Adipurush के आदि का अर्थ होता है शुरुआत, आरंभ! महादेव भोलेनाथ को आदियोगी भी कहते हैं क्योंकि वो ही हैं जिनसे योग शुरु हुआ है। तो आदिपुरुष याने, वो मानुष जिससे पुरुषार्थ की शुरुआत हुई। पुरुषोत्तम! सबसे अव्वल।
पर कहानी इन सबसे परे सीधे वनवास से शुरु होती है। कास्टिंग में ऑइल पेंटिंग्स और स्केचेस दिखा के, वॉयस ओवर से ये बता दिया कि भई राघव को अयोध्या से निकाल दिया गया है, अभी वनवास में राघव (एक बार भी राम नाम नहीं लिया) जानकी (सीता नहीं पुकारा गया) और शेष, शेषनाग के अवतार शेष हैं। लक्ष्मण नहीं, सिर्फ शेष।
अब या तो ओम राउत और मनोज शुक्ला मुंतशिर भैया को कुछ नया करने की आग थी, या दोनों को कॉपीराइट क्लैम से डर लग रहा था कि सेम नाम नहीं रख सकते।
अब लक्ष्मण और सीता मैया, सॉरी सॉरी, जानकी भाभी और शेष एक गुफा को घर बना चुके हैं, यहाँ बादल घनघनाते हैं, जानकी कहती हैं “शेष मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा”
शेष के अंदर छुपा सनी सिंह कहता है “बद्दलो से क्या डरना, ये तो रोज आते हैं”
फिर सामने से लॉर्ड ऑफ द रिंग्स के कुछ चमगादड़ कम दलिद्दर आकर हमला कर देते हैं। शेष गुफा के बाहर एक तीर मार ‘डॉक्टर स्ट्रैन्ज’ की स्लिंग रिंग वाला कवच बना देते हैं। अब इसके अंदर कोई नहीं आ सकता।
लेकिन, जानकी पूछती हैं “तुम्हारे भाई, वो तो बाहर हैं”
शेष कहते हैं “ये पतंगे हैं भाभी, भाई ज्वाला हैं, भला ज्वाला को कभी पतंगों से भय हुआ है?” (पहला)
Cut to
प्रभास उर्फ बाहुबली उर्फ राघव पानी के अंदर तप कर रहे हैं। उन्हें ऊपर से कुछ चमगादड़ उड़ते नज़र आते हैं। वो स्लो मोशन में बाहर आकर उनसे स्लो मोशन में ही मुठभेड़ करते हैं। फिर उनका रिंग मास्टर, जाने कौन, एक skull mask पहने vfx पे vfx मारता जाता है। पर राघव उसे समाप्त कर देते हैं, remind you, स्लो मोशन में ही समाप्त कर देते हैं।
फिर स्लो मोशन, और फिर सब हरियाली। कौन था वो कहाँ से आया था, उसकी वजह से किसी को कोई हानि तो न पहुँची, न, कुछ नहीं। पीसफुल लाइफ।
उधर सैफ अली खान खिलजी का भेस लिए रावण होने की कोशिश करता बर्फ में तप करके ब्रह्मा से ऑल्मोस्ट अमरता का वरदान ले लेता है। अभी बैठा शिवलिंग के सामने सितार-संतूर-गिटार-वीणा का मिला जुला रूप बजा उनकी वंदना कर रहा है। आस पास की मूर्तियाँ (जो कि सैफ अली खान ही हैं) संग गा रही हैं, चहुं ओर काले पत्थर हैं और ढेर सारा vfx है। रावण के हाथों से लहू निकल आया है पर वो शिव भक्ति में लीन है, फिर अचानक से वीणा के वो दो तार टूट जाते हैं, जिन्हें रावण छेड़ ही नहीं रहा था।
फिर सूर्पनखा को शूपनखा बुलाने और जानकी के बारे में जानने के बाद रावण दसों सिर, 5-5 के सेट में निकल आते हैं। 5 ऊपर, 5 नीचे। अब ये आपस में डिस्कशन कर रहे हैं। ये डिस्कशन कब डिबेट में बदल जाता है पता नहीं चलता। माँ जानकी तो ये दस सिरों के आपसी न्यूज़-रूम डिबेट को देख घबरा जाती हैं कि साला किस साइको से पाला पड़ गया है।
खैर वो बाद में, पहले सीता हरण,

तो जानकी संग राघव नौका में बैठे प्रेम गीत गा रहे हैं कि एक स्वर्ण मृग दिखा, राघव उसे लेने दौड़े, इधर जानकी वापस गुफा में, और जंगल से ‘शेष’ पुकारती हुई राघव की आवाज़ आई, शेष ने फिर एक तीर मार अपने छोटे से कमर-ताज को सिक्युर कर लिया। पर इधर रावण साधु भेस में आया, और सच बताऊँ तो तब वो ज़्यादा रावण लगने लगा। (trailer में है)
अब जटायु रावण के चमगादड़ को रोकने की कोशिश कर रहा है और राघव स्लो-मो में आ रहे हैं, आ रहे हैं, बहुत कोशिश कर रहे हैं पर पहुँच नहीं पा रहे हैं।
खैर, रामकथा तो आप सबको पता ही है। ये भी पता है कि सुग्रीव बाली वध के बाद, किष्किन्धा पर राजपाट करते ही सब भूल गए थे। लेकिन यहाँ इतना टाइम ही नहीं था, सुग्रीव को भला मानस दिखा दिया क्योंकि ओम राऊत जी को जल्दी-जल्दी मार-धाड़ तक पहुँचाना था।
हम सबने पढ़ा सुना है कि हनुमान जी बल ही नहीं बुद्धि के भी तेज हैं। लेकिन यहाँ लक्ष्मण, सॉरी शेष द्वारा बजरंग की परीक्षा लिए जाने पर देवदत्त नागे जी के इंटेलिजेंट जवाब सुनिए।
“तुम बुद्धिमान हो तो बताओ, एक महल बनाने में अगर 10 मजदूरों को 4 महीने लगते हैं तो 5 मजदूरों को कितना समय लगेगा?”
बजरंग सोचते-हिचकिचाते “अ, वो, बिल्कुल भी नहीं, महल तो पहले से बन गया है, अब समय क्यों लगेगा?”
“अच्छा तो ये बताओ, एक आदमी 20 दिन से सोया नहीं है, पर फिर भी उसको नींद नहीं आ रही, क्यों?”
“अ वो हम्म, वो रात में सोता होगा, हेहे, इसलिए”
“अच्छा ये बताओ, एक तोता और उसके दो बच्चे नदी पार कर गए तो सबसे छोटे बच्चे ने बोला, हम चारों ने नदी पार कर ली, वो तो तीन हैं, फिर बच्चे ने चार क्यों बोला?”
बजरंगजी विद क्यूट स्माइल “वो तो बच्चा है, कुछ भी कह सकता है, हीहीही” (दूसरा)
कुछ इस तरह के हाईली क्वालीफाइड संवादों से भरी, विएफएक्स से ठुसी, स्लो-मोशन में अटकी फिल्म आदिपुरुष इतनी जल्दबाजी में लंका पर लड़ने के लिए पहुँचती है कि इसका नाम, आदिपुरुष, व्यर्थ लगता है। इन्टरवल तक रामसेतु भी बन चुका होता है।
न इसमें रामेश्वरम का ज़िक्र है, न ही भील, न ही सुरसा और न ही इमोशन्स हैं। अरे मेरी प्यारी गिलहरी तक नहीं है, मैंने सबसे ज़्यादा तो गिल्लू को मिस किया। बस कुछ है तो ढेर सारा वीएफएक्स, छपरियों जैसी हेयरस्टाइल, चीप डाइलॉग्स और ज़बरदस्त एक्शन।
विएफएक्स की तो ये समझिए कि टीका मिटाने, आग जलाने और यहाँ तक की पानी उबालने में भी वीएफएक्स का इस्तेमाल किया है।
हेयरस्टाइल और कॉस्टयूम का ऐसा है कि विभीक्षण के बाल सेट-वेट से चिपके हैं, रावण की खिजली दाढ़ी और छोटे बालों के पास मस्त 3 लाइंस हैं। सैफ में 12 किलो विएफएक्स भरकर उसे 8 फिट का बना दिया है। सैफ इकलौते हैं जिन्होंने बेजोड़ एक्टिंग की है। कुछ एक सीन्स में बहुत बढ़िया बने है। जानकी के सामने ‘शिव तांडव स्त्रोत’ गाना गूज़ बम्प ला देता है। लेकिन रावण इतना चमगादड़ प्रेमी था, इसका भान मुझे आज ही हुआ। रावण चमगादड़ की सवारी करता है, चमगादड़ों की सेना बुलाता है, चमगादड़ प्रिन्ट का झण्डा लगाता है, और तो और, घर के बाहर सोने की मूर्ति भी अपनी नहीं, चमगादड़ की ही बनाता है।

प्रभास ने भी एक्टिंग में पूरी कोशिश की है पर ओम राऊत का सारा ज़ोर उन्हें राम नहीं बल्कि एक्शन हीरो बनाने पर था। सनी सिंह ट्रेलर से लेकर क्लाइमैक्स तक, हर तरफ मिस-फिट हैं। गुस्सा तो छोड़ो, शेष को देखकर तो ऐसा लगता है कि जैसे काम निपटा रहे हैं।
कृति सेनन सीता नहीं लगतीं पर उनका काम बुरा नहीं है।
विभीषण बने सिद्धारन्त कार्निक की हेयरस्टाइल हँसी लाती है। एक्टिंग की बात नहीं करेंगे।
देवदत्त नागे बात-बात पर मुँह फुला लेते हैं।
अब आगे सुनिए –
वत्सल सेठ मेघनाथ उर्फ इन्द्रजीत के रोल में, बजरंग की पूँछ में आग लगाकर कहते हैं
“जली न?”
जवाब यूनीक मिलता है “कपड़ा तेरा बाप का, तेल तेरे बाप का, तो जलेगी भी, तेरे बाप की” (तीसरा)
लेवल देख रहे हैं आप dialogues का?
एक और सुनिए, इन्द्रजीत लक्ष्मण पर नागपाश मारने के बाद कहता है
“बस बहुत हुआ तेरा ये बंदर नाच, बंद कर अपना तमाशा और निकल यहाँ से, तेरे बंदर तो जंगली है राघव, पर तू तो समझदार है, सुबह तक यहाँ से चला जा वर्ना…” (चौथा)
फिर वो चुटकी बजाकर बाहर का रास्ता दिखाता है!
एक और बात, इन्द्रजीत को यहाँ फ्लैश और मार्वल के Pietro की तरह फटाफट दौड़ने वाला दिखाया है।
लंका इतनी काली इतनी मैली है कि लगता है कोयले से बनी है।
यहाँ हमेशा बादल रहते हैं, मानो लंका नहीं तुम्बाड़ हो।
लेकिन क्लाइमैक्स का एक्शन सीक्वेंस, मज़ा बाँध देता है। खासकर एक बंदर द्वारा दसियों राक्षसों को गुलेल से मारना, अद्भुत लगता है।
हालाँकि प्रभास और सैफ के आते ही फिर स्लो-मो का चोंचला चालू हो जाता है, पर फिर भी, लास्ट फाइट समा बाँध देती है।
पर उसके इतर, इसमें ऐसा कुछ भी नहीं मिलता कि इसको देखने के लिए पैसा खर्चा किया जाए।
पूरी फिल्म में एक नारा गूँजता है – “राघव जहाँ, विजय वहाँ” (लाइफबॉय है जहाँ, तंदुरुस्ती है वहाँ)
मानों कोई दो दोस्त हों कि राघव वहाँ खेलने गया है तो देखो विजय भी उधर ही कहीं होगा। राघव की बाहुबली स्पीच के बाद हनुमानजी हर-हर महादेव का नारा लगाते हैं।
बैकग्राउंड में तो जय-श्री-राम उद्घोष होता है, पर कोई पात्र इसे बोलता नहीं मिलता।
डाइलॉग के खाते में ये भी जोड़िए, विभीषण की पत्नी से बजरंग पूछते हैं “मैं संजीवनी पहचानूँगा कैसे? तो जवाब मिलता है
“टहनी नहीं है, वो पत्ती नहीं है, वो फूल नहीं है, वो बीज नहीं है, वो हरी नहीं होती, वो पीली नहीं पड़ती, वो कोमल भी नहीं है, उसमें कांटे भी नहीं है, वो सुगंधित भी नहीं, वो दुर्गंध भी नहीं करती। वो संजीवनी संजीवनी है, उसके जैसी कुछ नहीं” (पाँचवा)
कोई सेंस है इस बात का? अगले ने पूछा है कि कैसी दिखती है ये बताओ, कैसी नहीं दिखती वो मत बताओ!
बहरहाल, सेंस का तो इस फिल्म से लेना देना वैसे भी नहीं है। संजीवनी सुबह होने से पहले लानी थी, ठीक?
संजीवनी हिमालय पर मिलती है, ठीक?
अब बजरंगी जब लंका से उड़े तो रात है, हिमालय पहुँचे तो सुबह है, फिर वापस लौटे तो रात ही है। टाइम ज़ोन ऐसे बदल रहा है जैसे वेस्ट-इंडीज़ से हिमालय आए हों।
इसके बाद राघव जी कहते हैं “ये मेरी लड़ाई थी, पर आज मेरे लिए मत लड़ना, आज उस इतिहास के लिए लड़ना, कि भारत में कभी हमारी बहन-बेटी पर बुरी नज़र रखने वाला कोई दुराचारी तुम्हारे पौरुष को देख थर्रा उठे, बोलो लड़ोगे मेरे साथ?” (फाइनली)
दस क्लीशै में ये एक दमदार dialogue मिलता है।
Music के नाम पर अजय-अतुल का ‘जय श्री राम’ में बस इतना ही, हुक लाइन, मस्त लगती है। इसके अंतरे सलाम रॉकी-भाई की याद दिलाते हैं।
बादबाकी ये फिल्म एक ही पार्ट में सबकुछ समेटने की बजाय तसल्ली से, कई भाग में बनाकर, या सीरीज़ की तरह लाकर, थोड़ा कम vfx लगाकर पेश की गई होती, तो मैं दोबारा देखने ज़रूर जाता।
अब मैं दोबारा कहीं भी देखने से बचूँगा क्योंकि ये ऑल्मोस्ट 3 घंटे की है, जिसमें देखने लायक सिर्फ आखिर के 40 मिनट हैं।
रिव्यू किसी काम का लगा हो तो शेयर करें, हो सके तो दो-चार विज्ञापनों पर उँगली रूपी तीर मार दें।
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June 16, 2023 @ 2:24 PM
रिव्यू अच्छा था। यह डायलॉग्स लिखने वाले अपने आप पर प्राउड कैसे कर सकते हैं आश्चर्य होता है। जबकि डायलॉग के लिए पूरी टीम होती है क्या किसी ने इनको नहीं बताया की ये बेहद फूहड़ और चीप लग रहे हैं। खैर जाने देते हैं। जब कोई यही नहीं बता पाया की प्रभास राम के रोल के लिए फिट नहीं हैं तो उसके आगे डायलॉग्स को कौन ही देखेगा। प्रभास ने पैसे देकर तो राम बनने की फरमाइश की नहीं होगी। जब प्रोड्यूसर के पैसे लगने ही थे तो साउथ के किसी और एक्टर को ले लेते जैसे चियान विक्रम और भी बहुत कुछ है कहने को इस फिल्म के लिए। शायद मेकर्स को समझ आए इन्हीं टिप्पणियों से इन्हीं रिव्यूज से। लेकिन उस लास्ट के चालीस मिनट के लिए हम भी देख आएंगे।
जय श्री राम ❣️
June 16, 2023 @ 3:37 PM
ज़रूर देखिए, अब तो टिकट हो ही गया होगा
June 16, 2023 @ 6:42 PM
वाह, बेहतरीन रिव्यू, पहली बार सहर का रिव्यू इतना पसंद आया, फिर भी स्टार या out of 10 marking छूट गई, अब edit मत करना, करोगे तो क्रेडिट दे देना मुझे
June 16, 2023 @ 7:07 PM
star Rating बीते कुछ महीनों से बंद है, स्टार देखकर भाग जाते थे कुछ बड़े भाई। बहुत धन्यवाद
June 19, 2023 @ 6:09 AM
Bahut badhiya
June 19, 2023 @ 11:45 PM
Thank you
June 20, 2023 @ 9:19 AM
आप कह रहे हो आखिरी के 40 मिनट ही अच्छे थे ज्यादातर लोग तो उसे भी घटिया ही बता रहे हैं उनका कहना है सब कुछ इतना डार्क है कि कुछ समझ ही नही आया कि चल क्या रहा है ऊपर से घटिया vfx वाले कार्टून टाइप क्रीचर्स
June 21, 2023 @ 12:57 PM
फॉलो-अप शॉट अच्छा बना है। तारीफ के काबिल है, भारत में ऐसे शॉट्स ले पाना ज़रा मुश्किल होता है।
June 16, 2023 @ 6:45 PM
Muntazir h wo , wo mummy nhi maa kahte h ✌️
June 16, 2023 @ 7:06 PM
hahahaa
June 19, 2023 @ 9:24 AM
सही कहा आपने, यहाँ खेल दूसरा ही खेला जाता है।
June 16, 2023 @ 2:50 PM
क्या ही बोले मुन्तशीर जी को.. हवा तो ऐसे मारते हैं जैसे वायुदेव के असली वारिस वही हो। ये आदमी भी मुझे पैसे के लिए कुछ भी करेगा टाइप लगता हैं। 😒
June 16, 2023 @ 3:37 PM
वो है कि मौकापरस्त, अवसरवादी
June 16, 2023 @ 3:03 PM
फिल्म पर अच्छी समीक्षा।
पौराणिक और ऐतिहासिक विषय वस्तु पर फिल्म निर्माण करना एक कठिन कार्य होता है, विशेष समझ की आवश्यकता और धैर्य चाहिए।
इस से तो अच्छा था फिल्म न ही बनाते।
धन्यवाद
– गुरप्रीत सिंह
श्रीगंगानगर, राजस्थान
June 16, 2023 @ 3:38 PM
बहुत अच्छा होता। कुमार विश्वास लिखते तो बढ़िया होता।
June 16, 2023 @ 3:13 PM
भाई,आप ने सब कुछ लिख ही दिया..अब कहने-सुनने को कुक कहाँ बचा?
अपन का तो सदा से ही ऐसी हाई प्रोफाइल फिल्मो से कोई सरोकार नही रहा…
इन मे कथ्य कम और मेलोड्रामा(अब तो vfs और आ गया) ज्यादा होता है..
बातबाकी,आप ने जबर्दस रिव्यू लिखा है.
June 16, 2023 @ 3:39 PM
सहमत।
June 16, 2023 @ 3:14 PM
समझ नहीं आता ऐसे डायलॉग्स लिखने के बाद आदिपुरुष को रिलीज भी कैसे किया! इतनी बड़ी टीम में से क्या किसी को यह नहीं लगा कि यह फिल्म नहीं बल्कि मीम्स का एक अच्छा खासा (वास्तव में अच्छा भी नहीं) कलेक्शन बना दिया है। खैर अब उन अंतिम चालीस मिनिट के लिए भी फिल्म देखने की इच्छा नहीं रही। बाकी, जय सियाराम।
June 16, 2023 @ 3:41 PM
रिस्क ले रहे थे…
June 16, 2023 @ 8:51 PM
Must watch, it’s modernized version of Ramayana.
June 18, 2023 @ 7:31 PM
आपके रिव्यु ने तो पूरी मूवी ही दिखा दी😊
अब तो वो 40 मिनट भी झेल पाना मुश्किल होगा । न देखूंगा, न देखने दूंगा😂😊
June 19, 2023 @ 11:45 PM
Thank you so much
June 18, 2023 @ 9:21 PM
अब तक का बेस्ट रिव्यू ।
June 19, 2023 @ 11:45 PM
Thank you so much
June 20, 2023 @ 4:41 PM
इस फिल्म के पढ़े दर्जनों रिव्यूज में बेस्ट रिव्यू। एकदम बाल की खाल वाला रिव्यू।
June 21, 2023 @ 12:56 PM
बहुत शुक्रिया
June 20, 2023 @ 5:57 PM
तो राघव को लोगों ने राम ही समझा है हजारीनाथ नहीं,जानकी को लोगों ने सीता ही माना मधुबाला नहीं, और शेष को भी लोगों ने लक्ष्मण ही माना मुंशी प्रसाद नहीं,,, आप कहना क्या चाहते हो,, फिल्म में इन्हें वास्तविक नाम नहीं दिया,, किसी फिल्म की बदनामी करनी हो तो ऐसे सैंकड़ों समीक्षाएं मैं करता ही रहूं सालों तक,, सोच का ही फर्क है तुम लोग भावनाएं आहत होने के नाम पर अपने ही देश के फिल्म निर्देशकों, और निर्माताओं का नुक़सान कराने पर तुले हो और मेरे जैसे लाखों लोग अपने देश की आर्थिक मजबूती के लिए देश में बनी फिल्मों का जोर शोर से प्रचार करने में विश्वास करते हैं
June 21, 2023 @ 12:56 PM
तुम ही वो सूरज हो दोस्त, जिसे हनुमान जी खा गए थे। बच के रहना, आदिपुरुष देखने के बाद फिर गदा लेकर घूम रहे हैं…