कुँवरी संयोगिता और अजमेर के नरेश पृथ्वीराज के बीच चिट्ठी पत्री से ही, प्यार इश्क और मुहब्बत चल रहा है, यहाँ तक तीन गाने भी हो चुके हैं –
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भारत में, खासकर राजपूत शूरवीरों पर कोई भी अच्छी फिल्म बनाना almost impossible है क्योंकि कुछ सेनाए हैं, जो आज़ादी के 75 साल बाद भी आपको आज़ादी से फिल्म नहीं बनाने दे सकतीं।
कहानी शुरु होती है गज़नी अफगानिस्तान से जहाँ Prithviraj Chauhan की आँखें निकाली जा चुकी हैं, उन्हें एक बड़े से मैदान में शेरों के सामने डाल दिया है और Prithviraj Chauhan उन तीनों शेरों पर भारी पड़ रहे हैं। पृथ्वीचंद भट्ट (सोनू सूद) बैकग्राउन्ड में गाना गा रहे हैं।
यहाँ Prithviraj ग़ोरी को चुनौती देते हैं कि बिना आँखों के भी जो चाहे उनसे लड़ सकता है। फिर बेहोश हो जाते हैं और पृथ्वीचंद भट्ट जेल में उनकी सेवा करने लगते हैं तभी सम्राट के मुँह से संयोगिता नाम निकलता है।
कहानी फ्लैशबैक में पहुँचती है। यहाँ कन्नौज की कुँवरी संयोगिता और अजमेर के नरेश पृथ्वीराज के बीच चिट्ठी पत्री से ही, प्यार इश्क और मुहब्बत चल रहा है। यहाँ तक तीन गाने हो चुके हैं, जिसमें टाइटल वाला – हरिहर-हरिहर-हरिहर – ही दमदार है।
अब कहानी में ट्विस्ट आता है, मोहम्मद ग़ोरी का भाई एक हिन्दू नाचने वाली को भगा ले जाता है और Prithviraj की शरण में आता है। काका (संजू बाबा) समझाते भी हैं कि गोरी और उसके भाई में कोई फ़र्क नहीं, इन-शॉर्ट वो कहना चाहते हैं कि मुस्लिम्स पर भरोसा नहीं कर सकते।
पर prithviraj chauhan उस वक़्त के सेक्यलर बनकर उभरते हैं और कहते हैं नहीं, मैं तो उसे बचाऊँगा, औरत की इज़्ज़त होती है, प्यार अंधा होता है, (दर्शक पगले होते हैं) मेरा धर्म मुझे शरण में आए की रक्षा करना सिखाता है, वो नाचने वाली है तो क्या हुआ, उसकी भी इज़्ज़त है।
अब जंग शुरु होती है और….. और और और…..
ये जो भी कुछ बताया मैंने, वो सब पहले आधे घंटे-40 minutes में हो जाता है। बचे 20 minutes में जयचंद (आशुतोष राणा) आता है। ये पहला कैरेक्टर आता है जिसकी प्रेसेंस में दम दिखता है।
डायरेक्टर -राइटर – डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी बहुत थोड़े समय में बहुत कुछ दिखाने की कोशिश में भटके से लग रहे हैं। इन्टरवल तक ग़ोरी, संयोगिता और जयचंद के बीच पृथ्वीराज के उलझने-सुलझने तक स्क्रीनप्ले कसा हुआ है। मात्र एक घंटे में आया ब्रेक फिल्म से बड़ी उम्मीदें बांधने लगता है।
पर इन्टरवल के बाद संयोगिता से शादी, उसके संग गाना, उसके हक़ की लड़ाई, वुमन इम्पाअर्मन्ट, धोखा, शेर, तीर, टकले सोनू सूद आदि सब मिलकर दिमाग का दही कर देते हैं। स्क्रीनप्ले अपना असर छोड़ देता है, गुस्से में इधर-उधर निकल जाता है, सपोर्ट रहता है तो बस dialogues का, द्विवेदी जी ने वो एक से बढ़कर एक लिखे हैं, मुलाहजा फरमाइए
“विधाता को भी जब मदद की ज़रूरत होती है तब वो माँ को पुकारते हैं”
(क्या राजा सच सुन सकेंगे?)
Prithviraj – “जो सच सुन न सके व सच कहने वाले का सम्मान और रक्षा न कर सके, वो राजा ही नहीं”
(आपको ऐसा क्यों लगता है सुल्तान की हम जंग नहीं जीत सकते?)
“क्योंकि हमारे पास वाजिब वजह नहीं है। जो हमारे लिए ज़मीं का टुकड़ा भर है वो उनके लिए मादरे-वतन है। जो हमारे लिए लूट है वो उनके लिए आबरू….”
बाकी राजपूतों के मुँह से इतनी उर्दू बुलवाई है द्विवेदी जी ने कि हज़म नहीं होती। गानों में तो भाषा शैली बिल्कुल लेटेस्ट हो जाती है। भाषा पर और काम किया जा सकता था।
कहने को फिल्म 1190 का समय दर्शाती है लेकिन हर कलाकार की हेयरस्टाइल लैटस्ट जावेद हबीब बनी हुई है। प्रापर सेट की हुई कलमें मुझे तो बहुत अखर रही थीं।
एक्शन सीन अच्छे डायरेक्ट हुए हैं, पर कोई स्ट्रेटेजिकल वॉर नहीं दिखाई गई, यहाँ राइटिंग की कमी खलती है। (जैसे बाहुबली में बाकायदा दिखाया था कि बाहु किस तरह से हथियार यूज़ करता है, कौन सा व्यूह रचते हैं)
एक्टिंग के मामले में अक्षय ने बहुत निराश किया है। सबसे बड़ी समस्या तो उनकी काया है, यूँ लग रहा था कि पृथ्वीराज चौहान डाइटिंग पर थे। दूसरा उनकी dialogue delivery बिल्कुल दिल्ली वाली लगती है। वो चौहान को ‘चोहान’ बोलते हैं। हेवी dialogues चबाने लगते हैं।
वहीं आशुतोष राणा का छोटा रोल होते हुए भी, उन्होंने मौज करा दी है। राजस्थानी टच हिन्दी, फ्लूअन्ट dialogues, अंगारे बरसाती आँखें और गुस्से में कांपती हुई body, वाह! अगर आशुतोष राणा सिर्फ dialogues की classes लगाने लगें, तो सीखने वाला बड़ा हीरो बने न बने, बड़ा actor ज़रूर बन जायेगा।
घोरी बने मानव विज ने भी बहुत शानदार acting की है। वाह-वाह किरदार निभाया है। शांत, क्रूर, कपटी प्लस कमीने किस्म का ये कैरक्टर मानव के लिए ही बना था।
सोनू सूद जितना बेहतर कर सकते थे उन्होंने किया। उनको अच्छे अच्छे dialogues मिले हैं, सो उनका रोल भी जस्टफाई हुआ।
संजय दत्त को अब action फिल्मों से तौबा कर लेनी चाहिए। वो चिल्लाते तो बहुत ज़ोर से हैं पर तलवार चलाने के लिए स्लो-मोशन का सहारा लेना पड़ता है। dialogue delivery उनकी भी अच्छी है। बस वो सोनू सूद को पूरी फिल्म में ओ भट्टवे क्यों कहते रहते हैं ये समझ नहीं आता।
साक्षी तंवर की acting भी बढ़िया है। रोल कम है लेकिन अच्छा है।
मानुषी छिल्लर बहुत सुंदर भी लगी हैं, उनकी acting भी अच्छी है और उनका character भी बहुत powerful है।
मनोज जोशी सुरप्राइज़ पैकेज हैं, कुल जमा ढाई सीन मिलने के बावजूद वो पूरी फिल्म घुमा देते हैं। dialogues तो मैंने बताया ही, दमदार हैं। दिग्विजय रोहिदास उर्फ चामुंड राय की acting बहुत ज़बरदस्त है।
शंकर जयकिशन का म्यूजिक भी अच्छा है। खासकर गौड़पुर किले में छिड़ी वॉर के समय महिषासुर मर्दिनी बजना रोंगटे खड़े कर देता है।
VFX और कैमरा अच्छा है। मानुष नंदन ने अच्छे शॉट कैप्चर किये हैं। आर्ट डिरेक्शिन भी अच्छा है। सेट बढ़िया लगाया है पर भव्यता की कमी लगती है। ग़जनी के सीन छोड़कर कहीं भी, अजमेर या दिल्ली, विशालकाय सेट देखने को नहीं मिला है। वॉर सीन अच्छे शूट हुए हैं।
एडिटिंग में ढेर कमिया हैं, पर वो स्पॉइलर हो जायेंगी, लेकिन इतना ज़रूर जानिए कि सम्राट Prithviraj Chauhan जैसी लार्जर देन लाइफ कैरेक्टर की गाथा मात्र 2 घंटे 10 minutes में तो खत्म नहीं होनी चाहिए थी। इतनी छोटी अवधि में भी, romantic गाने फिलिंग जैसे लगते हैं, मानों स्क्रिप्ट छोटी पड़ रही थी।
कुलमिलाकर पृथ्वीराज चौहान बड़े पैकेट में हल्का धमाका है। अक्षय कुमार ने रोल के लिए शायद बहुत मेहनत की हो पर समय नहीं दिया। कल ही उनकी facebook पोस्ट थी कि फिल्म को बनाने में चार साल लगे हैं, पर इन चार सालों में अक्षय ने 16 फिल्में कर ली हैं। वजन वाली बात मैंने इसलिए लिखी कि सोचिए आप सम्राट Prithviraj Chauhan को देख रहे हैं। लहीम शहीम पर्सनैलिटी वाले पृथ्वीराज को, जिनके आगे दुश्मन आने से घबराता है। पर उन चौहान साहब की कमर पतली जॉ लाइन तिकोनी हो तो ज़रा अजीब लगता है न?
अब याद कीजिए राजमौली के बाहुबली को! प्रभास ने खास इस रोल के लिए, जो बाहुबली 2 में था; 15 किलो वजन बढ़ाया था! क्यों? क्योंकि राजा महाराजा ज़रा बल्की होते ही थे। तुलना करनी तो नहीं चाहिए पर ये फिल्म बाहुबली तो बहुत दूर की बात, ओम राऊत और अजय देवगन की तानाजी के भी आस-पास नहीं ठहरती।
तानाजी की भी अवधि कम थी पर फिल्म पर्टीकुलर एक मिशन पर बेस्ड थी, सीमित समय में सर्जिकल स्ट्राइक थी। लेकिन Prithviraj Chauhan में कई बरस की कहानी दो घंटे में निपटाने की कोशिश की है। हो सकता है मेरी उम्मीदें इस फिल्म से ज़्यादा हों, क्योंकि मेरी सीट के पीछे बैठे चार छपरी टाइप लोगों को फिल्म पसंद आई, वो सोचकर आए थे कि फिल्म हिट होनी चाहिए, फिल्म हिन्दू राजा पर है, उन्होंने खूब ताली बजाई। हो सकता है आपको भी अच्छे लगे।
अच्छी हो या औसत, पृथ्वीराज क्योंकि 5000 स्क्रीन्स पर वर्ल्डवाइड रिलीज़ हुई है, इसलिए पहले तीन दिन तो अच्छा कलेक्शन करेगी ही करेगी।
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बाकी वो लोग इस फिल्म को ज़रूर देखेंगे जो इसे हिट कराने का ट्रेंड चला रहे हैं।
जो सिनेमा लवर्स है, अच्छी स्क्रिप्ट को तरजीह देते हैं और हर फिल्म नहीं झेल सकते इसलिए review के बाद ही फिल्में देखना पसंद करते हैं; वो OTT रिलीज़ का इंतज़ार कर सकते हैं।
Rating 5/10*
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