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दर्द के चलते जागते हुए ये बीती ये पाँचवीं रात है।

इस हफ्ते की शुरुआत बहुत बढ़िया हुई थी। कुछ एक positive news मिली थीं। लेकिन सोमवार दोपहर से ही चेहरे के दाहिने तरफ हल्का-हल्का दर्द होना शुरु हो गया था।

कोढ़ में खाज, मुझे उस वक़्त पानी की बजाए कोला पीने में मज़ा आ रहा था। रात तक स्थिति गौतम की बजाए गंभीर होने लगी थी, पर ज़्यादा फुटेज देना ज़रूरी न समझा। खुद ही खाना बनाया पर आधे पेट उठ गया, reason हालाँकि दाढ़ का दर्द था, पर कह दिया ‘मन नहीं है।‘

रात 2 बजे तक तो काम किया, इसके बाद सोने की कोशिश की तो दर्द और बढ़ने लगा। जैसे-तैसे करवटें बदलते सुबह के पाँच बजे तो AC बंद किया और फिर सोने की कोशिश की। पर न जी, अच्छी खासी नींद भी भयंकर दर्द के सामने घुटने टेकने लगी।

जैसे इश्क के सात मुकाम होते हैं, ऐसे दर्द के भी 4 तो होते ही होंगे।

पहला पिन्च दर्द, इसमें दर्द बस एक पिन चुभने जैसा होता है, हुआ और गया! सिम्पल

दूसरा मीठा दर्द, इसमें दर्द तो रह-रहकर उठता है पर तंग नहीं करता, बल्कि मज़ा आता है। अग्रेज़ी फिल्में या हिन्दी ott देखने वाले तुरंत समझ सकते हैं।

तीसरा होता है ज़ूम-ज़ूम दर्द, इसमें दर्द एक वेव की तरह होता है। ये कई बार सिर में होता है तो कई बार पेट में होता है। या, कहीं हल्की-फुल्की चोट को इग्नोर करने पर जब पस भर जाता है; तब भी ये ज़ूम-ज़ूम दर्द ही होता है।

इसके बाद आता है भयंकर दर्द।

इसकी खासियत ये है कि ये रुकता नहीं है। ये सांप-सीढ़ी का बोर्ड पढ़कर निकला होता है कि ‘रुकना तेरा काम नहीं, चलना तेरी शान’। हड्डी टूटे में यही दर्द होता है। इसी दर्द के लिए मॉर्फीन जैसी दवा बनी हैं। यही वो दर्द है जिसकी फ्रीक्वेनसी बढ़ने पर आदमी ब्लैक-आउट कर जाता है।

यही वो दर्द है जो मुझे हो रहा है। मंगलवार सुबह कब सोया ये याद नहीं पर 11 बजे उठा तो एक तरफ का गाल सूजा हुआ था। मुँह मेट्रिक्स के मिस्टर एंडरसन जैसा हो गया था, खुलकर राज़ी नहीं था।

जैसे-तैसे गर्म पानी पिया। दिन में कुछ ज़रूरी कॉल करनी थी, उसके लिए हिम्मत जुटाई। अब भसड़ ये भी हो गई कि मैं अपना सम्पूर्ण एफर्ट देकर पूरा डाइलॉग बोल जाऊँ, पर सामने वाला समझ ही न पाए तो कैसा रहे?

मैं बोलूँ “बस यही वजह थी कि मैं चाहता हूँ कि अबकी जो लॉट प्रिन्ट होना है उसमें हम फलाने-ढिमाके पॉइंट्स का भी ध्यान रखें”

सामने से जवाब मिले “hain?”

क्योंकि सामने वाले को जो संभवत सुनाई दिया वो था “बसयसंसमस चाह लत हुनहुँहक्क बक्क फुर्र कुर्र धम-धम पोत रख”

वो बिचारा मन ही मन रीक्वेस्ट करे कि भाई सिद्धार्थ गुटका तो थूको, यहाँ सिद्धार्थ थूक निगलने-थूकने पर दर्द से कराह उठता है।

बस मेरे माँ जाये भाई को एक सेंटेन्स भी दोबारा पूछने की ज़रूरत न पड़ी। कुछ हद तक 10 दिसम्बर वाले दो मित्रों को भी बाकियों की तुलना में ‘hain-hain’ नहीं करना पड़ा, संभवतः वो मेरे उच्चारण से ज़्यादा अपने कॉमन सेंस से समझ रहे थे कि मैं क्या बक रहा हूँ।

मंगलवार की रात मैं एक चौथाई खाना भी न खा सका। सिर्फ दूध था जो बिना हुज्जत के मेरा मुँह एक्सेप्ट कर रहा था वर्ना एक रोटी खाने में 20 मिनट से ज़्यादा समय और कलेजा फाड़ दर्द इन्वेस्ट हुआ था।

अब फिर लंबी चौड़ी रात मुँह बाये खड़ी थी। तीन बजे तक करवटें बदलते-बदलते जब नहीं सहा गया, तब फिर भाई ने नमक वाला गर्म पानी दिया। लौंग दी, और वो 4 बजे सो गए। मैं कमरा बदलकर पंखा बंद करके लेट गया, कोई छः बजे नींद आई।

अगली सुबह सूजन सोनू सूद के डोले जैसी फूल गई, दर्द के चलते बुखार हो गया, सिर और गले ने दाढ़ के सपोर्ट में धरना दे दिया कि ऐसे कैसे बीसी, हम भी तंग करेंगे।

पेन किलर न खाने की मैंने कसम खाई थी, पैरासिटामॉल मैं जबतक हो सके अवॉइड करता हूँ।

इसलिए दर्द से जूझने का best उपाये यही लगा कि बुद्धवार आराम किया और बृहस्पतिवार को मीटिंग्स करने चला गया। काम करते रहो तो तकलीफ हल्की हो जाती है। यहाँ जम के बोला, भगवान जाने सामने वाले ने क्या समझा पर काम बन गया।

4 दिनों से डाइट एक चौथाई रह गई है, इसके चलते weakness महसूस हो रही है। मैं इतना बोलने वाला प्राणी, पूरे दिन में 100 सेंटेन्स नहीं बोल रहा हूँ, इसका दुख अलग सताये जा रहा है। गला भी शायद अंदर-अंदर छिल गया है, अब नमक वाला पानी भी तकलीफ दे रहा है।

डॉक्टर का कहना है कि दवा लोगे तो जल्दी ठीक होगा, नहीं तो सेल्फ रिकवरी आज नहीं कल, हो ही जायेगी, (उससे हमें क्या मिलेगा?) । सुबह 4 बजे जब भयंकर दर्द हुआ तो सोचा एक पेन किलर ले ही लेता हूँ, पर गर्म पानी लेकर कमरे में आ गया।

इस बीच एक बालिका बता रही है कि सर मेरे 90% आए हैं, पर मैथ में 80% ही रह गए। क्या करूँ? अफसोस हो रहा है!

मेरा मन कर रहा है कि बोलूँ “बच्चे अपनी हेल्थ का ख्याल रख, फिटनेस 99% पर्सेन्ट पर रख, रात भर पढ़ती रहती है, डेढ़ फिट की क्यूट फुटबॉल लगने लगी है, पहला सुख निरोगी काया होता है बेटा, जा जाकर रस्सी कूद किसी को मार के भाग किसी कुत्ते के आगे दौड़”

पर नहीं, इतना ही लिखा उसको कि “कोई बात नहीं, 80% भी कम नहीं होते, ढाई बच्चे पास हो सकते हैं इसमें”

वो भी बिचारी पगलैठ समझकर offline हो जाती है।

इधर दाँत दर्द फिर online हो जाता है। ये तजुर्बा भी मज़ेदार चल रहा है, दर्द से जुड़े ऊटपटाँग गाने याद आने लगते हैं तो खुद ही हँस देता हूँ, हँसता हूँ तो और दर्द होने लगता है। कल को किसी कैरेक्टर के लिए ये experience बहुत काम आने वाला है।

“दर्द दाँतों के कम हो जाते, मैं और तुम गर हम हो जाते”

“दर्द में भी ये लब मुस्कुरा जाते हैं, बीते फूड ब्लॉग हमें जब भी याद आते हैं”

“जबड़ा टूटा है और दाँत नहीं चलता है, हाँ थोड़ा दर्द हुआ, पर चलता है..”

And so on and on and on…

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ 


सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

मैं सिद्धार्थ उस साल से लिख रहा हूँ जिस साल (2011) भारत ने वर्ल्डकप जीता था। इस ब्लॉगिंग के दौर में कुछ नामी समाचार पत्रों के लिए भी लिखा तो कुछ नए नवेले उत्साही डिजिटल मीडिया हाउसेज के लिए भी। हर हफ्ते नियम से फिल्म भी देखी और महीने में दो किताबें भी पढ़ी ताकि समीक्षाओं की सर्विस में कोई कमी न आए।बात रहने की करूँ तो घर और दफ्तर दोनों उस दिल्ली में है जहाँ मेरे कदम अब बहुत कम ही पड़ते हैं। हालांकि पत्राचार के लिए वही पता सबसे मुफ़ीद है जो इस website के contact us में दिया गया है।

3 Comments

  1. Prince Himanshu
    July 23, 2022 @ 11:11 AM

    Dard ko apna gulam bnao har dard kam ho jayega bhaisahab 😄

    Reply

  2. Pragati Raj
    July 24, 2022 @ 2:57 PM

    ये दर्द काहे खत्म नहीं होता है रे!

    Reply

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