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सनातन धर्म में, अमावस (New Moon) की रात का बहुत महत्व होता है। अमावस या अमावस्या को अग्रेज़ी में “नो मून” या “new moon” भी कहते हैं। अमावस्या की रात को चाँद नज़र भले ही न आए लेकिन आम दिनों से अधिक शक्तिशाली होता है।

यह तो आप जानते ही हैं कि चाँद के बदलते मुखड़े का असर पूरी पृथ्वी पर पड़ता है। अब पृथ्वी में शीर्ष पर बैठी मनुष्य सभ्यता इस असर से अछूती कैसे रह सकती है। इसलिए अमावस (New Moon) के समय आपके जीवन में चल रहे बहुत से काम थोड़े सुस्त हो जाएँ तो हैरान परेशान होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि जब आप और आपके कर्मकांड थोड़े स्लो होते हैं तभी आप अपने मन, शरीर या परिवार पर ध्यान देने का समय निकाल पाते हैं। (कोरोना काल को ही याद कर लीजिए)। उदाहरण के लिए, जब आदमी बीमार पड़ जाता है तो अचानक ही उसका ध्यान उसके शरीर पर अधिक से अधिक जाने लगता है। उस वक़्त शरीर की समस्या सबसे बड़ी, सबसे इम्पॉर्टन्ट हो जाती है। बस यही काम हर महीने आने वाली अमावस की रात भी करना चाहती है। यही अमावस्या की रात का सबसे बड़ा महत्व भी है।

न्यू moon

ज्ञाताओं का कहना है कि यदि आप कुछ हासिल करना चाहते हैं, अपनी ज़िंदगी बेहतर करने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं तो पूर्णिमा का समय आपके लिए सबसे लाभकारी और पवित्र हो सकता है लेकिन अगर आप कुछ पाने की बजाए कुछ छोड़ना चाहते हैं, विरक्त या मुक्त होना चाहते हैं तो अमावस्या (New Moon) से अधिक पवित्र और कारगर समय और कोई नहीं है। अमावस्या एक ऐसा समय है जब कोई आसानी से अपने प्रति जागरुक हो सकता है। इसी समय से असत्य से सत्य की यात्रा शुरू होती है। (कृष्ण पक्ष समाप्त हो शुक्ल पक्ष आरंभ होता है)। जो उत्सुक व्यक्ति आत्मज्ञान से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं, अनजान हैं, उनके लिए भी हर अमावस्या खुद को समझने और इस creation को जानने का एक मौका लेकर आती है। आप अगर ज़्यादा नहीं, 20 साल पीछे जाएँ तो आपको हर नानी-दादी अमावस के समय दान करने का ज्ञान देती आम मिलेगी। दान करना मुक्त जीवन की तरफ बढ़ने की पहली सीढ़ी भी मानी जाती है।

महाशिवरात्रि एक होती है पर शिवरात्रि होती है हर new moon पर

new moon

हर अमावस्या से एक दिन पहले शिवरात्रि होती है। इसे शिव की रात कहते हैं। जब रात गहरा अंधेरा छाया होता है, तब ऐसा लगता है जैसे सृष्टि लुप्त हो गई है। माना जाता है कि अमावस्या (New Moon) की रात को स्त्रियाँ परेशान हो सकती हैं, उन्हें अनिंद्रा या चिड़चिड़ापन तंग कर सकता है क्योंकि ये रात उसके अंदर डर और अशांति पैदा करती है। हालांकि इसका महिलाओं पर अन्य तरीके से भी असर पड़ता है, बहुत सी महिलायें अमावस के समय खुद को ज़्यादा तेज़ भी महसूस करती हैं। एक फैक्टर ये भी है कि पूर्णिमा जहाँ स्त्रीत्व लेकर आता है, अंग्रेज़ी में बोले तो feminine को सपोर्ट करता है वहीं अमावस पुरुषत्व (masculine) को संबल देती है। ध्यान से पढ़ें, यहाँ स्त्री या पुरुष की नहीं, स्त्रीत्व या पुरुषत्व की बात हो रही है। इन शॉर्ट, जो महिलायें स्पोर्ट्स में, या शारीरिक मेहनत से जुड़े कार्य करती हैं उनके लिए अमावस के समय अधिक ऊर्जा का संचार भी हो सकता है या जो पुरुष क्रिएटिव फील्ड में है वह पूर्णिमा पर ज़्यादा निखर सकते हैं।

लेकिन जनरली, स्त्रीत्व ऊर्जा के लिए पूर्णिमा (full moon) अधिक अनुकूल है। फिर भी, पूर्णिमा की रात जो पुरुष अपने जीवन को बेहतर बनाने में एफर्ट करते हैं उन्हें वह रात सपोर्ट करती है। लेकिन अगर वह मुक्ति, विरक्ति, मोक्ष आदि के पीछे हैं तो उनके लिए, जैसा कि ऊपर आपने पढ़ा, अमावस की रात बेहतर है।

आपने सुना होगा कि जो लोग मानसिक रूप से थोड़े असंतुलित हैं, वह, पूर्णिमा और अमावस्या (New Moon) की रात ज़रा अधिक असंतुलित हो जाते हैं। सीधी हिन्दी में लिखूँ तो जो ‘सनकी थोड़े पगले हैं वो सवा पगले हो जाते हैं’। हालांकि बहुत से नौसिखिये इस बात को सिरे से नकारते हैं कि पूर्णिमा या अमावस का हमारे जीवन पर कोई भी असर पड़ता है।

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new moon

वैसे मैं अनुभव से कहूँ ये वही लोग हैं जिन्होंने कभी पूर्णिमा (full moon) की रात समुन्द्र की लहरों को 30-30 उठते-गिरते नहीं देखा है। जिन्हें ज्वार-भाटा क्या होता है इसका सुई बराबर भी ज्ञान नहीं है। ऐसे लोगों के लिए मुझे वाकई हमदर्दी है, जीवन में बहुत कुछ है जो यह अभी जानेंगे, ऐसे किसी आर्टिकल को पढ़कर न सही, अपने अनुभवों से जानेंगे पर जो भले-मानुष ज्वार-भाटा को समझते हैं, समुन्द्र की लहरों को देखते हैं पर फिर भी यह कहते हैं कि होमो-सेपीयन्स पर चाँद के बढ़ने घटने का कोई असर नहीं पड़ता, उनपर मुझे हँसी आती है। आप खुद ही हिसाब लगाए, हमारे शरीर में 72 प्रतिशत से ज़्यादा पानी है, अब जो चाँद (moon) पूरा होने पर समुन्द्र को उठा-पटक सकता है, वो हमारे शरीर के अंदर 100 की रफ्तार से दौड़ते लहू को कुछ तो उग्र करता होगा? कुछ तो ऊपर उठाता होगा न? यही वजह है कि भेड़िये पूर्णिमा की रात शोर मचाना शुरु कर देते हैं।

full moon

इसका सिम्पल कारण चंद्रमा (moon) का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव (gravitational impact) है जो हमारी प्यारी पृथ्वी पर पर निरंतर काम कर रहा है। लेकिन इस उठा-पटक का मतलब सिर्फ यही नहीं है कि पूर्णिमा या अमावस की रात सब ‘पगले’ ही हों जाएंगे। जैसा उपर भी लिखा है, अगर आप थोड़े सनकी हैं, तो सवा सनकी हो सकते हैं। ज़रा बहुत झगड़ालू हैं, तो कहो ज़्यादा झगड़ालू हो सकते हैं। ये पढ़ी पढ़ाई बात नहीं, मेरा खुद का अनुभव है, पड़ोस में एक बेवड़े को अक्सर महीने में दो बार, जम के हंगामा करते सुना है।

मगर किन्तु परंतु बंधु, अगर आप भी मेरी तरह (हीहीही, अपने मुँह मियां मिट्ठी) खुशमिजाज़ हैं,  हँसी खुशी से जीवन जीना जानते हैं तो पूर्णिमा और अमावस की रात आपको और खुश, और बेहतर बनाने में मदद करेगी।

बाकी इस विषय पर आपके कोई अनुभव हैं तो उचरिए, कोई ज्ञान सागर आपके आसपास भी बह रहा हो तो ज़रा छींटे यहाँ कमेंट्स में भी मारिए।

प्रगति राज


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

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