Gandhi Godse Ek Yuddh Review: मार्वल की what if सीरीज़ को सीरीअस ले गए राजकुमार संतोषी
मोहनदास करमचंद Gandhi के जितने फॉलोवर्स हैं उतने ही आधुनिक भारत में उन्हें गाली देने वाले पैदा हुए हैं। अच्छा Gandhi को गाली देनी है तो सिम्पल है, गोडसे की तारीफ शुरु कर दो। ये एक मुद्दा बरसों से टाइम-पास करने का साधन बना हुआ है कि गोडसे ने सही किया या नहीं, Gandhi की वजह से बटवारा हुआ या नहीं?
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अब इसी मुद्दे को लेकर कुछ इतिहास की किताबें, experiments with truth, मैंने Gandhi को क्यों मारा और कुछ व्हाट्सएप चैट्स पढ़कर राजकुमार संतोषी ने ये फिल्म लिख डाली। राजकुमार संतोषी को तो आप जानते ही होंगे, घायल, दामिनी और दी लेजन्ड ऑफ भगत सिंह जैसी क्लास फिल्में बनाई हैं। लेकिन इस फिल्म में राजकुमार संतोषी मार्वल्स की what if सीरीज़ से इतने इन्सपायर हुए कि उन्होंने गाँधी की हत्या को एक दुर्घटना भर दिखा दिया कि नाथुराम ने गोली तो मारी, लेकिन गाँधी मरे नहीं! अब Gandhi को गोडसे से मिलना है और उसकी मनोस्थिति जाननी है।
Gandhi Godse का Trailer तो देखा है न आपने?
अब 3 min के ट्रेलर में दिखाई गई ये Godse-gandhi conversation फिल्म के अंदर इतना इंतज़ार करवाती है कि (dash) होने लगती है। हालाँकि फिल्म का आर्ट डिरेक्शिन, सेट, भव्यता और पीरीअड फिल्म के हिसाब से सर डेकोरेशन बहुत शानदार है।
एक्टिंग की बात करें दीपक अंतानी एक नहीं सैकड़ों बार थिएटर में गाँधी का रोल कर चुके होंगे पर फिल्म करते समय अगर वो थोड़ा सा वजन कम कर लेते तो और बेहतर लगते। दरअसल आज तक कभी हट्टे-कट्टे मुश्टंडे Gandhi हमने देखे ही नहीं थे!
चिन्मय मांडलेकर नथुराम गोडसे बने सिर्फ हल्ला मचाते नज़र आए। वह या तो हिन्दू-हिन्दू करते दिखे या अखंड भारत और गाँधी फलाना है ढिमकाना है करते दिखे। तनिशा संतोषी नेपोटिज़म का कोई फायदा न उठा सकीं, पापा की फिल्म में वो मोस्ट ऑफ द टाइम रोती ही दिखीं।
बीआर अंबेडकर बने मुकुंद पाठक का मेकअप बहुत शानदार हुआ है। छोटे से रोल में वो अच्छे लगे हैं।
पवन चोपड़ा भी जवाहरलाल नेहरू से मिलते जुलते दिखे। उनका थोड़ा सा रोमांस भी दिखाया जाता तो ये फिल्म व्हाट्सएप ग्रुप्स में अच्छा कलेक्शन कर सकती थी।
फिल्म में कॉंग्रेस के डिसॉल्व होने की भी बात उठी और नेहरू के प्रधानमंत्री बनने पर सवाल भी उठाए गए पर ऐसा लगा जैसे अंत बहुत बेहतर लिखा था, पर सस्ते में, कॉनफ्यूजन में, न तेरी न मेरी में छोड़ दिया गया।
फिल्म का जिस रोज़ ट्रैलर आया था, उसी दिन से कॉंग्रेसी कार्यकर्ताओं की तरफ से फिल्म को बैन करने की माँग उठ रही थी। राज कुमार संतोषी को अपने परिवार और खासकर बेटी के लिए मुंबई पुलिस से सुरक्षा भी हासिल करनी पड़ी थी। शायद इस प्रेशर में फिल्म का अंत बदला गया हो, पर राजकुमार संतोषी का कहना था कि Gandhi और गोडसे दोनों ही निडर व्यक्तित्व थे! एक गोली खाने से नहीं डरता था तो दूसरा गोली मारने के बाद के अंजाम से नहीं डरता।
पर फिल्म देखकर ऐसा कुछ नहीं लगता। हालाँकि फिल्म बुरी नहीं है, भारत में बहुत कम ही ऐसे एक्सपेरीमेंट्स देखने को मिलते हैं। पर इस फिल्म के साथ दो समस्याएं हुई हैं, एक – इसे जल्दी-जल्दी 26 जनवरी के आसपास रिलीज़ करने के चक्कर में स्क्रीनप्ले पर फाइनल टच नहीं दिया गया लगता है और दूसरा ये पठान के साथ रिलीज़ हुई है, पठान से एक हफ्ता पहले या एक हफ्ते बाद रिलीज़ होती तो फिल्म फिर भी कुछ ऑपनिंग ले सकती थी।
म्यूजिक की बात करूँ तो एआर रहमान का वो जादू मिसिंग है जिसके हम सब कायल हैं। फिर भी, श्रेया घोषाल की आवाज़ में ‘वैष्णव जन’ सुनने लायक है।
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तो कुलमिलाकर Gandhi-Godse एक औसत से ऊपर पीरीअड ड्रामा है, जिसमें कुछ कलाकार अच्छे हैं, कुछ ओवर हैं और कुछ बस रोते रहते हैं। तीसरा, फिल्म की लोकेशन, कलर, सेट और कॉस्टयूम 1948 में ले जाने में सक्षम हैं। प्लस पॉइंट ये भी है कि फिल्म की लेंथ मात्र 2 घंटे भी नहीं है इसलिए नींद आने से पहले ही फिल्म खत्म हो जाती है।
बादबाकी ओटीटी पर रिलीज़ होने के बाद आप एक बार फिल्म देख सकते हैं, अगर कहीं सस्ता टिकेट मिलता है और आपके पास थोड़ा समय भी हो, तो भी देखना पैसा वेस्ट नहीं होगा।
रेटिंग – 6/10*
दूसरी तरफ पठान की बात करें तो पहले दिन में मल्टीप्लेक्सेस से कन्फर्म 25 करोड़ का कलेक्शन आँका गया है, जबकि फिल्म सिंगल स्क्रीनथिएटर्स पर ज्यादा बड़ी हिट होगी, ऐसी उम्मीद है।
January 26, 2023 @ 6:30 PM
बढ़िया। इस कॉन्सेप्ट पर अगर किताब होती तो मैं वो जरूर पढ़ता। रोचक कॉन्सेप्ट है। रिव्यू से लगता है बिना किसी अपेक्षा के जायेंगे तो फिल्म शायद ज्यादा एंजॉय कर पाएंगे।
January 26, 2023 @ 8:13 PM
वाकई में, इसपर किताब होती तो वृहद होती। फिल्म जल्दबाजी में सबको ख़ुश करने के चक्कर में दब गई।
January 27, 2023 @ 7:52 PM
हट्टे कट्टे गांधी 😂😂😂😂
January 27, 2023 @ 10:41 PM
तभी गोली झेल गए