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Chup Moview Review – Theme Song – – –

जाने क्या तूने कही
जाने क्या मैंने सुनी

बात कुछ बन सी गई!

जब अनुराग बसु की फिल्म लूडो आई थी, तब अचानक से ‘ओ बाबू जी, ओ बेटा जी’ Youtube पर हिट होकर 10 मिलियन व्यूज़ ले गया था। ऐसे ही, Chup देखने के बाद लोग गीता दत्त के इतने प्यारे गाने को दोबारा, तिबारा, चौबारा सुनने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

Chup का ट्रेलर देखकर मेरे मन में कुछ अलग, कुछ मज़ेदार देखने की उम्मीद जगी थी। फिर आज, 23 सितंबर को सिनेमा के 110 साल पूरे होने पर, national cinema day के मौके पर मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ने 75 रुपये में टिकेट्स बाँटनी शुरु की तो मैंने भी बहती गंगा में हाथ धो लिया।

Chup की शुरुआत बिल्कुल फ़ॉरेन साइको थ्रिलर फिल्मों जैसी है। एक औरत मोहल्ले में, बिल्डिंग में, अपने फ्लैट में एंटर हो रही है, कैमरा उसे follow कर रहा है। रात का समय है, नीम अंधेरा है। गार्ड सो चुका है। वो घर आई तो घर में lights off हैं। और जब लाइट जलाई तो सामने लाश है!

बाकी ट्रेलर के मुताबिक ही, कहानी एक ऐसे सीरीअल किलर की है जो सिर्फ फिल्म क्रिटिक्स को मारता है। उनको मारता है जो अच्छी फिल्म को बुरी रेटिंग देते हैं या बुरी फिल्म को सिर पर बिठा लेते हैं, पर वो तो एक से अधिक हो सकते हैं? फिर किसको मारना है वो इसका चुनाव कैसे करता है?

मात्र ट्रैलर जितनी ही कहानी होने के बावजूद, Chup का सस्पेंस पार्ट औसत होने के बावजूद, स्क्रीनप्ले इतना शानदार है कि एक पल के लिए भी स्क्रीन से निगाह हटे (सीट ढूँढने वालों की वजह से) तो लगता था कुछ miss हो गया। फिल्म का नाम Chup क्यों है, इसका खुलासा भी बढ़िया तरीके से हुआ है। हालांकि trailer मिसलीडिंग है, उसमें किलर की जो आवाज़ इस्तेमाल की है, वो फिल्म में कहीं भी नहीं है।

यूएसपी पॉइंट्स की बात करें तो ‘चुप’ गुरु दत्त की फिल्म कागज़ के फूल का ज़िक्र करती है। प्यासा के सीन्स दिखाती है और Schizophrenia जैसी मज़ेदार बीमारी को, बॉलीवुड के अबतक के रेकॉर्ड के हिसाब से नए तरीके से पेश करने की कोशिश भी करती है।

नेगेटिव में – फिल्म का gore होना, कटे-फटे अंगों को दिखाना, ज़ूम करके दिखाना, कमज़ोर दिल वालों और सिर्फ सास बहु सीरियल्स देखने वालों को डिस्टर्ब कर सकता है।

दलकिर सलमान को मैंने पहली बार आकर्ष खुराना की कारवां में देखा था। तब इरफान के सामने, सलमान मुझे डल और एवरेज लगे थे। लेकिन चुप में उन्हें अच्छी फुटेज मिली है। उन्होंने बहुत बढ़िया इक्स्प्रेशन दिए हैं, बॉडी लैंग्वेज कमाल की है। डाइलॉग डिलीवरी इतनी शानदार है, टाइमिंग ऐसी सुपर्ब है कि हर सीन पर वाह निकलती है। साथ ही ये भी जोड़ना चाहूँगा कि इस वाले सलमान की आवाज़ वाकई अच्छी है। इसको गाना सुनाने के लिए किसी ऑटो ट्यूनर की ज़रूरत नहीं है।

chup

श्रेया धनवंतरी का स्क्रीन पर आना ही स्माइल लाने के लिए काफी है। उनकी बॉडी लैंग्वेज बहुत शानदार है। रोमांटिक सीन्स में तो बेहद खूबसूरत लगी हैं।

पूजा भट्ट का छोटा सा रोल, उनकी ट्विस्टी एंट्री, बहुत पॉवरफुल है।

लेकिन इन सबमें, सबसे पॉवरफुल एक्टर, सनी देओल का रोल फिलर्स जैसा लगता है। हालांकि उनकी acting में कोई कमी नहीं है, पर उनपर फुटेज ही बहुत सीमित दी गई है।

साउथ इंडियन अभिनेती सरण्या पोनवनन का छुटका सा रोल है, पर मैं उनके बिना ये फिल्म इमैजिन ही नहीं सकता हूँ।

डायरेक्टर आर बाल्की का मैं हमेशा से फैन हूँ। इनकी फिल्में अच्छी हों या औसत, लेकिन हट के होती हैं। इस बार भी आर बाल्की और उनकी राइटिंग टीम राजा सेन और ऋषि विरमानी ने एक फ्रेश कंटेन्ट परोसा है। डायरेक्शन इतना शानदार, इतना कसा हुआ है कि स्क्रीन से निगाह नहीं हटती।

मुझे फिल्मों में ह्यूमरस डाइलॉग्स बहुत पसंद हैं। इसमें ऐसे dialogues की भरमार है।

(Chup-चाप) मुलाहजा फरमाइए –

“क्या यार, एक स्टार देकर हमारी आफत ला दी इसने, दे देता अगर चार स्टार तो क्या आसमान में तारे कम हो जाते?”

“बोला था कि सेकंड हाफ आउट ऑफ ट्रैक था। अभी मैं वेबसीरीज़ बनाऊँगा तो उसमें सेकंड हाफ कैसे ढूंढेगा?”

“मैं तो अब cab driver को भी rating देने से डरने लगा हूँ”

विशाल सिन्हा की सिनेमेटोग्राफी बड़ी इन्टरिस्टिंग है। हालांकि फिल्म का ट्रीट्मन्ट डार्क ही रखा गया है, बस अंत में, खिड़की वाला सीन कतई मिसलीडिंग लगता है।

Chup का बैकग्राउन्ड म्यूजिक बहुत बोलत है। अमन पंत की मेहनत रंग लाई है। इकलौते रोमांटिक गाने में अमित त्रिवेदी का म्यूजिक असरदार है। Actually वो पूरा रोमांटिक सीन ही दिलफरेब है।

फिल्म एडिटिंग पर स्क्रिप्ट में भी टोंट मारा है, शायद इसलिए ही एडिटर नयन भद्रा ने फिल्म को बिल्कुल टू द पॉइंट रखा है। मात्र 2 घंटे 10 मिनट की इस फिल्म में एक भी सीन, एक भी सीन का आधा सा हिस्सा भी फालतू नहीं लगता है।

कुलमिलाकर Chup एक बार शुरु होती है तो निगाह नहीं हटती। यहाँ हल्द्वानी के कार्निवल सिनेमा में मुझे फ्रेम रेट में कुछ गड़बड़ महसूस हुई, फिल्म ज़रा अटक-अटक कर चल रही थी। इसके इतर, फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं था जिसको हटाया जा सके, हाँ, क्लाइमैक्स थोड़ा बॉलीवुडिया स्टाइल, ड्रमैटिक सा होता तो और बेहतर लगता, लेकिन जो हुआ वो पचाना आसान है। हकीकत के काफी करीब लगता है।

Chup में सारी मारा-मारी ही रेटिंग को लेकर है, Interval में मुझे एहसास हुआ कि कई बार मैंने भी किसी फिल्म को दस में आठ रेटिंग दी है और उसी फिल्म को बाद में देखकर मुझे अफसोस भी हुआ है। वो तो गनीमत है कि मेरे छोटे से माथे पर आठ स्टार्स बनाने की जगह ही नहीं है, मैं भी अगर पाँच में से रेट करता होता, तो अपने ही घर में घबराया-घबराया घूमता।

(Review पसंद आए तो Whatsapp, Facebook, Twitter, आदि पर जम के शेयर करें क्योंकि… sharing is caring होती है न) 

Rating – 8/10*

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

6 Comments

  1. विकास नैनवाल
    September 23, 2022 @ 8:00 PM

    रोचक टिप्पणी। इधर सिनेमा हॉल तो नहीं है लेकिन ओटीटी पर आएगी तो देखने की कोशिश रहेगी।

    Reply

  2. ANKUR SRIVASTAVA
    September 23, 2022 @ 8:14 PM

    Behtreen evam sakti….

    Neem ka use krke gulzar wala stamp lga diya. Jiski jigyasa jagegi wo dekh hi lega mtlb…

    Wo neem tareeq si galiyan…

    Bonus– aaj cinema day h. Ilm m izaafa.

    Reply

  3. ANKUR SRIVASTAVA
    September 23, 2022 @ 8:17 PM

    Sakti = sateek**

    Reply

  4. Kanwal Sharma
    September 25, 2022 @ 6:42 PM

    Have not seen this yet – but now after your review, its there on my watchlist.

    Reply

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