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Gardish mein hoon Review: सोशल मीडिया जो एक ऐसा प्लेटफार्म बन जाता है जहाँ बात-बात पर विचारधारा की लड़ाई शुरू हो जाती है। कैसे लोग अब मैदानों में नहीं बल्कि फेसबुक पर वार करते हैं और सोशल मीडिया वॉरियर कहलाते हैं।

आयुष वेदांत की पहली किताब “Gardish में हूँ” का कवर काफी सिंपल रखा गया है, जिस पर एक नजर डालते ही आपको अंदाज़ा हो सकता है कि कहानी किस तरफ जा सकती है। काले रंग पर जेल की सलाखों के ऊपर पीले रंग से हिंदी में लिखा हुआ है- “Gardish में हूँ।” इसका सीधा सा मतलब है कि कहानी किसी के ऊपर आए संकट पर लिखी गयी है। 

इसके साथ ही किताब के राइटर का नाम नीचे की तरफ सफेद रंग में लिखा हुआ है- आयुष वेदांत। आइये अब जानते हैं कि ये किताब कैसी है और इसे पढ़ने की ज़हमत उठानी चाहिए या नहीं!

कहानी शुरू होती है एक कैदी से जिसे रांची की जेल में शिफ्ट करने की तैयारी की जा रही है। उस कैदी का गुनाह अखबार में छप चुका है और सबको ख़बर हो चुकी है की उसने क्या किया है! उस कैदी का नाम धनुज मिश्रा है। यही gardish में है। धनुज जेल में रहने के दौरान अपनी पिछली ज़िन्दगी के बारे में सोचता है कि कैसे हालात ने  करवट बदली और एक आम इंसान को अपराधी बना दिया।

धनुज जो एक बड़ी कंपनी में काम करने वाला एक साधारण व्यक्ति होता है, वो अपनी असाधारण विचारधारा और लेखन के कारण सोशल मीडिया पर छाया हुआ है, उसके लिखे राजनीतिक लेख लोग काफी पसंद करते हैं और और और उन लेखों के संग-संग धनुष भी चर्चा का विषय बना रहता है।  

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इन शोर्ट, वो अपनी सोसाइटी से कहीं ज्यादा समय सोशल मिडिया पर बिताता है। इस वजह से कई बार विचारधारा न मिलने के कारण लोगों से उसकी वर्चुअल बहस हो जाती है। उसके कई साथी भी उसके साथ फेसबुक पर एक्टिव रहते हैं और अपने लेखों की वजह से चर्चा में रहते हैं। 

अपनी कहानी में आयुष वेदांत कई मुद्दों को घेरते नज़र आते हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव भी इस किताब में शामिल हैं तो सोशल मीडिया के अहम किरदार पर तो ये किताब टिकी ही है। इस किताब में आप आज का सोशल मीडिया पढ़ सकते हैं, आज के धुरंधरों को समझ सकते हैं जो अब मैदानों में उतरकर नहीं, facebook के comment box में उतरकर वॉर छेड़ते हैं और सोशल मीडिया वॉरियर कहलाने लगते हैं।  

आयुष वेदांत ने कहानी 2014 से लेकर 2019 तक की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए लिखी है जिसमें पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर भी बात की है।इस हमले के बाद हुई एयर स्ट्राइक पर भी चर्चा की है। साथ ही लड़कियों द्वारा किसी लड़के पर लगाए गलत केस की वजह से परिणाम कहाँ-कहाँ तक बर्बादी मचाते हैं, इसपर भी खुलकर विचार व्यक्त किये हैं।

आयुष ने सोशल मीडिया का सिर्फ काला ही नहीं बल्कि उजला चेहरा दिखाने की भी कोशिश की है। मुख्य पात्र धनुज को सोशल मीडिया पर लोगों का बहुत सपोर्ट मिलता है और उसकी प्रोफाइल पर फैन्स की बाढ़ आ जाती है।

आयुष ने अपने लेखन में बॉयज लॉकर रूम को लेकर भी लिखा है। साथ ही सुधा मूर्ति का भी जिक्र किया है। सुधा मूर्ति को इस किताब में बेहद घमंडी, जिद्दी और अपने आत्मसम्मान के लिए दूसरे व्यक्ति को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली औरत के रूप में दिखाया गया है।

हालांकि किताब में कहीं ये clear नहीं लिखा है कि ये वही पद्मश्री सुधा मूर्ती हैं जिन्हें लोग एक कामयाब लेखिका और इंफ़ोसिस की चेयरपर्सन हैं और मुझे उम्मीद भी नहीं है कि ये उन्हीं सुधा मूर्ति की बात है, हो सकता है ये कोई अन्य हों।  

क्योंकि जिन सुधा मूर्ति को मैं जानती हूँ वो देश की पहली महिला इंजीनियर है। उन्होंने देश में महिला उत्थान के लिए अनेकों भले काम किये हैं। उन्होंने महिलाओं के लिए कई हजार टॉयलेट बनवाए हैं। वो जिस कॉलेज में पढ़ती थी वहाँ एक भी बाथरूम महिलाओं के लिए नहीं था।

इस वजह से उन्हें कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ा था। इसके इतर सुधा मूर्ति लिखती भी कमाल हैं और बोलती भी बेमिसाल हैं। इसलिए अगर ये उन्हीं सुधा मूर्ति के बारे में लिखा गया है तो ये बहस का मुद्दा है।

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खैर, वापस किताब पर आते हैं। सोशल मीडिया पर डिबेट का सिलसिला आगे बढ़ता रहता है और धनुज मिश्रा की जिंदगी बहुत मजे से कटती रहती है। उसे एक लड़की सभ्यता से प्यार हो जाता है। जिससे मिलने के लिए वो रांची जाता है और यही उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल हो जाती है। 

अब सवाल ये उठता है कि रांची में ऐसा क्या हुआ कि धनुज मिश्रा को जेल हो गई? जेल में नौजवान के साथ आखिर कैसा सलूक हुआ? जेल से बाहर आने में उसे कितना समय लगा? ये सारे सवालों के जवाब किताब में उपलब्ध हैं जिनको पढ़ते-जानते आपको कई बेहतरीन जानकारी भी मिलेंगी।  

भाषा शैली- जैसा की हम सभी जानते हैं कि ये किताब आयुष वेदांत की पहली किताब है। इस हिसाब से उन्होंने अपनी भाषा को काफी सरल रखा है। उनकी लिखावट साफ है। पढ़ते वक्त ऐसा लगा कि न जाने उन्होंने इससे पहले कितने ही लेख या कहानियां लिखी हुई है। किताब लिखने से पहले की गई मेहनत उनकी लिखावट में साफ झलकती है। 

जिस तरह से जेल के माहौल को साथ लेकर चलते हुए उन्होंने असल कहानी को धनुज के flash back के रूप में दिखाया है वो काबिल-ए-तारीफ है।

सम्पादन व वर्तनी (editing proof reading) – बाकी सारी चीजें एक तरफ लेकिन वर्तनी में कई गलतियाँ देखने को मिलीं। जैसे- कई बार जहाँ ‘कि’ का प्रयोग होना चाहिए था वहां पर ‘की’ का इस्तेमाल किया गया है। 

दूसरी गलती- ‘हमेशा’ न लिखकर हमेंशा लिखा हुआ है। 

इसके अलावा छोटी-मोटी और नुक्ता-चीनी हैं जिन्हें पहली किताब के सदके नज़रंदाज़ किया जा सकता है। 

क्लाइमेक्स- अगर पूरी कहानी अच्छी हो और क्लाइमेक्स अच्छा न हो तो मजा अधूरा रह जाता है। आयुष वेदान्त ने पूरी कहानी को सरल रखा है लेकिन क्लाइमेक्स ने मुझे ‘थोड़ा’ निराश किया है। भूमिका अच्छी बंधी गई थी लेकिन आगे जाकर किताब शायद ज़रा सुस्त होने लगी।

फिर भी मैं किताब हो या फिल्म, शुरु करती हूँ तो खत्म होने पर ही उठती हूँ और बिलीव मी, इस किताब का आख़िरी पन्ना मैंने लगातार दो बार सिर्फ यह समझने के लिए पढ़ा कि धनुज के साथये हुआ क्या? यूँ समझिए कि पूरा क्लाइमेक्स एक तरफ और किताब का आख़िरी पन्ना एक तरफ। इस लास्ट पेज की जितनी तारीफ की जाए कम है।   

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मेरे विचार से Gardish में हूँ सभी को कम से कम एक बार पढ़ना चाहिए। इसका सबसे पहला कारण तो ये है कि आज की यंग जनरेशन जो हिंदी से कोसों दूर भागती है, ऐसे में एक यंग लड़के द्वारा हिंदी  में लिखी गई किताब, एक बेहतरीन भाषा शैली के साथ पढ़ने का flow बनाने में मदद करती है। दूसरा कारण लेखिका ज्योति तिवारी का एक पन्ने का लेख है, ये लेख ही अपने आप में किताब की पूरी कीमत अदा करने का दम रखता है।   

कुलमिलाकर ‘Gardish में हूँ’ अच्छी लिखी गई है। मुझे तो पढ़कर ऐसा लगा जैसे लेखक ये जिंदगी ऑलरेडी जी चुका है और अपने अनुभव को लिख रहा है। पढ़कर ऐसा लगा जैसे धनुज और आयुष एक ही व्यक्ति है। पढ़ने वाला जब मुख्य पात्र में लेखक को बिना जाने लेखक का अक्स उसमें देखने लगे तो समझिए लेखन सफल हुआ है। 

अगर आपको ये समीक्षा पसंद आई है तो आप ‘Gardish में हूँ’ ज़रूर पढ़ें। 269 रुपए की ये किताब फिलहाल Sahitya Vimarsh की official website पर 165/- में मिल रही है। मौका न चूकें।  Review को जितनी दूर तक संभव हो शेयर करें, आपके comments और views हौसले का काम करते हैं। 

अगर आप लेखक हैं और आप चाहते हैं कि आपकी समीक्षा सहरनामा पर आए, तो हमें इंस्टाग्राम पर डायरेक्ट मैसेज करें।

प्रगति राज (click to follow on Instagram)

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gardish mein hu

 


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