The whale की जितनी चर्चा अगर इसके लीड एक्टर की ही रही तो बिल्कुल सही है। हम ‘द ममी’ वाले जिस ग़ज़ब हैंडसम हीरो को जानते हैं, इसमें उसकी परछाई भी नहीं है। शनासाई का हल्का सा भी निशान नहीं।
हॉलीवुड की यह ख़ासियत रही है कि यहाँ के एक्टर्स रिस्क लेने से नहीं घबराते, एक्सपेरिमेंट्स से पीछे नहीं हटते, टॉप पर होकर भी अपनी कनवेंशल इमेज तोड़ने से नहीं हिचकिचाते। बदसूरत या निगेटिव/ग्रे शेड्स वाले किरदार भी कर डालते हैं, अगर दमदार लगें।
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फिर भी इसमें क्या ख़ास बात थी? ख़ास बात थी इसके हीरो ब्रेंडर फ्रेज़र का निजी जीवन। जिन्होंने ऐसी ही यंत्रणाओं से गुज़रकर एक तरह से दूसरी पारी ही नहीं शुरु की है, पुनर्जीवन ही मिला है।
भारतीय परिपेक्ष्य में देखें तो आमिर ख़ान ने इतने एक्सपेरिमेंट किये हैं अपनी बॉडी के साथ, गजनी की मस्क्युलर बॉडी, थ्री इडियट्स की लीन थिन बॉडी से लेकर दंगल की पहलवानी बॉडी, फिर अधेड़ वज़नी रिटायर्ड पहलवान। इन प्रयोगों की क़ीमत भी चुकानी पड़ती है।
ब्रेंडन के शब्दों में कहें तो उनका जीवन एनिमल फार्म के घोड़े जैसा हो गया था, बस काम, काम और काम (एनिमल फार्म-जॉर्ज ऑरवेल)। अपने समय के ग़ज़ब सुंदर, सुदर्शन, गठीले हीरो ने ख़ुद को काम में झोंक दिया था, इतनी लगन और पूरी तरह समर्पण का सिला यह मिला कि ख़तरनाक स्टंट और लगातार मेहनत के नतीजे में एक के बाद एक चोटें लगीं, सर्जरी हुईं, जिनके साइड इफेक्ट्स में न सिर्फ़ वज़न बढ़ा, मेंटल हेल्थ भी चौपट हो गई। पूरे सात साल तक अस्पतालों के दुष्चक्र में फंसे रहे और आउट ऑफ साइट, आउट ऑफ माइंड हो गए।
जब द व्हेल से शानदार कमबैक किया, तब उनकी स्ट्रगल स्टोरी लाइमलाइट में आई, वरना लोग बिसरा चुके थे। सबसे अच्छी बात यह है कि अब वे फिर से सक्रिय हैं, अच्छे शेप में हैं और लियोनार्डो डी कैप्रियो और रॉबर्ट डी नीरो जैसे लीजेंड्स के साथ ‘किलर्स ऑफ द फ्लॉवर मून’ में दिखने वाले हैं।
The Whale की छोटी सी कहानी
अब मूवी पर आएं, तो The Whale नाम Moby Dick (The Whale) नाम के प्रसिद्ध नॉवेल से लिया है।
2012 में सेम्युअल डी हंटर के इसी नाम के प्ले को डेरन एरॉनोस्की ने सिनेमाई मास्टरपीस में बदल दिया है। वही एरॉनोस्की जो ब्लैक स्वान, जिसमें नताली पोर्टमैन अपने उरूज पर हैं और requiem for a dream के लिये जाने जाते हैं।
द व्हेल में कुल जमा 6 किरदार हैं, जिनमें से दो बस एक-एक सीन में नज़र आते हैं, चार मुख्य हैं और एक ही लोकेशन, एक अपार्टमेंट में पूरी मूवी फिल्माई गई है। फिर भी यह पूरी तरह चार्ली (ब्रेंडन फ्रेज़र) की मूवी है। एली के किरदार में सैडी सिंक हैं, जिन्हें मैं स्ट्रेंजर थिंग्स की मैक्स के रूप में ज़्यादा पहचानती हूँ। लिज़ का क़िरदार फ़रिश्ता सिफ़अत है पर ब्रेंडन की परफॉर्मेंस सब पर भारी पड़ी है। मल्टीमिलियन डॉलर्स के बजट और CGI महँगे VFX के ज़माने में कहानी और एक्टिंग पर विश्वास रखकर फ़िल्म बनाना और उसे ऑस्कर फ़तह करते देखना सुखद है।
इस कहानी की थीम है, प्रेम को पा लेने से जन्मा भयंकर, जानलेवा अपराधबोध। नायक की ग़लती इतनी थी कि उसे प्रेम हुआ, शादीशुदा और एक बच्ची का पिता होते हुए भी। प्रेम तो किसी को भी, किसी से भी, कभी भी हो सकता है लेकिन उसने दुस्साहस किया समाज के एक नहीं, अनेक नियमों को तोड़ते हुए, प्रेम को अपनाने का। जिसकी वजह से उसकी पत्नी और बच्ची का जीवन भी नारकीय हुआ और प्रेमी का भी, जिसका जीवन नैतिक-अनैतिक, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य के अन्तर्दन्द्व की भेंट चढ़ गया।
The whale की कहानी एक इमोशनल रोलर कोस्टर की तरह है। इसे देखकर किसी भी संवेदनशील इंसान का अपनी भावनाओं, अपने आँसुओं पर क़ाबू पाना मुश्किल है।
The Whale एक रूपक है, बिम्ब की तरह प्रयुक्त हुआ है। एक भीमकाय शरीर, इतना जानलेवा मोटापा कि अपनी जगह से हिलना मुश्किल, बिन सहारे खड़े होना मुहाल, दिल भी काम करना छोड़ता जा रहा है, शरीर साथ नहीं दे रहा। और अंदर है एक कोमल मन, जो हर तरफ़ से पश्चात्ताप में भरा है, अच्छे पति, पिता का फ़र्ज़ न निभा पाना, प्रेमी को खो देना, उसकी मौत के लिये ख़ुद को दोषी मानना। सतत डिप्रेशन में खाते रहने और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही से मृत्यु की कगार तक पहुँच जाना।
The Whale का दूसरा बिम्ब Moby dick नॉवेल की व्हेल है। एक पैसेज जो वह हमेशा सम्भालकर रखता है, जो उसके दिल के सबसे क़रीब है, जब भी उसे लगता है, वह मरने वाला है, इसे ही पढ़ता है।
“एहब एक पैर वाला पाइरेट है, जिसका पूरा जीवन मोबी डिक नाम की व्हेल को मारने के अभियान में बर्बाद हो रहा है। उसे ऐसा लगता है कि व्हेल को मारकर उसे ख़ुशी और संतुष्टि मिलेगी, जबकि ऐसा नहीं है। उसने व्हेल को मार भी दिया तो कुछ नहीं बदलेगा। व्हेल को तो पता ही नहीं है, कोई उसे मारना चाहता है क्योंकि व्हेल तो बस एक बड़ा समुद्री प्राणी है।
सबसे ज़्यादा दुःख मुझे तब हुआ, जब मैंने व्हेल्स के बारे में लिखे लम्बे अध्यायों को पढ़ा। लेखक बस हमें अपनी असली दुःख भरी कहानी से दूर रखने का प्रयास कर रहा था, बस थोड़ी देर के लिये।”
इस फ़िल्म का मुख्य किरदार है चार्ली, जो अपनी किशोरवय बेटी एली से अपने सम्बन्ध सुधारना चाहता है। वह ऑनलाइन इंग्लिश क्लासेस लेता है पर हमेशा कैमरा बन्द रखता है ताकि उसकी शारीरिक स्थिति का किसी को पता न लगे। उसके जीवन में एकमात्र शुभचिंतक और सच्ची दोस्त है लिज़, जो उसकी नर्स भी है। उनके बीच अनकंडीशनल दोस्ती का बॉन्ड है। चार्ली को लगता है कि वह किसी की ज़िंदगी का हिस्सा होने लायक़ नहीं है, लोगों को उसे देखकर घिन आएगी, जुगुप्सा होगी, उसे प्रेम करना तो बहुत दूर की बात। इसलिये उसका तकिया कलाम ‘आई एम सॉरी’ बन चुका है, हर बात में सबसे पहले मुँह से निकलता है। उसके लिए किसी का कुछ भी करना उसे कृतज्ञता से भर देता है। लिज़ जैसे क़िरदार भरोसा मज़बूत करते हैं कि इंसानियत बची रहेगी।
उसकी टीन एज बेटी पढ़ाई में फिसड्डी, बिगड़ैल, बदतमीज़, स्वार्थी और लालची है। पर चार्ली यह स्वीकार नहीं करना चाहता। वह कहता है,
“मनुष्य न चाहते हुए भी एक-दूसरे की परवाह करते हैं। मेरी बेटी बहुत अच्छी है, मेरी ज़िन्दगी में हुई एकमात्र अच्छी घटना उसका जन्म है, पर मैं उसका पिता कहलाने योग्य नहीं। मोबी डिक के पैसेज में उसी के जीवन की झलक है।”
एक महत्त्वपूर्ण क़िरदार थॉमस नाम के युवा मिशनरी का है, जो न्यू लाइफ चर्च के लिये काम करता है। धर्म का प्रचार करता है और चार्ली की मदद करना और उसका उद्धार करना चाहता है। थॉमस के बहाने धर्म के जाल में बुने पाखण्डों पर तार्किकता से प्रहार किया गया है, लेकिन बिना आक्रामक हुए एकदम शांत, सौम्य, संयत तरीक़े से इस तरह कि पता चलता है कि मदद की ज़रूरत तो मदद का प्रस्ताव देने वाले को है, उद्धारक का ही उद्धार हो जाता है।
“तुम लोगों ने अपने बारे में कुछ पूरी ईमानदारी से लिखा। जो लिखा है, यही ईमानदारी असल सार है, जो तुमने मुझसे सीखा है बस।” अपने छात्रों को चार्ली का यही सबक़ होता है।
कुल मिलाकर मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज, जहाँ प्रेम का महिमामंडन तो किया जाता है, काल-देश-धर्म की सीमा से परे लेकिन प्रेम निभाना और उससे भी बढ़कर, प्रेम को पा लेना, हर जगह निषिद्ध है, वर्ज्य है, पाप है।
समाज बस त्याग और बलिदान चाहता है आपकी इच्छाओं, सपनों और चाहनाओं का क्योंकि उसी पर इसकी नींव टिकी है। जो इससे इन्कार कर अपने मन की सुनते हैं और जो चाहते हैं, वह पा लेते हैं, उनको फिर जीवन भर अपराधबोध से ग्रस्त रखने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा जाता। इतना नरक मचा दिया जाता है कि जीवन बोझ लगने लगे, वह हमेशा पश्चात्ताप में घिरा रहे और दूसरा कोई उस रास्ते चलने की सोचे भी न। कैसे एक इंसान को धीमे ज़हर की तरह मौत की तरफ़ ढकेला जाता है फिर उसको सुसाइडल टेंडेंसी कहकर विक्टिम ब्लेमिंग की जाती है, यह उसका भी उदाहरण है।
इस पर बात और भी लम्बी हो सकती है, फ़िलहाल इतना ही।