अब उन्होंने एक ट्रेवल गाइड के तौर पर काम माँगना शुरू किया, क्योंकि लद्दाख में टूरिज्म हद से ज्यादा है इसलिए यहाँ दिक्कत नहीं आनी चाहिए थी पर, ये दुनिया रे दुनिया, वैरी गुड वैरी गुड, दुनिया वाले, वेरी बैड वैरी बैड. सबने उन्हें काम देने से मना कर दिया, कारण? सिर्फ ये कि वो लड़की हैं.

पर लड़की भी ऐसी नहीं थीं कि हार मान लें, उन्होंने फ्रीलांस गाइडिंग शुरू कर दी. इसपर भी कुछ ट्रेवल एजेंसीज को खाना हजम होना बंद हो गया तो उन्होंने आख़िरकार, बड़े जत के बाद, उन्होंने नेअपनी खुद की कंपनी खोल ली. नाम दिया “Ladakhi Women’s Travel Company”. क्योंकि उन ढेरो पर्यटकों में महिलायें भी बहुत होती हैं, और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जापान से लेके रशिया, ऑस्ट्रेलिया से लेके अमेरिका भी जब इन इंडिया होते हैं तो चिंतित रहते हैं, इसलिए कम्पनी चल निकली.

पर कोरोल इतने से भी शांत होने वालों में से नहीं थीं, हालाँकि उनकी देखा-देखी और लड़कियां भी हिम्मत कर के ट्रेवल गाइड के धंधे में तो उतरने ही लगी थीं, फिर भी Thinlas chorol ने “Ladakhi Women’s Welfare Network” के नाम से एक सोसाइटी भी बनाई जिसमें आज हजारों औरतों की रोज़गार देकर मदद की जाती है.
Thinlas Chorol

इतना ही नहीं, लिखना भी उनकी एक हॉबी में से एक रहा था, इसलिए वो लिखती भी हैं, और ऐवें हमारे जैसा नहीं, अवार्ड विनिंग लिखती है. “Sanjoy Ghosse Ladakh Women Writers’ Award” भी जीत चुकी हैं.

संतूर वादक Pandit Shivkumar Sharma का दिल का दौरा पड़ने से 84 वर्ष में हुआ निधन

आज ये ट्रेकर, राइटर, इंटरप्रेनौर होने के साथ-साथ लाखों लड़कियों की आइडल भी है. और तो और जिस स्कूल से सब सीखा, SECMOL, आज उसकी बोर्ड प्रेसिडेंट भी हैं.

कहने का मतलब है कि बहुत सही ग़दर मचा चुकी हैं और आगे भी मचाती रहेंगी इसकी पूरी गुंजाइश है.

अभी पॉइंट पर आते हैं, तो लड़कों क्या सीखे? क्या समझे इस बायोग्राफी से?

पहली बात तो ये कि कभी थको मत, किसी के रोकने पर रुको मत, भले ही न लड़ो, लेकिन अपना रास्ता अलग कर लो. करो अपने मन की. और सबसे बड़ी बात, कुछ करो. भले ही फ़ैल हो जाओ पर करने से पहले मत हारो. भले ही कर के हारो.

दूसरी सबसे ज़रूरी बात, – किसी औरत को रोकने की कोशिश मत करो, भाईसाहब मुंह की खाओगे. आज लद्दाख की हर ट्रेवल एजेंसी पहला इश्तेहार वीमेन गाइड का ही देती है.

तीसरी बात. ये आर्टिकल कैसा लगा ये बताओ. अच्छा लगा हो तो फॉलो करो! न अच्छा लगा हो तो कमेंट कर के फॉलो करो, क्योंकि मैं अगली बार ख़ास तुम्हारे अच्छे लगने के लिए लिखूंगा इसलिए तुम्हारी जानकारी में आना ज़रूरी है.

 

सिद्धार्थ अरोड़ा सहर


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Stop Copying ....Think of Your Own Ideas.