Anek Movie Review: Anek की कहानी अमन यानी आयुष्मान खुराना के नैरेशन से शुरु होती है। अमन special forces कम army intelligence का आदमी है जो जगह-जगह, पूरे देश में शांति बनाए रखने के लिए यहाँ वहाँ secret एजेंट बना पहुँच जाता है।
इन दिनों मुद्दे भुनाने की बहार आई हुई है। विवेक रंजन अग्निहोत्री ने the Kashmir files बनाई तो ढेर सारे mushrooms ढेर सारे दंगों को लेकर files बनाने की गुहार लगाने लगे। गुजरात दंगों से पहले गोधरा में हुई कार सेवकों की हत्या पर फिल्म बनाने के लिए तो एक टीम से मैं भी मिल चुका हूँ।
लेकिन लेखक निर्देशक अनुभव सिन्हा को नये मौसम का फ़र्क नहीं पड़ता। वो काफी सालों से अजेंडा बेस्ड फिल्म्स ही बनाते आ रहे हैं, फिर चाहें वो आर्टिकल 15 हो, मुल्क हो या ‘थप्पड़’।
अनुभव का सिनेमाई अनुभव इतना अच्छा है कि वो कोई भी अजेंडा परोसें, उसकी खुश्बू अच्छी ही आती है।
Anek की कहानी अमन यानी आयुष्मान खुराना के नैरेशन से शुरु होती है। अमन special forces कम army intelligence का आदमी है जो जगह-जगह, पूरे देश में शांति बनाए रखने के लिए यहाँ वहाँ secret एजेंट बना पहुँच जाता है। ऐसे ही north east के एक इलाके में, जहाँ famous rebel group टाइगर सांगा का दबदबा है। ये पिछले 60 सालों से भारतीय सेना के साथ conflict में है और अबतक भारत सरकार इन्हें खत्म नहीं कर पाई है।
‘अब जिसे खत्म न कर सको, उससे समझौता कर लो’ के मार्ग पर चलते हुए सरकारी आदमी कुमुद मिश्रा और IB chief (शायद) अबरार भट्ट यानी मनोज पाहवा टाइगर सांगा के सामने समझौते के papers रख देते हैं।
अब यहाँ बड़ी राजनीति दिखाई गई है। सरकार ने north east इंडिया में पनप रहे ज़्यादातर rebellion groups से समझौता कर लिया है, बस टाइगर सांगा रहता है, जिसकी अपनी तगड़ी आर्मी है; अब इसको कमज़ोर करने के लिए अबरार भट्ट आयुष्मान खुराना के भरोसे एक नया रिबेल ग्रुप – johnson – स्टार्ट करवा देते हैं, उसे fund देते हैं, हथियार देते हैं लेकिन सब बोगस होता है – कहानी दिमाग घुमा रही है न?
अभी और लो, ये बोगस group वाकई में एक leader पकड़ लेता है जिसके बारे में आयुष्मान को भी पता नहीं चलता (ये टॉप के सीक्रिट एजेंट हैं), जब पता चलता है तो ये भी पता चलता है कि जॉनसन का असली छुपा चेहरा तो उनकी मुँह बोली गर्लफ्रेंड का बाप है! जो कहने को school टीचर है।
अब ये girlfriend, बाक्सर है और इंडिया के लिए खेलना चाहती है पर लोग उसे चिंकी बुलाते हैं, उसकी बेइज्ज़ती करते हैं, वो फिर भी इंडिया के लिए खेलना चाहती है जबकि उसका बाप इंडिया को अपना मानता ही नहीं है।
अब एक बच्चा और है जो धीरे-धीरे इस group की तरफ बढ़ रहा है। आयुष्मान उसकी अम्मा को दिलासा देता है कि वो उसे बिगड़ने नहीं देगा।
और दिमाग घूमा?
इनटरवल तक ये सारे confusion बहुत अच्छे लगते हैं। बेहतरीन view, शानदार acting और जानदार dialogues के भरोसे, फिल्म में बहुत मज़ा आता है। सवा घंटे कब निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता!
बीच में एक जगह तो मेरे मुँह से निकल भी जाता है कि – अरे ये वो ही अनुभव सिन्हा है जिसने रा-वन बनाई थी! यकीन नहीं होता!
लेकिन interval के 15 minutes बाद ही लगता है छी, ये वही अनुभव सिन्हा है जिसने article 15 और मुल्क बनाई थी? यकीन नहीं होता!
Writer, director, producer अनुभव सिन्हा ने फिल्म को इतना अच्छा foreplay दिया कि पब्लिक जोश में आ जाए और फिर…. उनका स्क्रीनप्ले शीघ्रपतन का शिकार हो गया! बेवजह कश्मीर को जोड़ना, एक पीड़ित मुसलमान दिखाना,
फिर snipers द्वारा junior militants को देर तक मारते रहना, sadism जैसा लगने लगा। surgical strike तो बेवकूफाने की हद पार थी।
Dialogues पर मुलाहजा फरमाइए –
“तेरी माँ सही तो कहती है, जा दिल्ली जा, अच्छा असम चला जा, पैसा कमा, घर खरीद गाड़ी खरीद
क्यों जाऊँ, मेरा घर तो यहाँ है न, यहाँ खेत है, मुझे खेती अच्छी लगती है, तुम्हें करनी है खेती? नहीं न? तुम्हें खेती नहीं चाहिए, मुझे गाड़ी नहीं चाहिए”
“हर बंदूक के पीछे एक कंधा होता है और उस कँधे पर ज़िंदगी का बोझ”
“बंदूकें सब सेम होती हैं, गोलियां भी, बस उँगलियाँ decide करती हैं कि कौन सी मौत जायज़ है”
अब कुछ cliché देखिए –
(सरकार) “Surgical strike के लिए भेजो उसको जो बेस्ट है, हम peace accords पर sign भी करेंगे और सर्जिकल strike कर उसपर फिल्म भी बनाएंगे”
“जनता की आवाज़ पाँच साल में एक बार सुनी जा सकती है, रोज़ रोज़ नहीं, और अगर रोज़ रोज़ सुननी है तो फिर सबकी सुनी जानी चाहिए, किसी एक की नहीं (कश्मीर मुद्दे पर)
इसके अलावा फिल्म में दोयम दर्जे का action है। आयुष्मान खुराना को इतना अच्छा लुक देने के बाद, चंडीगढ़ करे आशिकी वाली बॉडी में शूट करने के बाद भी action का इतना हल्का होना अखरता है।
फिल्म को मार्मिक करने के चक्कर में इतना घटिया बनाया है कि कश्मीर files की तरह खून दिखा-दिखाकर, मरे हुए बच्चों को show कर disturb करने की कोशिश की गई है।
हाँ, वो सीन बहुत असरदार है जब दो तरफ गोलियां चल रही हैं और बीच में ज़मीन पर लेटे school के बच्चे गोलियां रुकने का इंतज़ार कर रहे हैं।
पर ऐसे अच्छे direction का क्या फायदा जिससे अंत न संभले, जो kashmir files से खुन्नस निकालने के लिए जबरन Kashmir के सीन डाले? जो इतना घटिया boxing मैच picturise करे कि खुद मैरी कॉम को उसे कूटने के लिए सुपाड़ी उठानी पड़े! क्या फायदा ऐसे direction का!
VFX पर बहुत पैसा बर्बाद हुआ है। मंगेश ढाकड़े का music background बहुत अच्छा है। लोक गीत बहुत सुंदर है। सिनिमटाग्रफी बहुत ज़्यादा अच्छी है। फिल्म दो घंटे तक झेलने में मदद करती है।
आयुष्मान खुराना अच्छे actor हैं, लेकिन फिल्म में सीक्रिट एजेंट कम दलाल ज़्यादा लगे हैं, वो दलाल जो बहुत बोलता है। एक थप्पड़, एक घूंसा नहीं चला ‘जोशुआ’ उर्फ अमन उर्फ हीरो से, लेकिन बकलोली दुनिया भर की पेली है। हाँ, look देने में आयुष्मान का कोई जवाब नहीं!
जेडी चक्रवर्ती का रोल और acting दोनों बढ़िया है। एंड्रिया केविचुसा से जितना हो सका उतनी acting कर ली। लेकिन boxer वो किसी कोण से नहीं लग रही थीं। director को चाहिए था कि पहले उन्हें घी-दूध पिलाकर कुपोषित होने से बचाएं।
कुमुद मिश्रा का छोटा सा रोल है, पर अच्छा है। मनोज पाहवा अनुभव सिन्हा की फिल्मों में हमेशा ही important character होते हैं, इस बार भी हैं और गजब हैं! कश्मीरी मुसलमान बने वो दिल को touch कर जाते हैं। उनकी पूरी body acting करती नज़र आती है।
टाइगर सांगा बने लॉइटॉंगबाम का नाम लेने में भले ही ज़ुबान टेढ़ी हो जाए, पर acting कमाल की है।
बाकी कास्ट भी घटिया screenplay की वजह से अच्छे से waste हुई है।
कुलमिलाकर फिल्म कभी कश्मीर files पर तंज कसती है तो कभी उरी सर्जिकल strike पर। मोदी सरकार पर तो लगातार टोंट चलते ही रहते हैं जो उनमें से कुछ कुछ असरदार भी है। Direction भटकता हुआ इधर-उधर निकल जाता है और मेरे 200 रुपए plus चैन की नींद में आग लग जाती है।
Rating 3.5/10*
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May 27, 2022 @ 5:11 PM
आप भी ….
अरे बहुत अच्छी फ़िल्म है हा ये अलग बात है की ये साउथ की नहीं है अगर होती तो आप की समीक्षा कुछ और होती
May 28, 2022 @ 7:55 PM
साउथ की नहीं ये नॉर्थ east की है। मैं तो इस उम्मीद से गया था कि इसमें कुछ कारगर मिलेगा, पर निराशा मिली
May 27, 2022 @ 10:37 PM
ट्रेलर देखकर लग रहा था कुछ खिचड़ी सी पक रही है। नॉर्थ इंडिया वाली नहीं, नॉर्थ ईस्ट इंडिया वाली जिसमें तरह तरह की सब्जियां और मसाले मिलाएं जाते हैं। अनेक में अनेक प्रोब्लम का सोल्यूशन निकालने में अनुभव सिन्हा और टीम नाकाम रही और हमें पैसे बर्बाद करके फिल्म देखने जाने की जरूरत नहीं रिव्यू यही कहता है।
May 28, 2022 @ 7:54 PM
बिल्कुल सही
May 28, 2022 @ 12:51 PM
Ayushman has always been my favrt but to be honest his last appearance was so dull that this one dosent ingnite me. The film has a different subject and very few films have touched this one. I remember ‘Dil Se…’ which was probably on same lines.
Waiting to see this.
Thanks for this awesome review..
May 28, 2022 @ 7:54 PM
दिल से एक मास्टर पीस थी। लेकिन उसकी वजह उसमें दिखाए गए आतंकी पंगे से ज़्यादा उसकी दिलफरेब लव स्टोरी थी। इसमें वो दोनों ही चीज़ें missing रहीं। बहुत शुक्रिया कंवल सर, आपका साथ बना रहे।