1952 cinematography act में बदलाव लाया जाए इसके लिए पीएम को कई पत्र भी लिखें गए थे लेकिन अबतक कोई हरकत होती दिखाई नहीं दे रही थी।
मोदी सरकार cinematography act 1952 में संशोधन करने जा रही है। संशोधित विधेयक का मसौदा तैयार हो गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने लोगों से इस पर राय भी मांगी थी। पिछले साल उसकी समय सीमा भी खत्म हो चुकी है (पर कोरोना काल के चलते बाकी चीज़ों के सामने इसे तरजीह नहीं दी गई)। इस विधेयक की ख़बर फ़िल्म जगत में पड़ी तो एक वर्ग इसको लेकर विरोध दर्ज करवाने सामने आया। तीन हजार से ज्यादा फिल्मी लोगों ने हस्ताक्षर के जरिये आपत्ति सूचना मंत्रालय को भेजी कि भैया ये संशोधन तो नहीं होना चाहिए। इसमें तो अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही है।
विशाल भारद्वाज ने आमिर और शाहरुख खान पर निशाना साधते हुए कहा कि इस मुद्दे पर बड़े स्टार्स की चुप्पी हैरान कर देने वाली है। फरहान अख्तर, शबाना आजमी, अनुराग कश्यप और कमल हासन भी मोदी सरकार पर हमलावर बने नजर आए। फ़िल्म जगत के इन लोगों को डर सता रहा है कि इससे सारी पावर केंद्र व राज्य सरकारों के हाथों में चली जाएगी और विरोध करने वाले संगठनों को फ़िल्म रोकने का मौका मिल जाएगा।
मोदी सरकार ने प्रस्तावित विधेयक के बारे में बतलाते हुए कहा कि इससे पायरेसी रोकना, इसमें गैर-अधिकृत कैमकॉर्डिंग और फिल्मों की कॉपी बनाने के खिलाफ जेल सहित अन्य प्रावधानों को शामिल किया गया है। साथ ही सरकार को किसी फिल्म की शिकायत मिलने के बाद उस फिल्म का दोबारा से सर्टिफिकेशन करने का अधिकार होगा। भले सेंसर बोर्ड सर्टिफिकेट जारी कर चुका हो।
पिछले वर्ष इस साल सरकार ने एफसीएटी को रद्द करने का फैसला किया था। इसमें फ़िल्म निर्माता सेंसर बोर्ड के खिलाफ अपील कर सकते थे।
वैसे फ़िल्म इंडस्ट्री लंबे समय से मांग कर रही थी कि कैमकॉर्डिंग को रोका जाए। 1952 cinematography act में बदलाव लाया जाए इसके लिए पीएम को कई पत्र भी लिखें गए थे लेकिन अबतक कोई हरकत होती दिखाई नहीं दे रही थी।
हालांकि अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इन लोगों को संशोधित विधेयक के प्रावधानों से परेशानी क्या है? निष्पक्ष और साफ़ सुधरे कंटेंट पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है। लेकिन…लेकिन! नैरेटिव, प्रोपगैंडा, किसी वर्ग की भावनाओं को भड़काने वाले कंटेंट पर तो विरोध होगा। जायज भी है। अच्छा सिनेमा सभी को पसन्द आता है लेकिन धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले कंटेन्ट को रोकना सही क्यों नहीं है?
The kashmir Files को दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया है क्योंकि उसका कंटेंट एक्चुअल फैक्ट्स के इर्दगिर्द है। संशोधित विधेयक पर आपत्ति जताने वाले वर्ग को विवेक अग्निहोत्री की फाइल्स से समस्या हुई है। इसे प्रोपगैंडा और झूठा करार दे दिया गया है। भारत सरकार ने तो इसे कतई रोका नहीं है या कहे विवेक की अभिव्यक्ति दबाने की कोशिश बिल्कुल नहीं हुई है। राज्यों में भी फाइल्स ख़ूब दौड़ लगा रही है। सिर्फ़ एक The Kashmir Files कंटेंट ने कई चेहरे बेनकाब कर दिए। दोगलेपन के स्टैंडर्ड भी उजागर किए है। पूरा इको सिस्टम हिल गया है। इधर-उधर दौड़ते फिर रहे है।
कहावत है न! चोर की दाढ़ी में तिनका, यक़ीनन इन लोगों के मन में कुछ तो है। इनको लग रहा है। इस विधेयक के कानून बनते ही हमारे नैरेटिव और प्रोपगैंडा वाले कंटेंट ध्वस्त हो जाएंगे। विशाल भारद्वाज ने हैदर में भारतीय सेना को विलन बतलाया था। मीरा नायर के कई कंटेंट बैन की मांग के सामने आकर खड़े हो गए थे। पीके, ओएमजी, पद्मावत, बाजीराव मस्तानी, राम लीला और बीते दिनों तांडव वेब सीरीज व अन्य कंटेंट भी भावना भड़काते दिखे। लोगों ने सरकार को शिकायत भी की। अभिव्यक्ति एकतरफा नहीं हो सकती है। अगर ऐसा होगा। तो विरोध होना लाज़मी है।
CinematographyAct संशोधन की डिमांड कर रहा है। भारतीय सेंसर बोर्ड के प्रावधान काफ़ी पुराने है।
भारत सरकार ने संशोधित विधेयक को सदन के पटल नहीं रखा है लेकिन जब सदन में आएगातो गर्मी और बढ़ेगी, फिर विरोध के स्वर भी तेज़ होंगे और हम जैसे मुस्कुराते हुए गाते मिलेंगे कि “अरे भई हंगामा है क्यों बरपा, अभिव्यक्ति ही तो की है, बहाना तो नहीं मारा, गोली तो नहीं दी है!”
-यह लेखक के निजी विचार हैं।