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IB71 में IB का अर्थ है इंटेलिजेंस ब्यूरो, और 71 है सं 1971. अब 1971 का नाम लेते ही आपके हमारे मन में, सीधे एक ही ख्याल आता है, भारत-पाकिस्तान वॉर और बांग्लादेश के रूप में नक्शे में आया एक नया देश।

लेकिन ये वॉर इतनी ईज़ी नहीं थी, इस वॉर के पहले इतनी कॉनसीपिरेसी, स्पाई गिरी और न जाने कितने ही मिशन हो सफल मिशन हो चुके थे कि ये वॉर हम जीत सके।

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क्या है कहानी IB71 की

IB की तरफ से देव नामक एक सीक्रिट एजेंट है। अगर चाचा चौधरी का दिमाग कंप्युटर से भी तेज़ चलता है तो यकीनन देव का दिमाग चाचा चौधरी को पछाड़ सकता है।

देव अपनी सूझ-बूझ और हौसले से वेस्ट पाकिस्तान के कैम्प में घुसकर न सिर्फ एक जासूस को बचा लाता है, बल्कि ये खुफिया जानकारी भी हासिल कर लेता है कि चीन से मिले फाइटर प्लेन्स को पाकिस्तान वेस्ट से ईस्ट में, यानि अब के बांग्लादेश में उतारना चाहता है।

एक बार ये प्लेन आ गए, तो चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत से नॉर्थ ईस्ट के राज्य काट देंगे। इसे रोकने का एक ही तरीका है, भारत अपना एयरस्पेस पाकिस्तान के लिए ब्लॉक कर दे।

लेकिन कैसे?

1965 में ताशकंत समझौते में तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने ये तय किया था कि भारत पाकिस्तान का एयर स्पेस तभी बंद कर सकता है कि जब दोनों देशों के बीच वॉर हो जबकि पाकिस्तान उसी वॉर की तैयारी के लिए ही तो इस एयरस्पेस का इस्तेमाल करना चाहता है?

अब क्या किया जाए?

पूरी IB71 इसी मिशन पर रची-बसी है।

आधा दर्जन राइटर्स (संकल्प रेड्डी, अर्जुन वर्मा, ई. वासुदेव रेड्डी, अभिमन्यु श्रीवास्तव, गार्गी सिंह और अरुन भीमावरपू) ने मिलकर फिल्म को भरसक थ्रिलर बनाने की कोशिश की है, इसमें कुछ हद तक कामयाब भी हुए हैं, ये भी अच्छी बात है कि एक दो छोड़कर, बेवजह के फिल्मी ट्विस्ट इस फिल्म में नहीं है, इसका ड्रॉबैक ये है कि फिल्म काफी हद तक प्रीडिक्टबल हो जाती है।

पर फिर, अच्छी बात है कि सत्य घटनाओं पर आधारित है और घटना हो ही आगे बढ़ाती है।

डायरेक्टर संकल्प रेडी की बात करूँ तो इन्होंने टू-द-पॉइंट फिल्म रखी है। अगर आपको 2015 में नीरज पांडे की फिल्म ‘बेबी’ याद हो तो आप IB71 को उसके काफी करीब पायेंगे। हालाँकि IB71 का कैन्वस बेबी के मुकाबले कहीं छोटा लगता है।

IB71 से विद्युत जामवाल प्रोड्यूसर भी बने हैं। An Action Hero production से उनकी शुरुआत हुई है। ये ज़िक्र इसलिए कि विद्युत चाहते तो, जैसा कि उन्होंने मुझसे एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि मैं एक्शन करने के लिए ही आया हूँ, एक्शन फिल्में ही करना चाहता हूँ’; को ध्यान में रखते हुए, अपनी फिल्म में खुद के लिए भर-भर के एक्शन सीन्स डाल सकते थे, पर ऐसा नहीं हुआ।

किसी ने मेरी फेसबुक पोस्ट पर कमेन्ट भी किया था कि विद्युत की फिल्म है तो वही होगा, एक साथ कई गुंडे हमला कर देंगे और विद्युत सबको कराटे कर देगा। पर मुझे खुशी हुई कि फिल्म में मात्र 2 एक्शन सीक्वेंस हैं, जिसमें सिर्फ एक में विद्युत हीरो-गिरी करते नज़र आए हैं।

दूसरा एक्शन सीन तो इतना बढ़िया पिक्चराइज़ हुआ है कि दस बार देखा जा सकता है। इस सीन की ये खासियत भी है कि इसमें विद्युत साथी कलाकारों से मदद लेते दिखाए गए हैं, इन शॉर्ट बहुत ज़मीनी एक्शन सीन्स हैं।

विद्युत ने तो अपना काम बढ़िया किया ही है, अनुपम खेर की एक्टिंग की तारीफ करना पूर्णिमा के चाँद को टॉर्च दिखाना है।

इसलिए बात करते हैं विशाल जेठवा की, मर्दानी से फेमस हुए इस कंजी आँखों वाले एक्टर ने एक बार फिर, कश्मीरी डायलेक्ट में समां बाँध दिया है। विशाल जेठवा के जितने भी सीन्स हैं, सब वाह-वाह हैं।

इसके इतर बेहतरीन कलाकार अश्वत भट्ट, डैनी सूरा, फैज़ान खान, हाबी धलीवाल समेत सबने शानदार परफॉरमेंस दी है। बहुत समय बाद दिलीप ताहिल को देखकर अच्छा लगा। वह जुल्फिकार अली भुट्टो के रोल में परफेक्ट लग रहे थे।

तारीफ हो ही रही है तो सिनिमटाग्रफर वीएस शेखर का नाम ज़रूर आना चाहिए। पूरी फिल्म में नाइट शॉट्स बहुत शानदार फिल्माए गए हैं। कश्मीर की बर्फीली खूबसूरती भी इसमें जम-जम के देखने को मिलती है। साँझ ढले बोट वाला सीन तो लाजवाब है। कश्मीर की फ्लोटिंग मार्केट देखना भी एक यूनीक अनुभव है।

IB71

एडिटर संदीप फ्रांसिस ने 2 घंटे से भी कम समय में फिल्म छाँट दी है, हालाँकि फिल्म की कहानी इतनी भी नहीं थी।

इस फिल्म में कुछ कमी है तो वो बस यही है कि बहुत छोटे से मुद्दे को बड़े स्केल पर खींचने की कोशिश की गई लगती है, जो interval के कुछ समय बाद, कई लॉजिकल सवाल दिमाग में छोड़ देती है।

क्लाइमैक्स का सीधा-सच्चा होना भी खलता है। हम इसके क्लाइमैक्स को डी-डे के क्लाइमैक्स से कम्पेयर कर सकते हैं और यकीनन डी-डे बेहतर नज़र आती है।

हाईजैकिंग वाला मसला बेलबॉटम की याद दिलाता है, पर IB71 में बेलबॉटम से उलट सब ज़मीनी, सब रियल लगता है।

कुछ एक कमियों के बावजूद ये फिल्म देखने लायक लगती है। अच्छा लगता है कि देश के जोरदार मिशन्स पर अब एक के बाद एक फिल्में बन रही हैं और तरीके से बन रही हैं। विद्युत जामवाल जैसे प्योर एक्शन हीरो भी, कहानी की डिमांड के चलते ड्रामा और थ्रिल पर ज़्यादा फोकस कर रहे हैं, नए ज़माने के सिनेमा से और क्या चाहिए।

मुझे लगता है कि ये फिल्म चलनी चाहिए। ताकि ऐसा सिनेमा बनता रहे।

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सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’


1 Comment

  1. Divya
    May 13, 2023 @ 6:26 PM

    रीव्यू उत्सुकता जगा रहा है।वैसे एक्शन फिल्म देखने का एक महत्वपूर्ण कारण विद्युत जामवाल है मेरे लिए।देखी जायेगी यह भी।

    Reply

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