All India Rank, Varun Grover’s directorial debut film – Detailed Review (In Hindi)
Join Groups for the Latest Update: https://chat.whatsapp.com/KCxMMCPXgRYGEJyo32UFGE
Follow Our Channel: https://whatsapp.com/channel/0029VaAlMcu6GcGM3w8XDy1v
“जल्दी चलो पैरों में बताशे बँधे हैं क्या?”
लखनऊ से कोटा के लिए हफ्ते में बस एक दिन चलने वाली इस ट्रेन में घुसने के लिए एक बाप अपने उलझे हुए बेटे को हांक रहा है।
All India Rank की शुरुआत ही जुदाई से है। जहाँ इकलौता बेटा अपनी माँ के पैर तीन बार छू रहा है और माँ हाथ में ड्रिप और आँखों में आँसू लिए उसे विदा कर रही है। माँ जानती है कि बेटा अब जो गया वो कभी लौटकर नहीं आयेगा। ठीक वैसे ही जैसे यशोदा जानती थीं कि कृष्ण जो एक बार मथुरा गए, तो अब कभी लौटकर नहीं आयेंगे।
पर पिता की इमेज स्ट्रॉंग मैन की होती है, पिता रो नहीं सकता। पिता हँस नहीं सकता। पिता जाने से पहले गले नहीं लगा सकता और न ही लौट आने पर मुस्कुराकर स्वागत कर सकता है। जिस समय पिताओं का प्यार जताने का तरीका किचन में हेल्प कर देने, या जूते पोलिश करने से झलकता था; ये उस दौर की फिल्म है।
मैं IIT कोचिंग तो बहुत बड़ी बात, मैं कभी दोपहर वाले नॉर्मल ट्यूशन भी डेढ़ महीने से ज़्यादा नहीं गया। इसलिए फिज़िक्स और केमेस्ट्री को फार्मूलाज़ और सिंबल्स से समझने की बजाए मैं मानवीय एक्शन्स और ईमोशन्स से बेहतर समझने की कोशिश करता हूँ।
बहुत समय बाद एक ऐसा प्रोटैगनिस्ट देखने को मिला है जिसकी कोई डिज़ायर नहीं है। वो IIT नहीं करना चाहता, पर वो क्या करना चाहता है ये उसे नहीं पता। उसके दोस्त आज के दोस्तों और तब की फिल्मों के मुकाबले बड़े प्यारे, बड़े सॉफ्ट से हैं। एक लड़की है सारिका, जो 1998 में 2020 वाली ज़िंदगी जीने की कोशिश में है। सारिका की बातों से ऐसा लगता है कि उसने हाल ही में 3 idiots देखी है।
पर हम इन दोस्तों और कोचिंग से वापस लौटकर जब लखनऊ में सिंह दम्पत्ति के घर पहुँचते हैं तो हमें कहानी ज़्यादा सुरीली लगने लगती है।
आरके सिंह, विवेक के पिताजी बीएसएनएल में काम करते हैं, अपने ऑफिस के सदके उनकी पत्नी PCO चलाती हैं और घर संभालती हैं। आरके सिंह की डिज़ायर क्लियर है कि उन्हें अपने बेटे को IITIAN बनाना है। अपनी छोटी सी सरकारी नौकरी में वह मिडिल क्लास में डब्बे में बने रहने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि IIT वो टिकेट है जो उनके परिवार को सीधे एसी फर्स्ट में पहुँचा सकता है।
लेकिन कहाँ किसी को इतनी आसानी से स्वर्ग मिलता है।
फ़िल्म शुरुआत से लेकर इन्टरवल तक सेटअप में ही उलझाए रखती है। ईमानदारी से कहूँ तो जो कनेक्शन फिल्म के डायरेक्टर वरुण ग्रोवर को स्टेज पर एक नज़र देखते ही बन जाता है, वह रिश्ता फिल्म से इंटरवल के पहले तक तो स्थापित नहीं हो पाता।
पर इन्टरवल से बाद ऐसा लगता है जैसे कहानी अब शुरु हुई है। अब हम विवेक के साथ हैं, उनके दोस्तों के साथ जूस पी रहे हैं। लेट 90s में गर्ल्स हॉस्टल रूम में अपने दोस्त को बुलाने की हिम्मत करने वाली सारिका को समझने की कोशिश कर रहे हैं और सिंह दम्पत्ति पर गिरती एक के बाद मुसीबतों को हम अपने पर हुई दुश्वारी समझ रहे हैं।
विवेक बने बोधिसत्व शर्मा ने इस फिल्म के आखिर में बस एक स्माइल देकर जता दिया है कि आने वाले समय में एक ज़बरदस्त एक्टर बन के उभरेंगे।
सारिका बनी समिता सुदीक्षा बहुत प्यारी लगी हैं। एक्टिंग धीरे-धीरे परिपक्व होती जायेगी।
शीबा चड्ढा के लिए हम कह सकते हैं कि ये उनका कैमीओ रोल था।
लेकिन शशि भूषण की जितनी तारीफ की जाए कम है। फिल्म देखते समय आपको भले ही लगे कि ये कहानी विवेक की है पर नहीं, थिएटर से निकलने के बाद जब आप फिल्म सोचते हैं; तब आप पाते हैं कि कहानी तो आरके सिंह की है।
एक सीन है कि विवेक साल भर बाद घर आया है, मम्मी की तबीयत खराब है इसलिए पापा खाना बना रहे हैं, उनके गले पर छाती पर पसीना है। उसकी शक्ल पर दिख रहा है कि वो अपने बेटे से जी भर के बात करना चाहते हैं पर वो बस इतना कह पाते हैं कि खाना खा लो, उतना अच्छा तो नहीं है जितना तुम्हारी मम्मी बनाती है पर खाने लायक है।
ऐसे ही, अंत में अपने बेटे को समझाते हुए, दिलासा देते हुए उनका गले लगने के लिए आना पर फिर सकुचाकर कँधे पकड़ लेना, एक्टिंग की इन्टेन्सिटी दिखलाता है।
मैं यही बात गीता अगरवाल के लिए भी लिखना चाहूँगा कि परेशान होते स्ट्रगल करते बच्चे की बेस्ट माँ बनने के लिए उन्हें ऑस्कर मिलना चाहिए। मज़े की बात, ओह माय गॉड 2 में भी उनके बेटे का नाम विवेक ही था… इसमें एक लड़के के मुँह से अश्लील शब्द सुनने के बाद उनके भाव बदलना, या अपने बेटे से दूसरी बार कॉल पर बात करते समय उससे सच छुपाते हुए उनके हाथों का कांपना, acting को नेक्स्ट लेवल पर ले जाता है।
All India Rank का Writing Direction कुछ यूँ है कि
बहरहाल, actors ने फिल्म को अच्छे से बेहतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बात राइटिंग डिरेक्शिन की करें तो वरुण ग्रोवर ने बढ़िया production design टीम के सदके 1998 को बहुत खूबसूरती से दिखाया है। लुप्त हो चुकीं छोटी-छोटी चीज़ों का इतना ध्यान रखा है कि कुछ समय के लिए ऐसा लगता है जैसे हम टाइम-मशीन से ट्रैवल कर वहीं पहुँच चुके हैं।
पर कुछ जगह क्लोज़अप लेकर एलएमएल स्कूटर दिखाना, या चाइनीज़ चैकर के शॉट्स, या हेलमेट ही, ओवर लगे हैं।
मास्टरबेशन वाले सीन परिवार के साथ देखने गए बच्चों (खासकर लड़कियों) को ‘कुछ’ असहज कर सकते हैं। इस तरह से मास्टरबेशन का तरीका वरुण ग्रोवर ने एक बार एक स्टैन्डअप में सुनाया था। अगर ये इतनी डिटेल में, वो भी दो बार; न भी होता तो भी वरुण की ऑडियंस समझ जाती।
पर संवाद बहुत शानदार और विटी हैं, चाहें वो बाल्टी को लेकर बहस हो या केक पर क्या लिखवाया जायेगा इसपर चर्चा… चाहें वो सारिका का भैया और बॉयफ्रेंड पर टोंट करना हो या बुंदेला मैम का कहानियों के रएफेरेंस से फिज़िक्स पढ़ाना।
गीत-संगीत भी पूरे नंबर से पास हैं। नूडल सा दिल हो या अच्छी बातें हैं किताबों में… नॉट अ ड्रीम सुनिए या विशाल साहब की आवाज़ में ठहर ज़रा… सब कानों के लिए अमृत से गाने हैं। मुझे खुशी है कि ‘हलवाई’ ने अपने घर की शादी में मिठाई बनाने की excitement में मीठा ज़्यादा ‘नहीं’ किया है।
अब ओवरऑल फिल्म की बात करूँ तो All India Rank ऐसी है जिसे घर पर तसल्ली से बैठकर, अपने दोस्त या किसी खास के साथ, दो-बार, तीन-बार देखा जा सकता है। इसमें इन्टरवल की गुंजाइश ही नहीं है। ये फिल्म किसी बहुत बड़ी सीरीज़ का छोटा सा एपिसोड लगती है जो कब शुरु होता है और कब खत्म, पता ही नहीं चलता।
पर हाँ, ये ज़रूर है कि इसका अंत, जिसे ओपन एन्डिंग कहा जा सकता है; उसे थोड़ा समझें तो एक परफेक्ट क्लोज़र देता है। अगर आप All India Rank में विवेक की rank पता करने जा रहे हैं तो आपको 12th देखनी चाहिए।
अंत मैं इस नोट के साथ करना चाहूँगा कि वरुण ग्रोवर का पहला प्रयास बहुत सुंदर है, ये प्रयास एक लड़के के स्ट्रगल से कहीं ज़्यादा माता-पिता की तकलीफों को दिखाने का साहस करता है।
इस फिल्म के लिए चार्ली चैपलिन का वो फ़ेमस कथन कोट किया जा सकता है कि All India Rank लॉंग शॉट में हास्य है और क्लोज़अप में वेदना।
(review पसंद आए तो अपने दोस्तों यारों तक शेयर करें)