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प्रेम कितना गहरा है इसे मापने का कोई पैमाना नहीं। पर प्रेम है या नहीं यह पता लगाने के लिए बस प्रेमियों को अलग कर देना काफी है। Akbar के दरबार में जाते वक़्त कुछ ऐसा ही राय प्रवीणा ने इन्द्रजीत से से अलग होकर महसूस किया होगा।  

किताब – इन्द्रप्रिया
लेखक – सुधीर मौर्य
प्रकाशन – साहित्य विमर्श
मूल्य – 139 रुपए

इस किताब की कहानी जोधपुर रियासत में लोहा कूटते भूरेलाल से शुरु होती है जिसे बहुत कम समय में बहुत से भाले बरछियाँ बनाने का हुक्म दिया जाता है। इस हाड़ गलाऊ काम में, अपने 6 साल के बेटे को शामिल कर लेने का सुझाव ही भूरेलाल को डरा देता है और अपनी समझदार पत्नी के उकसाने पर वो किले से चुपचाप भाग जाता है।

अब कहानी का मज़ा देखिए, भूरेलाल वहाँ से ओरछा पहुँचा और ओरछा से कछौआ में जा बसा। पर ये कहानी भूरेलाल की नहीं है। भूरेलाल के बेटे माधव का मन लोहारी में न होकर कृष्ण भजन गाने में लगा, वो एक समय बहुत मशहूर भजन गायक बन गया। पर ये कहानी माधव की भी नहीं है। माधव को सत्या नामक एक निपुण नतर्की से प्यार हो गया जिसके जैसा नाचना कोई नहीं जानता। पर ये कहानी सत्या की भी नहीं है।

फिर कहानी आख़िर है किसकी? बस AKBAR की?

akbar from Mughal e azam

ये कहानी इन दोनों की संतान पूर्णिमा की है, जिसकी सुरीली आवाज़ और बेहतरीन नाच से पहले उसकी चाँद सी सूरत नज़र आती थी जिसकी कहीं कोई तुलना नहीं है। यही सूरत देख कुँवर इंद्रजीत मोहित होते हैं और पूर्णिमा के पूरे परिवार को अपने नगर ले जाते हैं।

यही वो काल था जब दिल्ली की गद्दी अकबर ‘बादशाह’ के पास थी। AKBAR की सेना ओरछा पर तीन बार हमला कर चुकी थी और हार चुकी थी। लेकिन जब AKBAR को ओरछा की सुंदरी के बारे में पता चलता है तो उसके मन में उसे पाने की ललक उठ जाती है।

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राय प्रवीणा का महल अंदर से

इस किताब में ‘फिल्मों’ वाले AKBAR के विरुद्ध बहुत लंपट और ढीले नाड़े का कुढ़ने वाला व्यक्ति बताया है। हालांकि कहीं पढ़ा था कि मुग़ल-ए-आज़म के अकबर को सलीम-अनारकली के रिश्ते से इसलिए भी दिक्कत थी क्योंकि वह खुद अनारकली को पसंद करते थे।

बहरहाल, किताब की भाषा शैली बहुत रिच बहुत समृद्ध है। कुछ एक संवाद भी ऐसे हैं कि दोबारा पढ़ने का मन करता है। खासकर अकबर के दरबार में पूर्णिमा उर्फ राय प्रवीणा को पालकी में भेजते इंद्रजीत का चित्रण बहुत सुंदर बना है।

अच्छा है तो भला बुरा क्या है? सिर्फ AKBAR ?

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किताब की एक सबसे बड़ी कमी है कि ये बहुत छोटी है। बहुत शानदार हो सकते दृश्यों को बहुत जल्दी निपटाने की कोशिश की गई है। यूँ समझिए सत्तर सालों की दास्तान मात्र सवा सौ पन्नों में लिखने की कोशिश की गई है जो खुशकिस्मती से कम तो लगती है, पर अधूरी बिल्कुल नहीं है। बल्कि अंत तो इतना टची है कि एक से ज़्यादा बार पढ़ने का मन करता है।

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राय प्रवीणा का महल

कुलमिलाकर, इन्द्रप्रिया में जो इतिहास बताया गया है वो मैंने पहले कभी नहीं पढ़ा इसलिए इतिहास और खासकर अकबर के इस चेहरे के बारे में जानकारी नहीं थी। किताब एक बार पठनीय अवश्य है, एक एतिहासिक प्रेम कहानी के रूप में यह संकलित की जा सकती है। किताब का कवर बहुत शानदार है। वफ़ा फ़राज द्वारा लिखी गई भूमिका भी बहुत सुंदर है। कागज़ की क्वालिटी और शब्दों का साइज़ भी अच्छा है जिससे रात की कम रौशनी में भी पढ़ने से दिक्कत नहीं होती है। इस किताब का एमआरपी 149 रुपए है।

रेटिंग – 7.5/10*   

अपनी मनपसंद किताब की समीक्षा चाहते हैं तो कॉमेंट में ज़रूर लिखें, अगली समीक्षा फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की होगी।

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सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर

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राय प्रवीणा का महल

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

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