Auto Driver पटाबी रमन कहते हैं- “मैं इंग्लिश में लेक्चरर था और मैंने एमए और एम एड किया है!”
सुबह-सुबह जब आप ऑफिस के लिए लेट हो रहे हैं और एक auto driver आपसे अंग्रेजी में पूछे कि मेम आपको कहा जाना है, आईए मैं छोड़ देता हूँ। तो आपका क्या रिएक्शन आएंगे। वहीं जो बेंगलुरु की Nikita Iyer का आया।
Nikita Iyer बेंगलुरु में रहती हैं। एक दिन अचानक वो ऑफिस के लिए लेट हो रही थीं और उन्हें ऑटो नहीं मिल रह था। तभी एक बूढ़ा ऑटो ड्राइवर ने उनसे अंग्रेजी में पूछा कि मेम आपको कहा जाना है।
उस व्यक्ति को अंग्रेजी में बोलते देख Nikita चौक जाती है और उत्सुक्ता से उनके ऑटो में बैठ जाती है। Nikita खुद एक रिसर्चर है इसीलिए बिना सवाल पूछे नहीं रहना उनके बस का नहीं था। ऑटो में बैठते ही वो ड्राइवर से सवाल पूछती है- “आपको इतनी अच्छी इंग्लिश कैसे आती है।” इसपर auto driver का जवाब सुनकर वो अचंभित रह जाती है।
Auto Driver पटाबी रमन कहते हैं- “मैं इंग्लिश में लेक्चरर था और मैंने एमए और एम एड किया है!”
आगे Nikita कुछ पूछती उन्होंने खुद ही कहा कि “अब आप मुझसे पूछेंगी कि मैं ऑटो क्यों चला रहा हूँ।”
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि “मैं 74 साल का हूँ और 14 साल से रिक्शा चला रहा हूँ। पहले, मैं मुंबई के एक कॉलेज में इंग्लिश में लेक्चरर के रूप में काम करता था, क्योंकि मुझे कर्नाटक में कोई नौकरी नहीं मिली थी। तंग आकर, मैं नौकरी की तलाश में मुंबई चला गया और एक प्रतिष्ठित पवई कॉलेज में नौकरी की। वहां मैंने 20 सालों तक काम किया। 60 साल की उम्र में, मैं रिटायर्ड हो गया और कर्नाटक लौट आया।”
“शिक्षकों को अच्छा वेतन नहीं मिलता है। आप अधिकतम 10,000-15,000 रुपये कमा सकते हैं, और चूंकि यह एक निजी संस्थान था, इसलिए मुझे पेंशन नहीं मिला। रिक्शा चलाने से मुझे कम से कम 700-1500 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं, जो मेरे और मेरी गर्लफ्रेंड के लिए काफी है।”
गर्लफ्रेंड वाली बात पर निकिता हंसने लगी। इसपर उन्होंने कहा कि “वह मेरी पत्नी है लेकिन मैं उसे अपनी गर्लफ्रेंड कहता हूं क्योंकि मैं उसे अपने समान मानता हूँ। जिस समय आप पत्नी कहते हैं, पति सोचते हैं कि उनकी पत्नि एक स्लेव है जिसे सेवा करनी चाहिए। लेकिन मेरी पत्नी नहीं है। वास्तव में वह मुझसे अधिक सक्षम हैं। वह 72 वर्ष की है और घर की देखभाल करती है जबकि मैं दिन में 9-10 घंटे काम करता हूं। हम कडुगोडी में 1 बीएचके में रहते हैं, जहां मेरा बेटा 12,000 रुपये का किराए देकर हमार मदद करता है, लेकिन उसके अलावा हम अपने बच्चों पर निर्भर नहीं हैं। वे अपना जीवन जीते हैं और हम अपना। अब मैं अपनी सड़क का राजा हूं। मैं जब चाहें अपना ऑटो निकाल सकता हूं और जब चाहूं काम कर सकता हूं।”
पटाबी रमन को अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है। अपनी बात पूरी करते हुए निकिता कहती हैं कि इन हिडेन हीरोज से बहुत कुछ सीखना है।
हम अपने जीवन में छोटी-छोटी बातों से परेशान हो जाते हैं लेकिन खुश होने के लिए हमें बड़ी अचीवमेंट या कोई गुड न्यूज की आवश्यकता पड़ती है। जबकि होना ऐसा चाहिए कि हमें बड़ी बड़ी मुसीबतों में भी परेशान होने की जगह उसका समाधान ढूढना चाहिए और छोटी छोटी बातों में भी खुश हो जाना चाहिए। कम से कम इसी बात से खुश हो जाएं कि हम जिंदा हैं। इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है।
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Story and Picture Credit- Nikita Iyer