PS यानी पोनियिन सेलवन का ट्रैलर देखकर ही जवाँ दिलों की वीर धड़कनों ने इसे बाहुबली सीरीज़ से कंपेयर करना शुरु कर दिया होगा। ऐसा हो भी क्यों न, दादा राजामौली ने ऐसा milestone बनाया है कि आने वाले 50 सालों तक सिनेमा में जब भी कोई periodic war फिल्म बनेगी, तो उसकी तुलना बाहुबली से ज़रूर होगी।
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बाहुबली भले ही हज़ार दो-हज़ार करोड़ कमाने वाली फ्रेंचाइज़ हो पर एक मामले में PS series बाहुबली से कहीं आगे है। और वो है इसकी कहानी + स्क्रीनप्ले।
कल्कि कृष्णमूर्ति के एतिहासिक नॉवेल सीरीज़ पोनियिन सेलवन से इन्सपाइर इस सीरीज़ के दूसरे पार्ट की शुरुआत ही पिछले पार्ट के एक राज़ खुलने से होती है।
PS सीरीज़ में मिलता है चोला साम्राज्य का इतिहास
PS-1 की बेहद उलझी कहानी में जो चीज़े clear थीं वो ये थीं कि – सुंदरचोला यानी प्रकाशराज बीमार है, उसके दो बेटे – आदित्य करिकलन (चियान विक्रम) और अरुणमोजी वर्मन (जयराम रवि) दोनों शूरवीर हैं, पर बड़ा बेटा सिर्फ इधर-उधर खून-खच्चर कर राज्य हड़पना चाहता है, उसे थ्रोन पर बैठने में कोई इन्टरेस्ट नहीं, क्यों नहीं?
क्योंकि, वो बचपन में छोटी नंदिनी (Sara Arjun) को प्यार करता था पर उसके पिता ने अनाथ बच्ची से युवराज की शादी करवाने की बजाए, अनाथ नंदिनी को शहर से निकाल दिया। वो लड़की वीरपाण्ड्या के द्वारा पाली गई और बड़ी होकर ऐश्वर्या राय बच्चन बन गई, जब आदित्य ने वीर-पाण्ड्या को वीरगति दे दी, तो बाप समान वीरपाण्ड्या की मौत का बदला लेने के लिए नंदिनी ने चोल साम्राज्य के ही बूढ़े कोशाअध्यक्ष पेरिया पाज़हूवेत्तरईयार से शादी कर ली और भारी-भारी गहने पर कर conspiracy करने लगी।
ये जो कोशाअध्यक्ष का नाम आपने पढ़ा, अगर पढ़ा तो; इसे लिखने में मुझे 120 seconds लगे और पढ़ने में पूरे 300, याद मुझे अभी भी नहीं हुआ। शायद इस तमिलियन क्लिष्ठ डिक्शनेरी की वजह से ही पहले पार्ट से नॉर्थ इंडियन्स कनेक्ट नहीं हो पाए और PS-2 देखते वक़्त मुझे थिएटर में कुल 5 लोग मिले।
वर्ना जैसे बाहुबली प्रथम के एंड में यक्ष प्रश्न बना था कि – कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?’
वैसे ही पोनियिन सेलवन 1 के अंत के बाद हल्ला मच सकता था कि ‘पोनियन सेलवन को आखिर किसने बचाया?’
जबकि सेकंड पार्ट की बात करूँ तो ये पहले से ज़्यादा तेज़, रोमांचक और कॉनसपिरेसीज़ से लबालब भरा पड़ा है। इसमें वीरपाण्ड्या के लड़ाके ठीक वैसे ही चोला डाइनेस्टी को तंग कर रहे हैं जैसे हार्दिक पाण्ड्या चेन्नई सुपरकिंग्स को। चोला में भी ये पाण्ड्या लोग खास आदित्य कनिकलन उर्फ चियान विक्रम के खून के प्यासे हैं।
लेकिन जो लोग सिर्फ चियान विक्रम की वजह से PS-1 या 2 देखने की सोच रहे हैं, वो निराश हो सकते हैं क्योंकि सारे मुख्य कलाकारों में, विक्रम का रोल सबसे कम है। हालाँकि असरदार है। किसी भी कलाकार को क्रूर दिखाने के लिए हाथ में तलवार, मुँह पे खून के छींटे, बेतरतीब हुलिया लगता होगा लेकिन विक्रम के पास उनके बेहिसाब expressions ही काफी हैं।
हर एक सीन, जिसमें विक्रम हैं, उसमें छाए रहे हैं। हाइट कम होने के बावजूद उन्हें सबसे खतरनाक अजय योद्धा का रोल मिला है और वो लगे हैं।
वहीं देवी ऐश्वर्या राय बच्चन ग्लिसरीन डाल आँखें लाल किए पहले पार्ट के मुकाबले कम असरदार रही हैं। शायद डबल रोल के चलते, उनपर से फोकस भी कम हुआ है क्योंकि इस पार्ट में सारा फोकस पेनियिन सेलवन यानी जयराम रवि पर रहा है। अपने दूसरे रोल में वह kung-fu monkey बनी इतनी उछलकूद करती नज़र आई हैं कि दूर से पता लग जाता है ये body double है। पर उनके expression बहुत बहुत अच्छे लगे हैं। फिल्म में ऐश्वर्या के रंगरूप की इतनी भर-भर तारीफ़ें हैं कि यहाँ करने के लिए कुछ नहीं बचा है।
जयराम रवि ने शानदार acting तो की ही है, संग उनका look भी बेहद खूबसूरत, बेहद प्रभावशाली रहा है।
कारथी PS-1 में सबसे ज़्यादा स्क्रीनटाइम लेने वाले कलाकार थे, इस बार भी वो पीछे नहीं हैं। तकरीबन हर फ्रेम में नज़र आए हैं और पिछली बार की ही तरह, अच्छे लगे हैं।
तृषा तो सच में राजकुमारी ही लगती हैं।
तृषा और कारथी का इकलौता साफ-सुथरा प्रेम प्रसंग सौ kissing scenes पर भारी है।
बाकी नंबी बने जयराम (हिन्दी में इनको मनोज जोशी ने आवाज़ दी है जो बिल्कुल फिट बैठी है), पूर्णिमा बनी ऐश्वर्या लक्ष्मी, रविदास बने किशोर कुमार G, आदि सभी ने अच्छा काम किया है।
शायद PS-1 के रिव्यूज़ के बाद मणिरत्नम ने PS-2 की रफ्तार तेज़ करते हुए कॉनफ्यूज़न को कम किया है। स्क्रीनप्ले (अगर समझ आ जाए तो) बहुत शानदार रचा गया है। interval तक एक-एक फ्रेम सस्पेंस से भरा है।
दिव्य प्रकाश दुबे के लिखे हिन्दी संवाद इतने भारीभरकम नहीं हैं कि समझ ही न आयें। लेकिन साथ ही समय/काल का ध्यान रखते हुए संवादों में उर्दू या अंग्रेज़ी की रत्ती भर भी मिलावट नहीं मिलती। सबसे बड़ी बात, dialogues tamil to hindi translation नहीं लगते, ये शायद सबसे बड़ा अचीवमेंट हो वर्ना दक्षिण भारत की बहुतायत अच्छी फिल्में सिर्फ इसलिए नहीं देखी जाती हैं कि उनकी डबिंग और dialogues, बहुत दोयम दर्जे के होते हैं।
अब इन सब तारीफ़ों के बँधे पुल में कहीं दरार नज़र आती है तो वो बस action scenes हैं। Periodic wars में जिस लेवल का एक्शन हम अबतक देख चुके हैं, ये फिल्म उसके आसपास भी नहीं पहुँचती है। कोई स्ट्रेटेजी, कोई ट्रिकी कैमरावर्क देखने को नहीं मिलता, आखिरी युद्ध को बहुत बेहतर किया जा सकता था पर वो फॉर्मैलिटी सा प्रतीत होता है।
रहमान साहब की बात करें PS-1 के मुकाबले PS-2 में BGM बहुत शानदार है।
सिनिमटाग्रफी भी शानदार है, रवि वर्मन ने तृषा और कारथी के सीन में तो कमाल ही कर दिया है। लोकेशन्स तो PS-1 से सुंदर थी हीं, सेट भी बेहद शानदार है। Production Designer Thotta Tharani की मेहनत साफ दिखती है।
अंततः श्रीकर प्रसाद ने इस फिल्म को ऐसी सफाई से काटा है जैसे कोई दक्ष फ्रूटवाला अनानास काटता है। फिल्म ढाई घंटे से ऊपर होकर भी बोर नहीं लगती।
ये रिव्यू इस disclaimer के साथ खत्म करता हूँ कि अगर PS-1 पसंद आई थी (या कम से कम समझ आई थी) तो PS-2 बहुत शानदार लगेगी। हो सकता है क्लाइमैक्स से दिल न भरे क्योंकि फिल्म भंसाली साहब ने नहीं बनाई है कि हिस्ट्री की ऐसी-तैसी फेरकर ट्विस्ट पर ही फोकस रहे; पर ओवरऑल फिल्म देखकर निकलेंगे तो टिकेट के साथ-साथ 120 रुपये के 2 समोसे खाने का भी अफसोस नहीं रहेगा।
हाँ और बेहतर हो सकती थी, पर जितना मिला मज़ेदार रहा।
Manav Kaul की Titali उड़ते-उड़ते धक गई (Book review)
April 29, 2023 @ 5:27 PM
Sir ps1 to dekha hai usse jyada aapane achcha review likhkar Diya hai ab a PS2dekhne ki utsukta hai
Web series dekhne se achcha aapka review padhna accha lagta hai
April 30, 2023 @ 12:30 PM
thank you so much